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खराब नेटवर्क और कमजोर इंटरनेट ने उत्तराखंड में खोली ऑनलाइन पढ़ाई की कलई

-न्यूजलॉन्ड्री, 

हर्षित उत्तराखंड के गढ़वाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय से बीएससी कर रहे है. कोरोना के कारण विश्व विद्यालय शुरुआत में 31 मार्च तक के लिए बंद हुआ. इस कारण कुछ दिनों की छुट्टियों के लिए वो चमोली जिले में स्थित अपने घर चले गये. कोरोना का संकट बढ़ा तो विश्वविद्यालय ने ऑनलाइन पढ़ाई शुरू कर दी. लेकिन हर्षित पढ़ नही पा रहा, क्योंकि गांव में नेटवर्क ही नही आता. एक दोस्त से विश्वविद्यालय में होने वाली ऑनलाइन पढ़ाई का हाल पूछने के लिए उसे एक किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ कर बाजार आना पड़ता है तब कही जा कर वो जानकारी जुटा पाता है. और जब से ऑनलाइन पढ़ाई हुई है तब से हर शाम बाजार आ कर ये जानकारी जुटाने का काम उसकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया है.

अभिषेक भी हर्षित की तरह पहाड़ के एक बड़े शहर श्रीनगर में पढ़ता है. कोरोना से विश्वविद्यालय बंद होने के कारण अभिषेख जोशीमठ (चमोली) ब्लाक स्थित अपने गांव आ गया. उससे बात होनी भी मुश्किल है. न उसके पास एंड्राइड फोन है और न गांव में बटन वाले सस्ते फोन पर बात करने लायक नेटवर्क. किसी से कुछ पूछना हो तो वो गांव के पास धार (पहाड़ में ऊँची जगह) में जाकर ही यह मुमकिन हो पाता है.

यही हाल बकुल का है जो ऑनलाइन कक्षाओं का लाभ नही ले पा रही है. जबकि बकुल रुड़की जैसे बड़े शहर में रहती है. बकुल के शहर में नेटवर्क इतना कमजोर है कि उससे ऑनलाइन क्लासेज का लाभ नहीं उठाया जा सकता.

ये तीन उदाहरण उत्तराखंड का हाल बताने के लिए काफी है. गांवों में कनेक्टिविटी नहीं है तो शहरों में स्पीड. कोरोना महामारी के इस समय में केंद्र सरकार, राज्य सरकार, यूजीसी और विश्वविद्यालयों ने ऑनलाइन पढ़ाई का रास्ता निकाला है, लेकिन उन्होंने इस पर ध्यान ही नहीं दिया कि इस व्यवस्था के लिए पर्याप्त संसाधन हैं या नही. बिना बेहतर कनेक्टिविटी के गांव-देहात तो छोड़ दीजिये उत्तराखंड के शहरों में भी ऑनलाइन पढ़ाई नही हो सकती. ऑनलाइन पढ़ाई के लिए बहुत से छात्रों के पास स्मार्टफोन या लैपटॉप भी नहीं हैं.

उत्तराखंड या इसके जैसे तमाम पहाड़ी राज्यों में बेहतर नेटवर्क एक बड़ी समस्या है. वहां आमतौर पर मोबाइल से बात करने में भी कई तरह की दिक्कतें होती हैं, ऐसे में इंटरनेट कनेक्टिविटी की तो बात ही भूल जाइए.

संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के अध्ययन में सामने आया है कि कोरोना महामारी का सबसे ज्यादा प्रभाव छात्रों पर पड़ा है. दुनिया के 191 देशों के करीब 157 करोड़ छात्र इस से प्रभावित हुए हैं. इन प्रभावित छात्रों में भारत के 32 करोड़ छात्र भी शामिल हैं.

भारत में 25 मार्च के पहले दौर के राष्ट्रीय लॉकडाउन शुरू होने से पहले ही स्कूल, कॉलेज एहतियात के तौर पर बंद कर दिए गये थे. 21 दिनों की ये समयसीमा 14 अप्रैल को खत्म होनी थी. इस बीच केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि छात्रों और शिक्षकों की सुरक्षा सरकार के लिए सर्वोपरि है और उनका मंत्रालय यह सुनिश्चित करने के लिए तैयार है कि यदि स्कूल और कॉलेज को 14 अप्रैल के बाद भी बंद रखने की जरूरत पड़ी तो छात्रों को पढ़ाई-लिखाई का कोई नुकसान नहीं हो. महामारी का संकट बढ़ने लगा तो सरकारों ने ऑनलाइन पढ़ाई कराने के निर्देश दिए.

सरकारों के बिना तैयारी उठाए गए इस क़दम से देश में एक नई तरह की असमानता को जन्म दे दिया है. इस ऑनलाइन पढ़ाई में दूर-दराज के गांव में फंसे छात्र वंचित हो गये है और साथ ही शहरों के वो छात्र भी जिनके पास स्मार्टफोन या लैपटॉप नहीं है.

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