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भारत को डब्ल्यूटीओ की दोषपूर्ण सब्सिडी व्यवस्था को जल्द चुनौती देने की जरूरत

-रूरल वॉइस,

भारतीय किसानों ने अपने हक़ के लिए लंबा संषर्ष कर विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेने पर सरकार को मज़बूर किया है और साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए आवाज़ बुलंद कर रहे हैं। अब इसी बीच गन्ने और चीनी पर किसानों को दी जा रही सब्सिडी पर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) ने भारत को दोषी ठहराया है। 

विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के डिस्प्यूट सेटलमेंट पैनल ने गन्ने और चीनी पर भारत में दी जा सब्सिडी को लेकर भारत को नियमों के उल्लंघन का दोषी पाया है। भारतीय किसानों  ने अभी तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए केंद्र सरकार को मजबूर किया था और कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इसी बीच भारतीय किसानों को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) से एक और चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। डब्ल्यूटीओ विवाद निपटान पैनल ने 14 दिसंबर 2021 को जारी अपनी रिपोर्ट में भारत पर साल 2014-15 से 2018-19 की अवधि के दौरान गन्ना उत्पादकों को मूल्य समर्थन और चीनी को निर्यात सब्सिडी देने का दोषी करार दिया है। 

इसमें कहा गया है कि इन वर्षों के दौरान भारत कृषि पर समझौते (एओए) के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन कर रहा था। बता दें कि यह पहली बार है कि देश के किसानों को समर्थन देने की सरकार की नीतियों को विश्व व्यापार संगठन में चुनौती दी गई है। और इस विवाद के निहितार्थ भारत की कृषि सब्सिडी व्यवस्था के लिए दूरगामी हो सकते हैं।

डब्ल्यूटीओ विवाद निपटान पैनल 2019 उस वक्त स्थापित किया गया था, जब ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया और ग्वाटेमाला ने डब्ल्यूटीओ के विवाद निपटान निकाय से शिकायत की थी कि भारत सरकार और कई राज्य सरकारों द्वारा प्रदान की गई मूल्य समर्थन प्रणाली डब्ल्यूटीओ-असंगत थी और इसलिए इसे बंद कर दिया जाना चाहिए। इसके बाद, कनाडा, चीन, अमेरिका और यूरोपीय संघ सहित विश्व व्यापार संगठन के 14 सदस्य तीसरे पक्ष के रूप में विवाद में शामिल हुए।

तीन शिकायतकर्ताओं ने केंद्र सरकार के उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी), भारतीय चीनी मिलों को भारतीय गन्ना उत्पादकों को भुगतान की जाने वाली न्यूनतम कीमत, साथ ही संबंधित भारतीय राज्यों में स्थित चीनी मिलों के लिए आवश्यक राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) को लक्षित किया था। (संबंधित राज्य में गन्ना उत्पादकों को मिलों को दिए गए किसी भी उत्पादन के लिए भुगतान करने के लिए)। एफआरपी न्यूनतम मूल्य है जो मिलों को गन्ना उत्पादकों को चुकाना होता है। एफआरपी कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों के आधार पर, राज्य सरकारों के परामर्श से और चीनी उद्योग संघों से प्रतिक्रिया प्राप्त करने के बाद तय किया जाता है। दूसरी ओर एसएपी राज्य सरकारों द्वारा तय किया जाता है और आमतौर पर एफआरपी से अधिक होता है।

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