Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/indian-economy-is-heading-for-a-k-shaped-recovery-and-it-wont-be-a-pretty-sight-covid-19.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | भारतीय अर्थव्यवस्था के-शेप्ड रिकवरी की तरफ बढ़ रही है, ऐसा होना भारत के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं होगा | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

भारतीय अर्थव्यवस्था के-शेप्ड रिकवरी की तरफ बढ़ रही है, ऐसा होना भारत के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं होगा

-द प्रिंट,

जैसे ही यह खबर आई कि दुनिया की सबसे तेज रफ्तार अर्थव्यवस्था आज दुनिया की सबसे तेजी से सिकुड़ रही अर्थव्यवस्था बन गई है, चारों तरफ से तरह-तरह की टिप्पणियां आने लगीं. इन टिप्पणियों में सबसे गौरतलब यह थी कि भारत की आर्थिक वृद्धि की क्षमता 6 प्रतिशत से घटकर 5 प्रतिशत की हो गई है. कुछ अरसे से यह स्पष्ट हो गया था कि भारत को कोविड-19 के कारण आई मंदी के चलते रिकॉर्ड वित्तीय घाटे, रिकॉर्ड सार्वजनिक कर्ज (दोनों ही जीडीपी के संदर्भ में) का ही सामना नहीं करना पड़ेगा बल्कि बैंकों और कंपनियों के लिए ‘दोहरे बैलेंस-शीट के संकट’ को नया जीवन मिलेगा, मुद्रा के मोर्चे पर जटिल चुनौतियां पैदा होंगी और इन सबका नतीजा यह होगा कि कभी 7 प्रतिशत से ऊपर रही वृद्धि क्षमता में गिरावट आएगी. लेकिन क्या यह गिरावट 5 प्रतिशत पर पहुंच जाएगी? निश्चित ही नहीं!

किसी अर्थव्यवस्था की वृद्धि क्षमता का हिसाब सीधा-सा पत्रकारीय काम भी हो सकता है (निवेश दर में ‘आईसीओआर’ – वृद्धिशील पूंजी-उत्पादन अनुपात को भाग देकर निकाला जा सकता है) या कई अनुमानों पर आधारित जटिल हिसाब-किताब भी हो सकता है. डेटा के मामले में कमजोर अर्थव्यवस्था के साथ यह बात जुड़ी हुई होती है कि उसकी वृद्धि क्षमता के अनुमान ठोस नहीं बल्कि कमजोर आंकड़ों के रूप में होते हैं. फिर भी, अभी तक किसी ने यह नहीं कहा था कि भारत की आर्थिक वृद्धि क्षमता 1980 या 1990 के दशकों में हासिल वृद्धि दरों (5.5 से 6 प्रतिशत के बीच) से भी नीचे चली जाएगी. ऐसा हुआ तो ‘ब्रिक्स’ के जो गुलाबी नज़ारे दिखाए गए थे उन्हें बदलना पड़ेगा. मुद्रास्फीति का हिसाब लगाते हुए रुपए की कीमत में प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा 2022-23 में 2019-20 वाले इसके आंकड़े से बड़ा नहीं होगा. जिसका अर्थ होगा कि तीन साल बेकार गए. इसका क्या मतलब होगा इस पर भी विचार कीजिए— सभी क्षेत्रों में मांग की कमी और आपूर्ति की अधिकता और नये निवेश का रुक जाना.

इसके अलावा, सरकार के दो आशावादी अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि आर्थिक वृद्धि की भावी दिशा अंग्रेजी के ‘वी’ अक्षर की तरह नहीं होगी कि तेजी से गिरावट हो और फिर उत्थान हो, न ही ‘यू’ (उत्थान में समय लगना) या ‘डब्ल्यू’ या ‘एल’ अक्षर की तरह होगी बल्कि ‘के’ अक्षर की तरह होगी. ‘के’ अक्षर में एक खड़ी रेखा से दो रेखाएं फूटती हैं. 2008 के वित्तीय संकट के बाद से जो कुछ होता रहा है उसके बारे में दुनिया भर के टीकाकारों की इस साल की खोज यह है—देशों, आर्थिक क्षेत्रों, कंपनियों और बेशक लोगों में भी जीतने और हारने वालों के बीच जो खाई है वह चौड़ी होती जा रही है.

इसके उदाहरण कई हैं. देशों के मामले में, चीन 2008 से जम कर खरीदारी में जुटा हुआ है. वह अहम कंपनियों, दुनियाभर में महत्वपूर्ण बंदरगाहों को खरीद रहा है, उन देशों को खुल कर वित्तीय सहायता देता रहा है जो उसके फरमानों को मानते हों और अपना कर्ज भुगतान करने में कठिनाई महसूस करते रहे हों. भारत में शेयर बाज़ार में निवेश करने वाले लोग परेशान हैं जबकि लाखों लोगों का रोजगार छिन गया है और निजी उपभोग लगभग खत्म हो गया है जैसा कि नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस (एनएसओ) का कहना है.

दूर से काम करवाने या जानकारियां देने वाली कंपनियों और दवा कंपनियों की चांदी है (अचानक लाभ). व्यापारिक रियल एस्टेट बाज़ार, ऑफिस वाली कमीजों आदि के बाज़ार में गिरावट आ गई है. क्वान्टाज़ अब पाजामा बेचने लगी है. सेक्टरों के अंदर बड़ी मछली छोटी मछलियों को निगल रही है. जियो ने भावी ग्रुपों को निगल लिया है, डी-मार्ट जैसी को रास्ते पर लगा दिया है और उन्हें कीमत घटाने पर मजबूर कर दिया है. अडानी ने हवाईअड्डों पर एकाधिकार जमा लिया है और बंदरगाहों पर भी एकाधिकार जैसा कर लिया है (जो असमान पोर्ट चार्जों से स्पष्ट है).

पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.