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केन-बेतवा लिंक: नए अध्ययन के बिना डेढ़ दशक पुराने आंकड़ों के आधार पर दो राज्यों में हुआ क़रार

-द वायर,

किसी भी परियोजना के चलते पर्यावरण एवं जनमानस को नुकसान होने की संभावना को ध्यान में रखते हुए उस प्रोजेक्ट की उपयोगिता एवं उसके प्रभावों पर स्वतंत्र रूप से गंभीर अध्ययन कराने की मांग की जाती रही है. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि इससे पड़ने वाले प्रभावों को कम किया जा सके व उससे हुई क्षति की उचित भरपाई हो सके.

हालांकि जिस कार्य को करने में विशेषज्ञ महीनों मेहनत करते हैं, उसे प्रशासन के अधिकारी लीपापोती करते हुए एक फोन कॉल करके कर सकते हैं. ऐसा काम मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी और ‘विनाशकारी’ का तमगा हासिल कर चुकी केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना को लेकर किया गया था, जिस पर इसी साल मार्च महीने में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच क़रार पर दस्तखत किए गए हैं.

इस परियोजना के एग्रीमेंट को अंतिम रूप देने के दौरान बीच में ये महसूस किया गया था कि केन नदी पर फिर से अध्ययन कर इसके आंकड़ों को अपडेट करने की जरूरत है, लेकिन महज एक अधिकारी के निर्देश पर पुराने डेटा को ही बरकरार रखा गया और आगे चलकर सरकार ने इस पर डील साइन कर दी गई.

द वायर  द्वारा प्राप्त किए गए मंत्रालय के आंतरिक दस्तावेजों से ये जानकारी सामने आई है.

केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट इस परिकल्पना पर आधारित है कि केन बेसिन में पानी की मात्रा ज्यादा है, इसलिए केन नदी पर दौधन बांध और नहर बनाकर इस पानी को बेतवा बेसिन में डाला जा सकता है. हालांकि सरकार ने आज तक उन आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया है जिसके आधार पर उन्होंने ये दावे किए हैं.

विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार इसी वजह से आंकड़े सार्वजनिक नहीं कर रही है क्योंकि उन्हें भी पता है कि केन नदी में इतना पानी नहीं है कि उसे कहीं और ले जाया जाए. आरोप है कि इस संबंध में सरकार ने जो भी अध्ययन करवाए हैं, उनमें काफी त्रुटियां हैं.

लेकिन इन आपत्तियों को दरकिनार कर इस परियोजना के पहले चरण में केन नदी के पास में स्थित दौधन गांव में एक बांध बनाया जाना है, जो 77 मीटर ऊंचा और 2,031 मीटर लंबा होगा.

इसके अलावा 221 किलोमीटर लंबी केन-बेतवा लिंक नहर बनाई जाएगी, जिसके जरिये केन का पानी बेतवा बेसिन में लाया जाएगा. साथ ही 1.9 किलोमीटर और 2.5 किलोमीटर लंबी दो सुरंग भी बनाई जाएगी.

दौधन बांध के चलते 9,000 हेक्टेयर का क्षेत्र डूबेगा, जिसमें से सबसे ज्यादा 5,803 हेक्टेयर पन्ना टाइगर रिजर्व का होगा, जो कि बाघों के रहवास का प्रमुख क्षेत्र माना जाता है.

इस परियोजना के तहत मध्य प्रदेश और यूपी के बीच जल बंटवारे को लेकर भी काफी विवाद था, जिसके चलते यह प्रोजेक्ट काफी लंबे समय से लटका हुआ था.

इसी का समाधान करने के लिए 23 अप्रैल 2018 को जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय (अब जल शक्ति मंत्रालय) के सचिव की अध्यक्षता में एक बैठक हुई थी, जिसमें तत्कालीन सचिव यूपी सिंह ने सुझाव दिया कि नॉन-मानसून सीजन में मध्य प्रदेश को 1,796 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) और उत्तर प्रदेश को 788 एमसीएम पानी दिया जा सकता है. हालांकि यूपी ने नॉन मानसून (अक्टूबर से मई) में 935 एमसीएम पानी की मांग की थी.

एक क्यूबिक मीटर में 1,000 लीटर और एक एमसीएम में एक अरब लीटर पानी होता है. 

बहरहाल इस बैठक के करीब डेढ़ साल बाद केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना को लागू कर रही जल शक्ति मंत्रालय की एजेंसी राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण (एनडब्ल्यूडीए) ने सोचा कि जिस आधार पर राज्यों को पानी का आवंटन किया जा रहा है, उसके अनुसार नदी में पानी की उपलब्धता की जांच की जानी चाहिए.

इसलिए एनडब्ल्यूडीए के सुपरिटेंडेंट इंजीनियर मुजफफ्फर अहमद ने 26 नवंबर 2019 को लखनऊ स्थित अपने विभाग के चीफ इंजीनियर (नॉर्थ) को पत्र लिखा और उनसे कहा कि केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट पर तैयार किए गए व्यापक रिपोर्ट में दौधन बांध तक पानी पहुंचने के नवीनतम आंकड़ों को शामिल करते हुए उसे अपडेट कर हेडक्वार्टर को भेजें.

इस पत्र को एनडब्ल्यूडीए के ग्वालियर स्थित इन्वेस्टिगेशन सर्किल के सुपरिटेंडेंट इंजीनियर और इन्वेस्टिगेशन डिविजन के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर के पास भी भेजा गया था.

हालांकि दस्तावेजों से पता चलता है कि चीफ इंजीनियर (नॉर्थ) के निर्देश पर कोई नया अध्ययन नहीं कराया गया और पुराने आंकड़ों के आधार पर ही रिपोर्ट को अपडेट कर भेज दिया गया. 

विभाग ने एक अजीबोगरीब दलील देते हुए कहा कि यदि नई स्टडी कराई जाती है तो इसमें छह-आठ महीने का समय लगेगा और इससे यदि कोई नए तथ्य निकलकर आ गए तो उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच जल बंटवारे को लेकर फिर से विवाद खड़ा हो जाएगा.

एग्जीक्यूटिव इंजीनियर राघवेंद्र कुमार गुप्ता ने साल 2020 के जनवरी महीने की सात तारीख को इन्वेस्टिगेशन सर्किल के सुपरिटेंडेंट इंजीनियर को एक पत्र लिखकर कहा, ‘केन-बेतवा लिंक परियोजना के तहत उत्तर प्रदेश के लिए नॉन-मानसून सीजन में 788 एमसीएम जल आवंटित कर नवीनतम आंकड़ों के आधार पर सिमुलेशन स्टडी (Simulation Study) एवं जल योजना इत्यादि को अपडेट कर व्यापक (कॉम्प्रिहेंसिव) रिपोर्ट में आवश्यक संशोधन एवं सुधार करने के निर्देश प्राप्त हुए हैं.’

इस संबंध में उन्होंने आगे कहा, ‘तदोपरांत मुख्य अभियंता (उत्तर) द्वारा दूरभाष पर उक्त अध्ययन को साल 2003-04 के आंकड़ों के आधार पर बिना अपडेट किए ही सिमुलेशन स्टडी एवं जल योजना को संशोधित कर व्यापक रिपोर्ट को संशोधित करने के निर्देश प्राप्त हुए हैं.’

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