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वापस लौटने लगे प्रवासी मजदूर, फिर जुड़ा पूरब का पंजाब से रिश्ता

-गांव कनेक्शन,

कोरोना वायरस और लॉकडाउन की वजह से पूरब का पंजाब से रिश्ता एकबारगी टूट गया था। यहां रोजी-रोटी कमा रहे दस लाख से ज्यादा मजदूर वापस उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड लौट गए थे। इतने बड़े पैमाने पर हुए प्रवासी श्रमिक पलायन ने सूबे के किसानों और उद्योगपतियों को गहरी चिंता में डाल दिया था। मध्य जून को धान रोपाई शुरू होती है और धीरे-धीरे इंडस्ट्री भी शुरू हो रही है। अन्य काम-धंधे भी, जिनसे बड़ी तादाद में प्रवासी कामगार जुड़े हुए थे। अब प्रवासी पुरबिया मजदूर वापस पंजाब लौट रहे हैं। यानी पूरब का पंजाब से रिश्ता फिर जुड़ने लगा है। गौरतलब है कि इस बार प्रवासी मजदूर 'आ' नहीं रहे बल्कि उन्हें पूरे आदर-मान के साथ 'लाया' जा रहा है।

राज्य के किसान और उद्यमी उन्हें अपने खर्च पर परिवहन व्यवस्था मुहैया करके उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड से ला रहे हैं। उनकी आमद का सिलसिला दिन-प्रतिदिन रफ्तार पकड़ रहा है। फिलहाल आने वालों में ज्यादा तादाद खेत मजदूरों की है, जबकि उद्योगपतियों ने प्रवासी श्रमिकों को पंजाब लौटा लाने के लिए उनके टिकट बुक करवाने शुरू कर दिए हैं। अग्रिम राशि भी उनके खातों में डाली जा रही है। एक पखवाड़े के भीतर अकेले मालवा से 17 ट्रांसपोर्ट कंपनियों की 300 बसें उत्तर प्रदेश और बिहार भेजी गईं जो 10 हजार से ज्यादा मजदूरों को लेकर लौटी हैं।

ट्रांसपोर्टर गुरदीप सिंह के मुताबिक बसों के कई फेरे लगे हैं और उनके पास जून के अंत तक की बुकिंग है। मालवा में बड़े पैमाने पर धान की खेती होती है और रोपाई के लिए स्थानीय किसान पूरी तरह से प्रवासी मजदूरों पर निर्भर रहते हैं। इस बार वे दिक्कत में थे कि प्रवासी मजदूर नहीं आए तो फसल कैसे रोपी जाएगी।

बरनाला के शेरपुर बड़ी के किसान भाइयों गुरमेल सिंह व बलजिंदर सिंह के पास 100 एकड़ से ज्यादा जमीन है। दशकों से सीजन के समय वे सिर्फ धान की खेती करते हैं। 1970 के बाद जून महीने में उनके खेत पूरी तरह से प्रवासी मजदूरों के हवाले हो जाते हैं। गुरमेल और बलजिंदर चिंता में थे कि इस बार प्रवासी मजदूर नहीं आ रहे तो क्या होगा? उन्होंने अपने आसपास के तपा, धनौला, महलकलां, शैहणा, भदौड़, फरवाही, खुड्डी, कैरे, ठीकरीवाला आदि गांवों के किसानों को एकजुट किया और प्रशासन से बात की। ऑनलाइन आवेदन के बाद पास हासिल करके वे खुद बसों में बैठकर अन्य राज्यों में गए और किसानों को लेकर आए। यह सिलसिला जारी है।

गुरमेल सिंह बताते हैं कि एक बस का खर्च करीब 50 से 60 हजार रुपए आता है और किसान इसे अपनी जेब से दे रहे हैं। खुद इसलिए जाना पड़ रहा है कि मजदूर आने को आसानी से तैयार नहीं। ज्यादा पारिश्रमिक और बेहतर रखरखाव तथा सुविधाओं के आश्वासन पर उन्हें लाया जा रहा है। तपा के संपन्न किसान आकाशदीप सिंह के अनुसार, प्रवासी मजदूरों के बगैर पंजाबी किसानों का वजूद ही नहीं है।

बरनाला के उपायुक्त तेज प्रताप सिंह फूलका कहते हैं, "किसानों की मांग पर उन्हें राज्य से बाहर जाने की अनुमति पास बनाकर दिए गए। एसडीएम ऑफिस की निगरानी में बसें भेजी गईं। मजदूर पहुंचते हैं तो सबसे पहले सेहत विभाग उनकी पूरी जांच करता है और उसके बाद उन्हें खेतों में काम करने की मंजूरी दी जाती है। वे निगरानी में हैं लेकिन क्वारंटाइन नहीं किए गए।"

भारतीय किसान यूनियन-लक्खोवाल भी प्रवासी मजदूरों को लाने के लिए बसों का बंदोबस्त कर रही है। यूनियन के अध्यक्ष जगजीत सिंह सीरा के अनुसार, "धान की रोपाई सिर पर है और किसान श्रमिकों की किल्लत से जूझ रहे थे। फिलहाल तक हमने 80 बसें भेजी हैं, जो चक्कर लगाकर मजदूरों को ला रही हैं। प्रवासी मजदूर नहीं आएंगे तो पंजाब के किसान तबाह हो जाएंगे। मेरे खुद के गांव में ही 4500 एकड़ जमीन पर धान की रोपाई की जानी है और सिर्फ डेढ़ सौ मजदूर उपलब्ध हैं, जो नाकाफी हैं। सूबे में किसानों को उत्तर प्रदेश और बिहार से श्रमिकों के आने का बेसब्री से इंतजार रहता है।"

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