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चुनावों में हस्तक्षेप का निर्णय कर के किसान नेताओं ने कहीं कोई खतरा तो नहीं मोल लिया है?

-जनपथ,

अंततः किसान आंदोलन के नेताओं ने यह निर्णय ले ही लिया कि पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों में संबंधित प्रदेशों का दौरा कर वे मतदाताओं से भाजपा को उसके किसान विरोधी रवैये के मद्देनजर सत्ता से दूर रखने की अपील करेंगे। संयुक्त किसान मोर्चा ने इस संबंध में पत्र के रूप में मतदाताओं हेतु एक अपील भी जारी की है।

इस अपील में कहा गया है:

हम केंद्र एवं भाजपा शासित राज्यों की कठोर वास्तविकता को आपके संज्ञान में लाना चाहेंगे- भाजपा सरकार तीन किसान विरोधी कानून लेकर आई, जो निर्धन कृषकों एवं उपभोक्ताओं हेतु  किसी भी प्रकार के शासकीय संरक्षण को समाप्त कर देते हैं, और साथ ही कॉरपोरेट और बड़े पूंजीपतियों को विस्तार की सुविधा प्रदान करते है। उन्होंने किसानों से बिना पूछे किसानों के लिए इस तरह के निर्णय लिए हैं। यह ऐसे कानून हैं जो हमारे भविष्य के साथ-साथ हमारी आने वाली पीढ़ियों को भी नष्ट कर देंगे। भाजपा सरकार ने इन कानूनों के विरुद्ध आंदोलन प्रारंभ करने वाले किसानों को बदनाम किया। उन्हें राजनीतिक दलों के एजेंट, चरमपंथियों और राष्ट्र-विरोधियों के रूप में प्रस्तुत किया गया एवं लगातार उनका अपमान किया गया।
भाजपा सरकार के मंत्रियों ने किसान नेताओं के साथ अनेक दौर की चर्चा करने का दिखावा किया किंतु वास्तव में किसानों ने जो कहा उस पर ध्यान नहीं दिया। भाजपा सरकारों ने प्रदर्शनकारी किसानों पर आंसू गैस के गोले छोड़ने, वाटर कैनन का प्रयोग करने, लाठीचार्ज करने और यहां तक कि झूठे मामले दर्ज करने एवं निर्दोष किसानों को गिरफ्तार करने के आदेश दिए। भाजपा के सदस्य किसानों के विरोध स्थलों में किसानों पर पथराव की हिंसक घटनाओं में सम्मिलित थे। किसानों के अपमान और उन पर इस आक्रमण का उत्तर देने के लिए हम अब आपकी सहायता चाहते हैं। कुछ दिनों में आप सभी राज्य विधानसभाओं के लिए अपने अपने राज्यों में हो रहे चुनावों में मतदान करेंगे। हम समझ चुके हैं कि मोदी सरकार संवैधानिक मूल्यों, सच्चाई, भलाई, न्याय आदि की भाषा नहीं समझती है। यह लोग वोट, सीट और सत्ता की भाषा समझते हैं। आपमें इनमें सेंध लगाने की शक्ति है।

भाजपा दक्षिणी राज्यों में अपने प्रसार को लेकर बहुत उत्साहित है और इस हेतु सहयोगी दलों के साथ गठबंधन कर रही है। यही वह समय है जब असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में किसान सत्ता की भूखी और किसान विरोधी भाजपा को अच्छा सबक सिखा सकते हैं। भाजपा को यह सबक मिलना चाहिए कि भारत के किसानों का विरोध करना कोई बुद्धिमत्ता नहीं है। यदि आप उन्हें यह सबक सिखाने में कामयाब होते हैं, तो इस पार्टी का अहंकार टूट सकता है, और हम वर्तमान किसान आंदोलन की मांगों को इस सरकार से मनवा सकते हैं।

संयुक्त किसान मोर्चा’ का इरादा यह नहीं है कि आपको बताए कि किसे वोट देना चाहिए, लेकिन हम आपसे केवल भाजपा को वोट नहीं देने का अनुरोध कर रहे हैं। हम किसी पार्टी विशेष की वकालत नहीं कर रहे हैं। हमारी केवल एक अपील है- कमल के निशान पर गलती से भी वोट न दें।

विगत साढे़ तीन महीनों से किसान दिल्ली के आसपास स्थित धरना स्थलों से वापस अपने घर नहीं गए हैं। दिल्ली की सीमाओं पर संघर्षरत प्रदर्शनकारी किसान अपने परिवारों से कब मिल सकेंगे यह तय करना आपके हाथों में है। एक किसान ही दूसरे किसान के दर्द और पीड़ा को समझेगा।

असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के किसानों की संघर्षशीलता से सभी परिचित हैं और हमें विश्वास है कि आप हमारे इस आह्वान पर सकारात्मक प्रतिक्रिया देंगे। हमें विश्वास है कि आप मतदान करते समय इस अपील को ध्यान में रखेंगे।

निश्चित ही यह संयुक्त किसान मोर्चा के लिए एक कठिन निर्णय रहा होगा कि वह चुनावी राजनीति में प्रवेश करे और वह भी स्थानीय मुद्दों पर आधारित विधानसभा चुनावों के माध्यम से जहाँ  किसी एक राष्ट्रीय मुद्दे को लेकर जनता को मतदान के लिए तैयार करना असंभवप्राय होता है। संभवतः संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने यह सोचा होगा कि खेती और किसानों से जुड़ी समस्याएं इस देश में उतनी ज्यादा सुर्खियों में कभी नहीं रहीं जितनी आज हैं और शायद आम किसान भी अब इतना शिक्षित हो चुका है कि वह मतदाता के रूप में अपने हितों की रक्षा करने वाले दल को ही चुनेगा। शायद संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं को लगता होगा कि वे मतदान में  दो-तीन प्रतिशत की भाजपा विरोधी स्विंग पैदा कर पाएंगे जो नजदीकी मुकाबलों में निर्णायक सिद्ध होगी।

किसान नेताओं की इस रणनीति के अपने खतरे हैं। किसान आंदोलन के स्वरूप को अराजनीतिक बनाए रखने के आग्रह ने किसान नेताओं को बाध्य किया कि वे किसी दल विशेष का स्पष्ट समर्थन करने से परहेज करें। चुनावों में हस्तक्षेप करने के बाद किसान आंदोलन को अराजनीतिक मानने वालों की संख्या में भारी कमी आएगी यह तय है। केंद्र सरकार और सरकार समर्थक मीडिया निश्चित ही इस निर्णय का उपयोग किसान आंदोलन को विरोधी दलों द्वारा प्रायोजित गतिविधि सिद्ध करने हेतु करेगा। किसान आंदोलन का आत्मस्फूर्त और अराजनीतिक होना वह अभेद्य नैतिक कवच था जो सरकार के सारे आंदोलन विरोधी षड्यंत्रों को नाकाम करने के लिए अकेला ही काफी था। इस निर्णय के बाद यह तय है कि इस कवच पर आक्रमण होंगे। 

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