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जिस टेलिकॉम ने मुकेश अंबानी को नई बुलंदियां दी हैं उसी ने अनिल अंबानी को सड़क पर कैसे ला दिया?

-सत्याग्रह,

1920 के दशक में शुरू हुई डासलर ब्रदर्स शू फैक्ट्री नाम की एक कंपनी ने कुछ ही साल में जर्मनी में धूम मचा दी थी. खिलाड़ियों के लिए जूते बनाने वाली इस कंपनी को एडोल्फ और रुडोल्फ नाम के दो भाई चलाते थे. एडोल्फ ने कंपनी शुरू की थी और बाद में उनके बड़े भाई रुडोल्फ भी उनके साथ आ गए. सब बढ़िया चल रहा था. लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के बाद मामला बिगड़ गया. हुआ यह कि युद्ध खत्म होने पर रुडोल्फ को अमेरिकी सैनिकों ने हिरासत में ले लिया. उन पर आरोप लगाया गया कि वे नाजी पार्टी की हथियारबंद इकाई के सदस्य थे. लेकिन यह सच नहीं था. हालांकि दोनों भाई नाज़ी पार्टी के सदस्य जरूर रहे थे.

रूडोल्फ को शक था कि उनके भाई ने उन्हें फंसाया है. रिश्ते में आई खटास बढ़ती गई और आखिर में भाइयों के रास्ते अलग हो गए. दोनों ने अपनी अलग-अलग कंपनियां बना लीं. रुडोल्फ ने अपने नाम के आधार पर कंपनी का नाम रखा रूडा. बाद में इसका नाम बदला गया और आज हम इसे प्यूमा के नाम से जानते हैं. उधर एडोल्फ ने अपने नाम के आधार पर जो कंपनी बनाई उसे दुनिया एडिडास के नाम से जानती है.

करीब एक दशक पहले जब आपसी झगड़े के बाद मुकेश और अनिल अंबानी ने अपनी राहें अलग कीं तो कुछ समय तक ऐसा ही लगा कि वे एडोल्फ और रुडोल्फ डासलर की राह पर हैं. विश्लेषक मान रहे थे कि यह झगड़ा कारोबार की दुनिया के लिए फायदेमंद होने वाला है. आंकड़े भी इसका इशारा कर रहे थे. 2007 में प्रतिष्ठित पत्रिका फोर्ब्स की धनकुबेरों की सूची में 43 अरब डॉलर की संपत्ति के साथ मुकेश पांचवें स्थान पर थे तो 42 अरब डॉलर के आंकड़े का साथ अनिल छठे. दोनों की कंपनियां तरक्की की गाड़ी पर सवार दिख रही थीं.

लेकिन जल्द ही हालात बदलने लगे. मुकेश अंबानी तो मजबूती से आगे बढ़ रहे थे लेकिन अनिल अंबानी की नाव हिचकोले खाने लगी. छोटे भाई के लिए हालात लगातार बद से बदतर होते गए और आज आलम यह है कि कुछ ही दिन पहले लंदन की एक अदालत में अनिल अंबानी ने कहा है कि उन्हें वकीलों की फीस देने के लिए घर के गहने बेचने पड़े हैं. मामला तीन चीनी बैंकों द्वारा अनिल अंबानी की कंपनियों को दिए गए करीब पांच हजार करोड़ रुपये के कर्ज का था जो नहीं चुकाया गया है. ये कंपनियां अब अनिल अंबानी की परिसंपत्तियां जब्त कर और उन्हें बेचकर अपना पैसा वसूलना चाहती हैं. हालांकि गहने बेचने वाली बातें तो उन्होंने अपने बचाव में कही होंगी लेकिन, यह तो साफ है कि अब वे 2007 वाले अनिल अंबानी की छाया मात्र भी नहीं हैं.

उधर, मुकेश अंबानी की कहानी बिल्कुल अलग है. करीब 89 अरब डॉलर की संपत्ति के साथ वे आज भी दुनिया के पांचवें सबसे अमीर शख्स हैं. इस साल उनकी दौलत में 22 अरब डॉलर से भी ज्यादा का इजाफा हुआ है. कुछ समय पहले उन्होंने करीब 453 करोड़ रु एरिक्सन को देकर अपने छोटे भाई को जेल जाने से बचाया था.

दिलचस्प बात यह है कि इन दोनों भाइयों के उतार और चढ़ाव के कारणों में एक कारक साझा रहा है और वह है दूरसंचार यानी टेलिकॉम. करीब एक साल तक चले तनाव के बाद जब मुकेश और अनिल अंबानी के बीच 2005 में रिलायंस का बंटवारा हुआ तो समूह का इंजन यानी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड यानी आरआईएल मुकेश अंबानी के हिस्से में आया था. उधर, जिस रिलायंस इन्फोकॉम को समूह के भविष्य का इंजन माना जा रहा था वह अनिल अंबानी के पास गया जिसे उन्होंने रिलायंस कम्यूनिकेशंस यानी आरकॉम नाम दिया. इस समझौते की रूपरेखा मां कोकिला बेन और अंबानी परिवार के कुछ अन्य शुभचिंतकों की निगरानी में बनी थी. जानकारों के मुताबिक उस समय मुकेश अंबानी ने बड़े भारी मन से रिलायंस इन्फोकॉम को छोड़ा था. इसकी वजह यह थी कि यह उनकी प्रिय परियोजना थी.

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