Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/india-has-guns-germs-and-steel-crisis-but-indian-industry-india-inc-is-silent.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | भारत में ‘गन्स, जर्म्स और स्टील का संकट’ है, लेकिन भारतीय उद्योग जगत ख़ामोश है | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

भारत में ‘गन्स, जर्म्स और स्टील का संकट’ है, लेकिन भारतीय उद्योग जगत ख़ामोश है

-द प्रिंट, 

‘डर की वजह से बहुत से लोग बोलते नहीं हैं, लेकिन सवाल ये है, कि किस चीज़ का डर?’ ये सवाल उद्योगपति राजीव बजाज ने, कोरोनावायरस से निपटने के विषय पर, हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ एक बातचीत में किया. ये वीडियो क्लिप भारत के कॉरपोरेट जगत के प्रमुखों के बीच, निजी व्हाट्सएप ग्रुप्स पर व्यापक रूप से वायरल हुई, और उनकी साफ़दिली के लिए राजीव बजाज की ख़ूब प्रशंसा हुई. विडम्बना ये है कि वो लोग, निडर होने और आवाज़ उठाने के, बजाज के प्रोत्साहन की प्रशंसा, निजी समूहों में कर रहे थे, सार्वजनिक रूप से नहीं.

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता, कि पिछले पांच सालों में भारत के कुलीन वर्ग में, एक डर और भय का वातावरण छा गया है. हमारे समाज के कमज़ोर तबक़े के लोग तो सही तौर से, एक मजबूत राज्य के चंगुल से कभी आज़ाद ही नहीं हुए थे, और हमेशा से इसकी दया पर रहे हैं. नरेंद्र मोदी सरकार के राज में जो बदलाव आया है वो ये, कि विशेष अधिकार प्राप्त लोग भी, ग़ुलामों की तरह जीने को मजबूर हो गए हैं, और अपने विचारों को ज़ाहिर नहीं कर पाते. (ये इससे ज़ाहिर है, कि टैप किए जाने के डर से, फोन कॉल्स का उनका पसंदीदा माध्यम व्हाट्सएप है).

बिहार के समस्तीपुर में एक ग़रीब महिला को हमेशा, ज़िला अधिकारियों के फरमानों पर अमल करने को मजबूर किया जाता था, क्योंकि उसे डर था कि उसे सरकारी कल्याण योजनाओं में से अपना हिस्सा नहीं मिलेगा. अब मुम्बई में एक धनी उद्योगपति को भी, सरकार की प्रशंसा के गीत गाने, और थाली बजाते हुए फोटो खिंचवा कर, अपने आज्ञापालक होने का सबूत देने के लिए, मजबूर किया जा रहा है, इस डर से, कि या तो उसके खिलाफ जांच शुरू हो जाएगी, या कोई सरकारी ऑर्डर नहीं मिलेगा. मुम्बई का ये धनी उद्योगपति और समस्तीपुर की ग़रीब महिला अब एक समान फील्ड पर हैं. कम से कम जब बात निजी आज़ादी की हो, तो अमीर-ग़रीब के बीच की चौड़ी खाई को तो मोदी सरकार ने, कामयाबी के साथ पाट ही दिया है, ग़रीब को अमीर बनाकर नहीं, बल्कि अमीर को ग़रीब बनाकर.

एक भारी क़ीमत
ये कोई राज़ नहीं है कि हर उद्योगपति निजी तौर पर तो बड़बड़ाते हुए अपनी नाराज़गी जताता है, लेकिन खुले में मोदी सरकार द्वारा लॉकडाउन में उठाए जा रहे, कठोर क़दमों पर ख़ुश होने का ढोंग करता है, जिन्होंने उनके कारोबार तबाह कर दिए हैं. ये समझ में नहीं आता कि ये कारोबारी लोग, जो जुनून की हद तक अपने निजी-स्वार्थों के लिए जाने जाते हैं, और ‘लागत बनाम मुनाफ़ा’ फ्रेमवर्क में अपने तर्कसंगत फैसलों के लिए विख्यात हैं, प्रधानमंत्री मोदी के फैसले की चोट को कैसे सह रहे हैं, लेकिन फिर भी संकोची और शांत बने हुए हैं. यक़ीनन ऐसा नहीं हो सकता, कि उनके बोलने की क़ीमत, उनके कारोबार के पूरी तरह बंद हो जाने की क़ीमत से अधिक होगी.

चलिए मान लेते हैं कि मार्च में, जब मोदी ने कोविड-19 से निपटने के लिए, अचानक बिल्कुल संपूर्ण लॉकडाउन का ऐलान किया, तो उद्योग संघों और उद्योगपति के किसी समूह ने, इतनी हिम्मत जुटाई कि निजी या सार्वजनिक तौर पर, पीएम से कहा हो कि हमारे जैसे देश में, मुकम्मल लॉकडाउन से हेल्थ को लेकर कोई फायदा नहीं होगा, और हमें इसकी भारी इंसानी और आर्थिक क़ीमत चुकानी होगी. या लॉकडाउन 1.0 के बाद, वो अपनी राय ज़ाहिर कर सकते थे, कि लॉकडाउन को बढ़ाना मूर्खता है.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.