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मध्य प्रदेश में किसान महापंचायतों की लहर, कटाई के मौसम में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे ग्रामीण

-कारवां,

5 फरवरी को केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र तोमर ने राज्यसभा में कहा कि कृषि कानूनों को लेकर जारी विरोध केवल एक राज्य तक सीमित है और इसके लिए किसानों को उकसाया जा रहा है. वहीं खुद उनके गृह-राज्य मध्य प्रदेश में किसान महापंचायतों का सिलसिला जोर पकड़ता जा रहा है. इसकी शुरुआत भी तोमर के ही संसदीय क्षेत्र मुरैना-श्योपुर से हुई जहां बीती 13 फरवरी को सबलगढ़ में संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा आयोजित किसान महापंचायत में हजारों किसानों ने कृषि कानूनों को वापिस कराने और एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर कानूनी गारंटी दिलाने का संकल्प लिया.

इस महापंचायत के बारे में मुरैना जिले के गढ़पुरा गांव के किसान मुरारीलाल धाकड़ बताते हैं कि कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के संसदीय क्षेत्र में 15 सितंबर से ही कृषि कानूनों का लेकर किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. इसी तारीख को जिला मुख्यालय श्योपुर में हुए धरने से लेकर संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा की गई हर अपील के समर्थन में स्थानीय किसान पूरी मजबूती से बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं. इसी क्रम में किसानों ने कहीं सड़कों को जाम किया है तो कहीं रेल रोकीं. वह कहते हैं, ''हमारे (मुरैना) जिले में भी चार स्थानों पर पिछले 70 दिनों से अधिक समय से आंदोलन के समर्थन में किसान धरने पर बैठे हैं. प्रशासन की कदम-कदम पर सख्ती के बाद भी यदि सबलगढ़ किसान महापंचायत में पांच हजार से ज्यादा लोग जमा हुए तो यह कम बड़ी बात नहीं है."

इसी कड़ी में 8 मार्च को श्योपुर में किसान महापंचायत का आयोजन किया गया. श्योपुर के किसान नेता राधेश्याम मीणा दावा करते हैं कि कार्यक्रम में पचास हजार से ज्यादा लोग एकजुट हुए. ऐसा इसलिए कि पंजाब और हरियाणा के किसानों की जो समस्या हैं ठीक वही मध्य प्रदेश के किसानों की भी समस्या है. फिर चंबल के किसानों को पूर्वी राजस्थान के हाड़ौती अंचल के चार जिलों (बूंदी, बारां, झालावाड़ और कोटा) के किसानों से भारी समर्थन मिला. राधेश्याम कहते हैं, "यह संख्या बताती है कि चंबल के किसानों की भी सरकार के प्रति नाराजगी है. वजह यह है कि हम खेती में अग्रणी होने पर भी खाद, बीज, उर्वरक, बिजली और सिंचाई में मंहगाई के कारण किसानी से फायदा नहीं उठा पा रहे हैं. साल 2013 के मुकाबले इस बार सरसों आधी रेट पर भी नहीं बिकी. इसी तरह, यहां धान और गेहूं खरीदी केंद्रों की भी व्यवस्था लचर होने के कारण किसान हर साल खुले बाजार में एमएसपी से नीचे अपनी उपज बेचने के लिए मजबूर होते हैं."

अखिल भारतीय किसान सभा के नेता बादल सरोज के मुताबिक मुरैना जिले के सबलगढ़ में महापंचायत आयोजित होने के बाद राज्य में ग्वालियर, भोपाल, छिंदवाड़ा, रतलाम और धार आदि जिलों में भी बड़ी महापंचायतें आयोजित हो चुकी हैं. 14 मार्च को विंध्यांचल के रीवा और महाकौशल अंचल के जबलपुर सहित कई जिलों में महापंचायतों का आयोजन किया जा चुका है. इस दौरान राकेश टिकैत, गुरनाम सिंह चढूनी, आमराराम, नरेंद्र मीणा, योगेंद्र यादव, शिव कुमार 'कक्का', युद्धवीर सिंह, मेजर सिंह पुन्नावाल, रामनारायण कुररिया और विक्रम सिंह जैसे राष्ट्रीय स्तर के किसान नेता लगातार राज्य की जनता के बीच पहुंचकर किसान आंदोलन के समर्थन में अपना पक्ष रख रहे हैं. वह कहते हैं, "किसान नेताओं ने यह तय किया है कि आंदोलन को विस्तार देने के लिए वह देश के दूसरे राज्यों में जाएंगे. इसी के तहत एमपी में भी महापंचायतें की जा रही हैं. इन्हें दलीय राजनीति से दूर रखा जा रहा है. इन महापंचायतों का आयोजन और संचालन का पूरा जिम्मा स्थानीय किसानों के हाथों में होता है."

इन महापंचायतों में पंजाब के अनुभवों से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के कारण होने वाले खतरों से भी राज्य के किसानों को आगाह किया जा रहा है. सबलगढ़ में हुई महापंचायत में किसान सभा पंजाब के महासचिव मेजर सिंह पुन्नावाल ने बताया था कि पंजाब का किसान इस लड़ाई में सबसे पहले इसलिए उतरा क्योंकि उसने सबसे पहले ठेका खेती का दंश झेला. ऐसे में यदि एपीएमसी मंडी व्यवस्था भी समाप्त कर दी गई तो किसान पूरी तरह कुछ कॉरपोरेट घरानों पर निर्भर हो जाएगा.

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