Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/mediavigil-teesari-dunia-plight-of-hindu-refugees-from-bhutan-and-caa.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | तीसरी दुनिया: भूटान के डेढ़ लाख हिंदू शरणार्थियों की उपेक्षा में छुपा है CAA का पाखण्ड | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

तीसरी दुनिया: भूटान के डेढ़ लाख हिंदू शरणार्थियों की उपेक्षा में छुपा है CAA का पाखण्ड

-मीडियाविजिल,

तीसरी दुनिया यानी एशिया, अफ्रीका और लातिन अमेरिका के विकासशील देश जिनकी खबरें 1980 के दशक के बाद से ही बड़े सुनियोजित ढंग से हाशिए पर पहुंचती चली गईं। सारा स्पेस विकसित देशों ने ले लिया- बेशक, तीसरी दुनिया के देशों के अंदर ‘पहली दुनिया’ के जो छोटे-छोटे टापू थे उनके बाशिंदों को भी थोड़ी बहुत जगह मिलती रही।

आज हम स्पष्ट तौर पर देख रहे हैं कि अमेरिका सहित विकसित देशों में दक्षिणपंथी राजनीति का बोलबाला है और इटली तथा जर्मनी में भी वे फासिस्ट ताकतें मजबूत होती गई हैं जिन्हें दशकों पहले दफना दिया गया था। हमारे यहां भारत में भी ऐसी ही स्थिति है। 1975 में इमरजेंसी के दौरान हम तानाशाही का स्वाद ले चुके हैं (जिसे हम सामान्य बोलचाल में फासीवाद कह देते थे) लेकिन अब हमें फासीवाद का प्रारंभिक चरण देखने को मिल रहा है। दक्षिण एशिया के अन्य देशों में औपचारिक जनतंत्र किसी न किसी रूप में गिरते-पड़ते बचा हुआ है- सिवाय भूटान के जहां पूर्ण राजतंत्र से अब संवैधानिक राजतंत्र की स्थिति है। नेपाल में संवैधनिक राजतंत्र समाप्त कर पूर्ण जनतंत्र की स्थापना 2008 में ही हो गयी थी।

अफ्रीकी देशों में अजीब स्थिति है। अफ्रीका अकेला ऐसा महाद्वीप है जिसके कम से कम 15 राजनेता ऐसे हैं जिन्होंने अपने देश पर 27 वर्ष से लेकर 41 वर्ष तक शासन किया। जिम्बाब्वे के दिवंगत राष्ट्रपति राबर्ट मुगाबे के बारे में तो काफी लोगों को पता है कि उन्होंने 36 वर्षों तक शासन किया, लेकिन बेनिन, कैमरून, चाड, कांगो, इरीट्रिया, मलावी, उगांडा, आइवरी कोस्ट जैसे कई देश इस श्रेणी में आते हैं। उगांडा में वर्तमान राष्ट्रपति मुसेवेनी 1986 से ही सत्ता में हैं। यही स्थिति कैमरून में है जहां राष्ट्रपति पाल बिया 1982 से सत्ता में हैं। इन देशों में जनतांत्रिक ढंग से चुनाव होते हैं और इन्हें भी जनतांत्रिक देशों की श्रेणी में ही रखा जाता है। एक अध्ययन के अनुसार अफ्रीका के 15 देश ऐसे हैं जहां ‘दोषपूर्ण जनतंत्र’ है और 16 देश ऐसे हैं जहां ‘विशुद्ध रूप से निरंकुश’ शासन है। अभी जिन देशों का उल्लेख किया गया है वे पहली श्रेणी वाले देशों में आते हैं। इससे कल्पना की जा सकती है कि दूसरी श्रेणी वाले देशों में रहने वाले नागरिकों की क्या स्थिति होगी। वैसे, तानाशाही ताकतों के खिलाफ अफ्रीकी देशों में प्रतिरोध का इतिहास भी काफी शानदार है जिसकी अभिव्यक्ति खासतौर पर नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका, घाना, केन्या, अंगोला, सेनेगल आदि देशों के विपुल साहित्य में हमें देखने को मिलती है।

पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.