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लॉकडाउन में फंसे प्रवासी मजदूरों के सामने खाने का संकट, मानवाधिकार संगठनों ने मांगा सबके लिए मुफ्त राशन

-गांव कनेक्शन, 

"हम अगले 20 दिन क्या, 50 दिन भी यहीं रूक जाएं, लेकिन हमें खाने के लिए राशन-पानी तो मिले," लॉकडाउन बढ़ने के सवाल पर हेमंत पोद्दार कहते हैं। हेमंत (30 वर्ष) बिहार के कटिहार जिले के निवासी हैं और मुंबई के बांद्रा इलाके में रहकर निर्माण मजदूर का काम करते हैं। उनके साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के लगभग 600 मजदूर उनके इलाके में रहते हैं, जिसका नाम खेरवाड़ी नाका है। "लॉकडाउन के इस समय में हम मजदूरों के लिए सबसे बड़ी दिक्कत राशन-पानी की आ रही है। जेब की जमा-पूंजी सब खत्म हो रही है। यहां का राशन कार्ड भी नहीं है कि सरकारी राशन मिल पाए। सरकारी कैम्प में कहीं-कहीं बना बनाया खाना मिल रहा है, जो हमारे इलाके से बहुत दूर है। रास्ते में पुलिस वाले बहुत मारते हैं, इसलिए वहां जाना बहुत मुश्किल है। कुल मिलाकर हम लोग आधे पेट ही खाना खा रहे हैं। कोरोना से मरने से पहले हो सकता है कि हम लोग भूखमरी से ही मर जाएं,"

हेमंत की बातों में क्षोभ और निराशा एक साथ झलकती है। हेमंत जैसे ही हालात मानेसर में रहने वाले सुरेश, नोएडा के हरौला में रहने वाले एहसान, दिल्ली के सदर बाजार मंडी में रहने वाले विकास यादव और सूरत की मशहूर हीरा मंडी के पास रहने वाले आत्माराम की है। ये सभी प्रवासी मजदूर अपना गांव, अपना राज्य छोड़कर इन शहरों की तरफ इसलिए आए थे, ताकि उन्हें कभी खाने की समस्या ना हो, लेकिन लॉकडाउन के इस समय में इनके सामने सबसे बड़ी समस्या खाने को लेकर ही आ रही है। केंद्र सरकार ने लॉकडाउन की घोषणा के बाद सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत देश के लगभग 80 करोड़ गरीब लोगों को हर महीने के नियमित राशन के साथ ही प्रति व्यक्ति 5 किलो अतिरिक्त गेहूं या चावल और एक किलो दाल मुफ्त देने की बात कही थी। केंद्रीय खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग के मंत्री राम विलास पासवान ने कहा था कि इससे देश की दो तिहाई से अधिक जनसंख्या को लॉकडाउन के इस चुनौतीपूर्ण समय में खाद्यान्न सुविधा का लाभ मिलेगा, जो कि नागरिकों के 'भोजन के अधिकार' के अंतर्गत आता है। लेकिन लॉकडाउन के बाद औद्योगिक शहरों से प्रवासी मजदूरों की जो तस्वीरें निकल कर सामने आ रही हैं, वे कुछ और ही हालत को बयां कर रही हैं। मुफ्त राशन की सुविधा का यह लाभ उन लोगों को नहीं मिल पा रहा है, जिनके पास या तो राशन कार्ड नहीं है या जो अपने काम के सिलसिले में अपने घर से दूर दूसरे शहरों और राज्यों में रहते हैं। ऐसे प्रवासी मजदूरों की संख्या लाखों में है, जिनके पास कोरोना लॉकडाउन के इस समय में खुद को सुरक्षित रखने के लिए कमरा तो है, लेकिन राशन नहीं होने की वजह से वे लोग रात को भूखे या आधे पेट सोने को मजबूर हैं।

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