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क्या देश का लोकतंत्र राजनैतिक दलों के हाथों में सुरक्षित है?

-जनपथ,

विगत कुछ वर्षों में भारत में असहिष्णुता की प्रवृत्ति काफी बढ़ी है। अराजकतावाद के अनुसार कार्यस्वातंत्र्य जीवन का गत्यात्मक नियम है, और इसीलिए उसका मंतव्य है कि सामाजिक संगठन व्यक्तियों के कार्य स्वातंत्र्य के लिए अधिकतम अवसर प्रदान करे। मानवीय प्रकृति में आत्मनियमन की ऐसी शक्ति है जो बाह्य नियंत्रण से मुक्त रहने पर सहज ही सुव्यवस्था स्थापित कर सकती है। मनुष्य पर अनुशासन का आरोपण ही सामाजिक और नैतिक बुराइयों का जनक है। इसलिए हिंसा पर आश्रित राज्य तथा उसकी अन्य संस्थाएं इन बुराइयों को दूर नहीं कर सकतीं।

मनुष्य स्वभावत: अच्छा है, किंतु ये संस्थाएं मनुष्य को भ्रष्ट कर देती हैं। बाह्य नियंत्रण से मुक्त, वास्तविक स्वतंत्रता का सहयोगी सामूहिक जीवन प्रमुख रीति से छोटे समूहों से संभव है; इसलिए सामाजिक संगठन का आदर्श रूप समूहों का आपसी समन्वय होता है। जनता जब शासन की अकर्मण्यता, कानूनहीनता और भ्रष्ट आचरण से त्रस्त हो जाती है तो उसकी ओर से यह प्रतिक्रिया होती है। अब अराजकता को भारत में प्रचलित अर्थों के सन्दर्भ में देखने पर पर कुछ अलग ही चित्र उभरता है। उत्तर प्रदेश, बिहार तो राजनीति के अपराधीकरण के लिए बदनाम रहे हैं लेकिन दूसरे प्रदेशो में भी अपराधियों और राजनेताओं में परस्पर सहयोग के लिए रिश्ते मजबूत हुए हैं। वोट की राजनीति में चुनाव में ज्यादा से ज्यादा वोट कबाड़ने के लिए राजनैतिक दल परोक्ष रूप से इलाकों के दबंगों और अपराधियों की मदद लेते रहे है, लेकिन अब जब इन असमाजिक तत्वों को अपनी ताकत का पता चला तो उन्होंने सीधे अपने राजनैतिक मित्रों की मदद से राजनीति में घुसपैठ बढ़ा दी। असल में ये लोग लोकतंत्र में बाहुबल और शक्ति को प्रतिष्ठित करने के लिए प्रविष्ट हुए। इन्हें तर्क, संवाद और बातचीत में कभी कोई आस्था नहीं रही। कांग्रेस और भाजपा जैसे दलों की विफलता यही है कि वे ऐसी अराजक ताकतों के साथ खड़े नजर आते हैं।

सवाल यह है कि क्या देश का लोकतंत्र इन राजनैतिक दलों के हाथ में सुरक्षित है? क्या हमारे शासक इतने कमजोर हैं कि कोई व्यक्ति कानून और संविधान को चुनौती देता हुआ कभी विधानसभा, कभी मीडिया के दफ्तरों और कभी सड़कों पर आतंक बरपाता फिरे और हम अपनी वाचिक कुशलता से ही काम चला लें। क्या ये मामले सिर्फ निंदा या कड़ी भत्सर्ना से ही बंद हो सकते हैं। इन्हें भड़काने वाले लोगों की जगह क्या जेल में नहीं है। अराजक सिर्फ एक दल ही नहीं है, सभी इस राजनीतिक हमाम में वस्त्रहीन हैं।

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