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क्यों ये तीन विधेयक कुछ के लिए किसानों की आजादी हैं तो बाकियों के लिए उनकी मौत के फरमान

-सत्याग्रह,

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन्हें किसानों के लिए रक्षा कवच कह रहे हैं. उधर, कांग्रेस नेता राहुल गांधी के लिए ये किसानों की मौत का फरमान हैं. इससे भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि कृषि से जुड़े और संसद से पारित हो चुके तीन विधेयकों पर राय के जो दो छोर हैं उनके बीच कितना फासला है. देश के कई राज्यों में किसान इन विधेयकों पर गुस्से का इजहार करते हुए सड़क पर हैं और कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी पार्टियां उनके साथ खड़ी हैं. दूसरी तरफ सरकार का कहना है कि विधेयकों में किसानों का बेहतर भविष्य छिपा है और विपक्ष उन्हें बहका रहा है.

आगे बढ़ने से पहले इन तीनों विधेयकों के बारे में जानते हैं. संसद के दोनों सदनों से पारित हो चुके ये तीनों विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद कानून बनने वाले हैं. इनमें पहला है कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक. इसमें प्रावधान है कि किसान अपनी उपज को मंडी के बाहर देश में कहीं भी बेच सकता है. इस विधेयक के अध्याय दो के तीसरे बिंदु में कहा गया है, ‘किसी भी किसान, व्यापारी या इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग एंड ट्रांज़ैक्शन प्लेटफॉर्म को राज्य के भीतर या बाहर किसी भी व्यापार क्षेत्र में उपज का व्यापार करने की आजादी होगी.’ व्यापार क्षेत्र का मतलब खेत से लेकर वेयर हाउस, कोल्ड स्टोरेज और प्रोसेसिंग यूनिटों सहित तमाम ऐसी जगहों से है जहां फसल की खरीद-बिक्री हो सकती है. विधेयक के मुताबिक खरीदार को किसान को सौदे के दिन ही या फिर अधिकतम तीन दिन के भीतर भुगतान करना होगा. सरकार के मुताबिक इलेक्‍ट्रॉनिक व्‍यापार और इससे जुड़े मामलों के लिए एक सुविधाजनक ढांचा भी उपलब्‍ध कराया जाएगा.

कृषि से जुड़ा दूसरा विधेयक है कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक. इसमें अनुबंध पर खेती यानी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से जुड़े प्रावधान हैं. कहा जा रहा है कि इनसे किसानों को व्यापारियों, कंपनियों, प्रसंस्करण इकाइयों और निर्यातकों से सीधे जोड़ने का रास्ता बनेगा. इस विधेयक के दूसरे अध्याय की बिंदु संख्या 3(1) में कहा गया है कि ‘कोई भी किसान अपनी उपज के सिलसिले में एक लिखित समझौता कर सकता है जिसमें इस उपज की आपूर्ति के लिए शर्तें तय की जा सकती हैं जिनमें आपूर्ति का समय, उसकी गुणवत्ता, ग्रेड, मानक, कीमत और ऐसी दूसरी चीजें शामिल हैं.’ यह समझौता एक फसली सीजन से लेकर अधिकतम पांच साल तक के लिए किया जा सकता है. सरकार के मुताबिक देश में 10 हजार कृषक उत्पादक समूह (एफपीओ) बनाए जा रहे हैं जो छोटे किसानों को आपस में जोड़कर उनकी फसल को बाजार में उचित लाभ दिलाने की दिशा में कार्य करेंगे. खेती से जुड़े इन दोनों विधेयकों में विवाद की स्थिति में निपटारे की व्यवस्था का भी प्रावधान है.

संसद द्वारा पारित तीसरा विधेयक है आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक. इसके तहत सरकार ने अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्‍याज और आलू को आवश्‍यक वस्‍तुओं की सूची से हटा दिया है. यानी युद्ध और अकाल जैसे कुछ असाधारण हालात को छोड़कर इन चीजों के उत्पादन और बिक्री में सरकार का कोई दखल नहीं रहेगा. साथ ही पहले की तरह इनके भंडारण यानी स्टॉक की कोई सीमा भी नहीं होगी. यानी कोई भी व्यापारी इनका जितना चाहे स्टॉक कर सकता है. आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में बना था. तब से सरकार इस कानून की मदद से ‘आवश्यक वस्तुओं’ का उत्पादन, आपूर्ति और वितरण नियंत्रित करती रही है. इसके पीछे सोच यह है कि इससे जमाखोरी पर लगाम लगती है और लोगों को जरूरी चीजें ठीक दाम पर उपलब्ध होती हैं.

इन तीनों विधेयकों को सरकार ऐतिहासिक बता रही है. मसलन कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि यह किसानों के लिए बंधनों से मुक्ति है. सरकार के मुताबिक यह कानून किसानों के लिए अधिक विकल्‍प खोलेगा, उनकी विपणन यानी बेचने की लागत कम करेगा और अपनी फसल की बेहतर कीमत वसूलने में उनकी मदद करेगा.

उधर, कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक के बारे में सरकार का कहना है कि यह कानून भी विपणन की लागत कम करेगा और किसानों की आय में सुधार करेगा. इसे लेकर जारी विज्ञप्ति में कहा गया है, ‘किसान सीधे विपणन में शामिल होंगे जिससे बिचौलियों का सफाया होगा और किसानों को पूरा मूल्‍य प्राप्‍त होगा.’ सरकार का यह भी कहना है कि इस विधेयक से किसान के लिए एक तरफ जोखिम कम होगा तो दूसरी तरफ उस तक आधुनिक तकनीक और बेहतर बीज-खाद जैसी चीजें भी पहुंचेंगी.

तो कुल मिलाकर तीनों विधेयकों से होने वाले बदलाव का जो सार है वह यह है कि किसान अब अपनी उपज कहीं भी बेच सकता है, फसल उगाने से पहले ही वह व्यापारी के साथ समझौता कर सकता है और अनाज, दलहन या तिलहन के भंडारण पर अब कोई सीमा नहीं है.

कई जानकार इन्हें सही दिशा में उठाए गए कदम मानते हैं. इंडिया टुडे के साथ बातचीत में कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी कहते हैं, ‘ये ऐसे ही है जैसे 1991 में लाइसेंस-परमिट राज खत्म हुआ था क्योंकि आप बेहतर विकल्प दे रहे हैं. बाजार खोल रहे हैं जहां व्यापारी, निर्यातक और किसान एक साथ पहुंच सकते हैं और सीधे व्यापार कर सकते हैं. इसके चलते बीच के लोगों को जो पैसा देना पड़ता है वह कम होगा.’ उड्डयन क्षेत्र का उदाहरण देते हुए वे आगे जोड़ते हैं, ‘अभी की स्थिति को देखकर मुझे इंडियन एयरलाइंस वाला वक्त ध्यान में आता है. तब एक ही हवाई सेवा थी. यात्रा की कीमत ज्यादा थी और गुणवत्ता कम. फिर जब आपने प्रतिस्पर्धा का माहौल बनाया और तीन या पांच और एयरलाइंस को आने की इजाजत दी तो उपभोक्ता को फायदा हुआ. किसान को भी फायदा होगा.’

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