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मजदूर दिवस: क्यों शासन पर भरोसा नहीं कर पाए प्रवासी मजदूर

-डाउन टू अर्थ, 

मूलरूप से बिहार के पूर्णिया जिले में रहने वाले सुरेश वर्मा आठ साल पहले बेहतर जिंदगी की तलाश में औद्योगिक नगरी फरीदाबाद आए थे। शुरू में उन्होंने एक फैक्ट्री में नौकरी की लेकिन चार साल पहले फैक्ट्री में छंटनी के कारण उनकी नौकरी चली गई। नौकरी छूटते ही उन्होंने पहले मजदूरी और फिर राजमिस्त्री का काम शुरू कर दिया। लॉकडाउन ने उनका यह काम भी छीन लिया। उनके सामने अब भोजन का संकट आ खड़ा हुआ है। रुआंसे सुरेश बताते हैं, “सरकार हमें गांव भिजवाने का इंतजाम कर देती तो अच्छा होगा। अगर मरना ही है तो अपने गांव में मरते।”  

सुरेश कहते हैं, “लॉकडाउन से पहले सब ठीक चल रहा था। थोड़ा कमाई ठीक हुई तो गांव से बच्चे भी ले आया, ताकि यहां कुछ पढ़ लिख जाएं। एक सात साल का है तो दूसरा चार साल का। पास के ही एक स्कूल में पढ़ने जाते हैं।”

सुरेश 24 मार्च को देशभर में एक साथ लगे लॉकडाउन के बाद अपने घर नहीं लौट सके। उन्होंने सोचा था कि कुछ दिन में सब ठीक हो जाएगा। लेकिन 14 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन अवधि बढ़ाने की घोषणा की तो हिम्मत जवाब दे गई। अब वह किसी भी तरह अपने घर-गांव लौटना चाहते हैं। 

सुरेश ने हरियाणा के भवन एवं अन्य निर्माण मजदूर कल्याण बोर्ड में भी अपना पंजीकरण कराया है। इसकी फीस के रूप में वह हर साल 20 रुपए देते हैं। हरियाणा सरकार ने घोषणा की है कि बोर्ड के पास जमा पैसे से हर मजदूर को हर सप्ताह 1,000 रुपए देंगे। सुरेश बताते हैं कि अभी तक तो पैसा नहीं आया है, लेकिन आ भी गया तो बैंक कैसे जाएंगे? 

हरियाणा ही नहीं, लगभग सभी राज्यों में भवन एवं अन्य निर्माण मजदूर अधिनियम 1996 के तहत राज्यों में मजदूरों के लिए कल्याण बोर्ड बना हुआ है। इसका मकसद निर्माण मजदूरों को अलग-अलग स्कीम के तहत सहायता उपलब्ध कराना है। भारत में कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिए जब 24 मार्च 2,020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 दिन के देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की तो उसके बाद प्रवासी मजदूरों में अफरातफरी मच गई। इसे रोकने के लिए 25 मार्च 2020 को केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार का बयान आया कि सभी राज्य सरकारों से कहा गया है कि वे अपने राज्य में बने भवन एवं अन्य निर्माण मजदूर (बीओसीडब्ल्यू) कल्याण बोर्ड में जमा पैसे से मजदूरों को आर्थिक सहायता दें।

बयान में यह भी बताया गया कि इन बोर्डों के पास 52 हजार करोड़ रुपए जमा हैं और इन बोर्डों में 3.5 करोड़ मजदूर पंजीकृत हैं। केंद्र के इस बयान के बाद राज्य सरकारों ने अपने-अपने हिसाब से आर्थिक मदद की घोषणाएं कर दीं। 

हरियाणा सरकार ने घोषणा की कि लॉकडाउन की अवधि तक हर सप्ताह 1,000 रुपए हर मजदूर को दिए जाएंगे। लेकिन 30 अप्रैल को जब डाउन टू अर्थ ने सुरेश से बात की तो तब तक उसे यह पैसा नहीं मिला था। 

हरियाणा में भवन निर्माण मजदूरों पर काम कर रही संस्था हरियाणा निर्माणकर्ता मजदूर सभा के अध्यक्ष जगदीप वालिया बताते हैं कि सरकार ने पैसा देने की घोषणा तो कर दी, लेकिन कई दिन तक तो श्रम विभाग के अधिकारी कर्मचारियों को पता ही नहीं था कि पैसा कैसे मिलेगा? हमने बार-बार श्रम विभाग और बोर्ड के अधिकारियों से बात की, तब जाकर 18 अप्रैल को बोर्ड के अधिकारियों ने बताया कि कुछ मजदूरों को बैंक खाते में पैसा ट्रांसफर नहीं हो पा रहा है, क्योंकि उनका खाता आधार से लिंक नहीं है। वह बताते हैं, “हमें फरीदाबाद के 1,606 और पलवल के 1,466 मजदूरों की सूची दे दी गई है, जिनके खाते आधार कार्ड से लिंक नहीं हैं। लॉकडाउन और कोरोनावायरस के इस भय भरे माहौल में पहले मजदूरों को आधार कार्ड लिंक कराने के लिए बैंकों की लाइन में लगना पड़ेगा। तब उनके पास पैसा आएगा।” 

दूसरी तरफ सरकार का दावा कुछ और है। सरकार की ओर से कोविड-19 के अपडेट्स को लेकर रोजाना की जा रही प्रेस कॉन्फ्रेंस में 8 अप्रैल 2020 को गृह मंत्रालय की संयुक्त सचिव सहेली घोष राय ने बताया कि 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में निर्माण मजदूर बोर्डों ने सेस फंड से 1,000 से लेकर 6,000 रुपए तक देने की घोषणा की है और अब तक करीब 2 करोड़ निर्माण मजदूरों को 3,000 करोड़ रुपए दिए जा चुके हैं।

सरकार के दावों पर सवाल खड़े करते हुए निर्माण मजदूरों की राष्ट्रीय अभियान समिति (एनसीसी-सीएल) ने 14 अप्रैल को लिखे एक पत्र में कहा कि जो आंकड़े दिए जा रहे हैं, वे निराधार हैं। समिति ने दावा किया कि सबसे अधिक निर्माण मजदूर (1.21 करोड़ से अधिक) उत्तर प्रदेश में हैं। 30 जून 2017 तक इनमें से 36 लाख मजदूर ही बोर्ड में पंजीकृत थे। 5 अप्रैल 2020 को श्रम विभाग के प्रमुख सचिव के पत्र में बताया गया कि उत्तर प्रदेश निर्माण मजदूर कल्याण बोर्ड के पास केवल 10.92 लाख मजदूरों का बैंक खातों का विवरण उपलब्ध है। राज्य सरकार ने पंजीकृत मजदूर को 1,000 रुपए देने की घोषणा की है। यानी उत्तर प्रदेश कुल मिलाकर केवल 109.2 करोड़ रुपए ही दे सकता है। यदि सबसे अधिक पंजीकरण वाले राज्य उत्तर प्रदेश में ही केवल 109 करोड़ रुपए दिए गए तो सभी राज्यों का मिलाकर 3,000 करोड़ रुपए कैसे हो सकता है।

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