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क्या हत्या, आत्महत्या और बलात्कार के मामलों में अपनी ‘लक्ष्मण रेखा’ लांघ रहा है मीडिया

-द प्रिंट,

क्या वास्तव में आत्महत्या और हत्या की घटनाओं में मीडिया, विशेषकर इलेक्ट्रानिक मीडिया, समानांतर जांच शुरू करके आपराधिक मामलों में पुलिस की जांच में हस्तक्षेप पैदा करने लगा है? क्या समानांतर जांच करके मीडिया अपनी ‘लक्ष्मण रेखा’ लांघ रहा है?

बालीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में चुनिन्दा चैनलों की भूमिका के परिप्रेक्ष्य में बंबई उच्च न्यायालय की व्यवस्था से यही निष्कर्ष निकलता है कि हमारे इलेक्ट्रानिक चैनल ‘लक्ष्मण रेखा’ लांघ रहे हैं.


न्यायपालिका, हालांकि, पहले भी अदालत के विचाराधीन मामलों की रिपोर्टिंग के बारे में मीडिया के लिये किसी प्रकार के दिशा निर्देश बनाने से इनकार कर चुका है लेकिन यहां मुद्दा आपराधिक मामलों की जांच के दौरान मीडिया द्वारा समानांतर जांच से संबंधित है.

शायद यही वजह है कि बंबई उच्च न्यायालय ने निलेश नवलखा और अन्य बनाम यूओआई और अन्य प्रकरण में सुनाये गये अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा है कि आत्महत्या और हत्या जैसे आपराधिक मामलों में मीडिया द्वारा ट्रायल पुलिस की आपराधिक जांच में हस्तक्षेप है.

मीडिया की भूमिका और सवाल
वैसे यह पहला मौका नहीं है जब किसी सनसनीखेज अपराध की जांच को लेकर मीडिया ट्रायल और मीडिया की भूमिका को लेकर सवाल उठे हैं. पहले भी दहेज की खातिर हत्या-आत्महत्या और बलात्कार की घटनाओं से लेकर पालघर में साधुओं सहित कई लोगों की तरह तरह के संदेहों में पीट पीट कर हत्या के मामले में मीडिया ट्रायल का मसला न्यायालय पहुंचा है.

देश की शीर्ष अदालत ने सितंबर, 1997 में स्टेट ऑफ महाराष्ट्र बनाम राजेंद्र जमवाल गांधी प्रकरण और फरवरी 2005 में  एम. पी. लोहिया बनाम स्टेट ऑफ पश्चिम बंगाल मामले में सुनाये गये अपने फैसलों में मीडिया ट्रायल को लेकर सख्त टिप्पणियां की थी.

शीर्ष अदालत ने आत्महत्या और बलात्कार जैसे अपराधों के मामले में मीडिया में प्रकाशित होने वाली एकतरफा खबरों पर टिप्पणी करते हुये कहा था कि निश्चित इस तरह के प्रकाशन न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप हैं.

मीडिया ट्रायल की दिन प्रतिदिन गंभीर हो रही समस्या के बावजूद उच्चतम न्यायालय ने सहारा इंडिया रियल एस्टेट बनाम सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया में सितंबर 2012 में मीडिया की रिपोर्टिंग के लिये किसी प्रकार के दिशा निर्देश बनाने से इंकार कर दिया था. न्यायालय ने मीडिया को आगाह जरूर किया था कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1) में प्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी निर्बाध नहीं है और उसे स्वंय ही अपनी ‘लक्ष्मण रेखा’ समझनी चाहिए.

लेकिन ब्रेकिंग न्यूज या सबसे पहले खबर देने की होड़ में इस लक्ष्मण रेखा की परवाह नहीं की जा रही है. लक्ष्मण रेखा को तिलांजलि देते हुये खोजी पत्रकारिता के नाम पर कोरोना काल में तबलीगी जमात की गतिविधियों की तरह ही सुशांत सिंह राजपूत, अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती और दिशा सालियान के संबधों को लेकर लगातार ‘सूत्रों से मिली एक्सक्लूसिव जानकारी’ के आधार पर सनसनीखेज खबरें पेश की जाती रहीं.

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