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किसानों से ज्यादा निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने वाले मोदी सरकार के हालिया कृषि अध्यादेश

-कारवां,

उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के टोला गांव के रामसेवक चार बीघे के किसान हैं. हाल ही में नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा अध्यादेश लाकर किए गए खेती से संबंधित पुराने कानून में संशोधन और दो नए कानूनों का जिक्र करते हुए वह कहते हैं, "हम कानून-आनून नईं जानत, जो कछू जानत हैं, वो इत्तो कि हमाये खेत, हमाई मेहनत, हम का बोएं, का पैदा करें, कोऊ दूसरो कैसे बता सकत!" ठेका खेती के बारे में उनका कहना था, ''बाकी सब तो ठीक है, कोई यह कैसे बता सकता है कि मैं अपने खेत में क्या बोऊं और क्या नहीं? खेत मेरे, मेहनत मुझे करनी है, जो पैदा होगा उससे नफा-नुकसान मेरा और कोई तीसरा आदमी आकर कहे कि भाई तुम फलां चीज की खेती करो तो मुनाफा ज्यादा होगा, किसको पागल बना रहे हो?''

मोदी सरकार की तमाम सफल-असफल स्कीमों में से एक है 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करना. 28 फरवरी 2016 को बरेली की एक किसान रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों को संबो​धित करते हुए कहा था कि साल 2022 में जब देश स्वतंत्रता की 75वीं सालगिरह मनाएगा, उस समय तक उनकी आय दोगुनी हो चुकी होगी. बीते फरवरी को इस घोषणा के चार साल हो गए, लेकिन अभी तक इसका कोई सटीक आकलन नहीं हुआ है कि किसानों की आय कितनी बढ़ी. अगर बढ़ी भी है तो क्या 2022 तक दोगुनी हो पाएगी?

किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सरकार ने योजनाएं खूब घोषित कीं. घोषित की गई योजनाओं में ई-नैम, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सम्मान प्रमुख हैं. इसमें से कोई भी इकलौती या समग्र रूप में ऐसी नहीं है, जिसके भरोसे पर कहा जा सके कि किसानों की हालत सुधारने के लिए यही कारगर उपाय हैं. लेकिन सरकार अभी भी अड़ी हुई है कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करके रहेगी.

योजनाओं और कानूनों के इस मकड़जाल को आगे बढ़ाते हुए सरकार ने 5 जून को एक पुराने कानून (आवश्यक वस्तु अधिनियम) में संशोधन सहित दो नए कानूनों "फार्मर एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्युरेंस एंड फार्म सर्विसेज आर्डिनेंस (एफएपीएएफएस 2020)” और "द फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स प्रमोशन एंड फेसिलिएशन, (एफपीटीसी2020)" को अध्यादेश के जरिए लागू किया है. इन कानूनों को लागू करते समय कहा गया कि इससे किसानों को उनकी उपज के सही दाम मिलेंगे और उनकी आय में बढ़ोत्तरी होगी.

देशभर के किसान संगठन, मंडी समितियों में काम करने वाले छोटे व्यापारी और कर्मचारी इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि देश की अर्थव्यवस्था में 40 प्रतिशत योगदान देने वाले किसानों की समस्याओं को हल करने के लिए सरकार अध्यादेश के जरिए कानून बना रही है. जो कानून बनाए गए हैं, उनसे किसानों से ज्यादा बड़े व्यापरियों और कंपनियों को लाभ होगा. सरकार जिसे किसानों की मुक्ति का मार्ग बता रही है दरअसल वही उनके लिए सबसे बड़ा बंधन बनने जा रहे हैं.

जिन किसानों के लिए ये कानून बनाए गए हैं, उन्हें या तो इन कानूनों के बारे में जानकारी नहीं है या वे इन कानूनों को फायदे से ज्यादा नुकसान के तौर पर देख रहे हैं. इस मसले पर मैंने उनकी राय जानने की कोशिश की.

छतरपुर जिले के बरा गांव के किसान कपिल कहते हैं, "मैं अभी 35 बीघा के लगभग, फसल चक्र और अपनी सुविधा के अनुसार सोयाबीन, मिंट, मूंगफली, गेंहू और चने की खेती करता हूं. मेरे खेत भी इन फसलों के लिहाज से ठीक हैं." कपिल पूछते हैं कि कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग में ऐसा संभव है? वह बताते हैं “कोई भी कंपनी हर एक किसान के साथ अलग-अलग कॉन्ट्रेक्ट तो करेगी नहीं. और जब ऐसा नहीं होगा, तो ये उसकी मर्जी और जरूरत पर निर्भर करेगा कि वो जिस चीज की खेती कराए. तब हमें उसकी जरूरत के हिसाब से ही फसलों का उत्पादन करना पड़ेगा और जब ऐसा हो जाएगा, तब हमें बीज-खाद से लेकर फसल बेचने तक के लिए उनका मुंह ताकना पड़ेगा. वही फसलों के दाम तय करेगी. किसान से कब फसल खरीदेगा, कब भुगतान करेगा, सब कुछ उस कंपनी या व्यापारी के हाथ में होगा और तरह हम अपनी ही जमीन पर मजदूर बन जाएंगे."

किसान संगठनों की तरफ से भी इन कानून का विरोध हो रहा है. अखिल भारतीय किसान सभा के नेता अमराराम फोन पर बात करते हुए कहते हैं, “सरकार ने इन कानूनों को बनाकर साफ कर दिया कि किसानों का हित उसकी सूची में नहीं हैं. अगर होता तो ऐसे कानून नहीं बनाती.” अपनी बात जारी रखते हुए उन्होंने कहा, “सरकार ने कानून के जरिए पूरी कृषि का निजीकरण किया है. कृषि सुधारों और किसानों की आय बढ़ाने के नाम पर सरकार पूरी कृषि व्यवस्था को एग्रो-बिजनेस से जुड़ी बड़ी कंपनियों के हवाले करने जा रही है. ये काफी चिंताजनक है. 1991 में हुए आर्थिक सुधारों का खेती पर बहुत बुरा असर सामने आया है. नतीजे के तौर पर 30 सालों में 3.5 लाख से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं. ऐसे में अब अगर ये नए कानून लागू हुए तो भारत की कृषि व्यवस्था पूरी तरह से बदल जाएगी, किसान अपनी ही जमीन में मजदूर बन जाएंगे और ये सब चंद लोगों के मुनाफे के लिए कानून बनाकर किया जा रहा है.” 

महज एक कानून बनाकर सरकार ने भारत में कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग को कानूनी बना दिया है. ये अमेरिका और ऑस्ट्रलिया जैसे देशों का कृषि मॉडल है, जहां के किसान हजारों एकड़ में खेती करते हैं. इसके एवज में वहां की सरकारें उनको तमाम सब्सिडी और सुविधाएं देती हैं. इसके उलट भारत में 85 प्रतिशत के लगभग किसान छोटी जोत वाले हैं, जिनको सुविधाओं के नाम पर केवल 'एमएसपी' मिलती है, वो भी इतनी कम है कि उससे उनकी फसलों की लागत तक निकलना मुश्किल होता है, मुनाफा तो दूर की बात है.

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