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किसान हित के दावों के बीच सरकार ने लक्ष्य के मुकाबले छह फीसदी से भी कम दालें और तिलहन खरीदा

-द वायर,

मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीन विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ छह महीने से भी अधिक समय से चल रहे आंदोलनों के बीच केंद्र ने साल 2021-22 की खरीफ फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा की है.

भाजपा और केंद्र सरकार इस मौके को किसानों के प्रति अपनी छवि सुधारने के रूप में इस्तेमाल कर रही है, जहां केंद्रीय मंत्रियों से लेकर भाजपा के नेता एवं कार्यकर्ता तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘किसान हितैषी’ बताने की होड़ में लगे हुए हैं.

मोदी ने भी बीते नौ जून को ट्वीट कर कहा था, ‘अन्नदाताओं के हित में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी को मंजूरी दी है. कई फसलों के एमएसपी में वृद्धि से किसान भाई-बहनों की आय बढ़ने के साथ उनके जीवन स्तर में भी सुधार होगा.’

हालांकि हकीकत ये है कि जहां एक तरफ केंद्र द्वारा घोषित एमएसपी, कृषि लागत की तुलना में काफी कम होती है, वहीं दूसरी तरफ सरकार जो भी एमएसपी घोषित कर रही है, उसका भी लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है. इसका सबसे ज्यादा खामियाजा दालें (दलहन) और तिलहन का उत्पादन करने वाले किसानों को उठाना पड़ रहा है.

खुद सरकारी फाइलें इस स्थिति की तस्दीक करते हैं. आलम ये है कि पिछले खरीफ सीजन, यानी कि 2020-21 के दौरान मोदी सरकार ने जितनी दालें एवं तिलहन खरीदने का लक्ष्य रखा था, उसकी तुलना में छह फीसदी से भी कम खरीदी हुई है.

इतना ही नहीं, सरकारी रेट पर दाल एवं तिलहन बेचने के लिए रजिस्ट्रेशन कराए 8.93 लाख किसानों से खरीद नहीं हुई. दूसरे शब्दों में कहें, तो सरकार ने ऐसे कुल किसानों में से महज 16 फीसदी से ही उनकी उपज खरीदा है.

द वायर  द्वारा सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेजों से पता चलता है कि कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने खरीफ 2020-21 सीजन में 51.91 लाख टन दालें (तुअर, मूंग, उड़द ) एवं तिलहन (मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी, तिल) खरीदने का लक्ष्य रखा था. लेकिन इसमें से महज 3.08 लाख टन खरीदी हो पाई है.

इस दौरान अपनी उपज बेचने के लिए 10.60 लाख किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया था, लेकिन इसमें से 1.67 लाख किसानों से ही सरकार ने दाल एवं तिलहन खरीदा.

बता दें कि कृषि मंत्रालय केंद्रीय खरीद एजेंसी नैफेड के जरिये ‘प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण योजना (पीएम-आशा)’ में शामिल मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत दालें, तिलहन एवं खोपरा (सूखा नारियल) की एमएसपी पर खरीदी करता है.

अक्टूबर 2018 में इस योजना को इसलिए लॉन्च किया गया था ताकि गेहूं, धान के अलावा इन फसलों के किसानों को भी एमएसपी दिलाया जाए, ताकि उनकी आय में बढ़ोतरी हो.

कृषि कानूनों के खिलाफ धरने पर बैठे प्रदर्शनकारियों की एक प्रमुख मांग यही है कि एमएसपी की कानूनी गारंटी दी जाए कि कोई भी खरीददार एमएसपी से कम कीमत पर कृषि उपज को नहीं खरीदेगा और यदि कोई ऐसा करता है तो उस पर कानूनी कार्रवाई हो.

हालांकि आंकड़े दर्शाते हैं कि कोरोना महामारी के बीच भी सरकारों ने कृषि संकट के प्रति गंभीरता का परिचय नहीं दिया है.

फसल-वार और राज्य-वार इनका विवरण इस प्रकार है:

तुअर

दस्तावेजों के मुताबिक, भारत सरकार ने खरीफ 2020-21 सीजन में 7.20 लाख टन तुअर खरीदने का लक्ष्य रखा था, जिसमें से महज 11 हजार टन की खरीद हुई है.

केंद्र ने कर्नाटक से 2.10 लाख टन, महाराष्ट्र से 2.89 लाख टन, तेलंगाना से 77,000 टन, गुजरात से 66,350, ओडिशा से 38,325 टन खरीदने की योजना बनाई गई थी.

लेकिन कर्नाटक से सिर्फ 8,969 टन, महाराष्ट्र से 1,246 टन, तेलंगाना से शून्य, गुजरात से 572 टन, ओडिशा से कुछ भी नहीं और आंध्र प्रदेश से 184.55 टन की खरीद हुई.

सरकार ने इतनी कम खरीद ऐसे समय पर की जब तुअर (अरहर) का औसत बाजार मूल्य एमएसपी की तुलना में 3.9 फीसदी कम था.

पिछले सीजन में तुअर की एमएसपी 6,000 रुपये प्रति क्विंटल थी, यानी सरकारी खरीद न होने पर किसानों को कम कीमत पर कृषि उत्पाद बेचना पड़ा.

बाजार मूल्य की जानकारी देने वाले कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के पोर्टल एगमार्कनेट और आर्थिक एवं सांख्यिकी
िदेशालय
 के आंकड़ों के मुताबिक, एमएसपी के मुकाबले बाजार मूल्य सबसे ज्यादा कम मध्य प्रदेश (-14.1%) में रहा. इसके अलावा तुअर का बाजार मूल्य उत्तर प्रदेश में एमएसपी की तुलना में सात फीसदी और गुजरात में 6.3 फीसदी कम था.

एगमार्कनेट देश भर की 3000 से अधिक थोक मंडियों में कृषि उत्पादों की आवक एवं उनके बिक्री मूल्यों की जानकारी देता है.

मध्य प्रदेश में अक्टूबर 2020 से फरवरी 2021 के बीच 128 दिनों में से 109 दिन बाजार मूल्य एमएसपी से कम रहा. वहीं इसी दौरान गुजरात में 139 दिन में से 101 दिन और उत्तर प्रदेश में 151 दिन में से 149 दिन बाजार मूल्य एमएसपी से नीचे रहा.

इसी तरह कर्नाटक में 129 दिन में से 73 दिन और महाराष्ट्र में 137 दिन में से 84 दिन बाजार मूल्य एमएसपी से कम था.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.