Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/multidisciplinary-studies-helpful-in-developing-environmental-understanding.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | पर्यावरण पर नई दृष्टि जरूरी | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

पर्यावरण पर नई दृष्टि जरूरी

-आउटलुक,

“बहुविषयक पढ़ाई पर्यावरण समझ विकसित करने में मददगार, मगर प्रयोगधर्मी शिक्षा भी अनिवार्य”
कई वर्षों से पर्यावरण इतिहास के पठन-पाठन से जुड़े होने के कारण यह गहरा एहसास है कि अर्थशास्त्र, भूगोल, जीव विज्ञान और रसायन विज्ञान जैसे विषयों पर जानकारी के अभाव में उसे ठीक से समझ पाना काफी मुश्किल है। इस मायने में पर्यावरण अध्ययन का संबंध बहुविषयक है। इसके दायरे में वह सब आता है जिससे मानव सभ्यता विकसित हुई और उसका ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य क्या है। हम न केवल जानवरों, पौधों, अन्य जीवों, पानी, मिट्टी, वायु, महासागर, पृथ्वी की पपड़ी, ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन और महासागर की धाराओं आदि का अध्ययन करते हैं, बल्कि लोगों के साथ उनके संबंधों का भी अध्ययन करते हैं। वे एक-दूसरे के साथ इस तरह गुथे हुए हैं कि विज्ञान और भूगोल से लेकर मानविकी तक जैसे कई विषय इसमें समा जाते हैं।

इसी मायने में नई शिक्षा नीति, 2020 में बहुविषयक पाठ्यक्रम का घोषित उद्देश्य लंबे समय से चली आ रही बाधा को कम कर सकता है। 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनपीई) को 1992 में ‘पर्यावरण संरक्षण’ को एक कोर के रूप में शामिल करने के लिए संशोधित किया गया था, जिसके आसपास एक राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा बाद में विकसित की गई थी। कक्षा 3 से 5 के छात्रों को स्कूलों में पर्यावरण के बारे में पढ़ाया जाता था। 2006 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद, पर्यावरण स्नातक स्तर पर भी अध्ययन का अनिवार्य विषय बन गया। भले ही पर्यावरण शिक्षा स्कूल पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा रही हो, यह जटिल पर्यावरणीय मुद्दों को हल करने से नहीं जुड़ी है। दुर्भाग्य से, सिर्फ किताबी पढ़ाई से छात्रों में पर्यावरण की समझ नहीं विकसित की जा सकती है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि एनपीई अपने समय से आगे का विचार था और पिछले कुछ दशकों में भारत ने उसके आधार पर ही तीव्र आर्थिक प्रगति की। लेकिन अब जब दुनिया में तेजी से जबरदस्त बदलाव हो रहे हैं, इसमें बदलाव की जरूरत थी। आज हमें जलवायु परिवर्तन जैसी नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग आज काफी अहम हो गया है। जब हम सतत विकास की बात करने लगे हैं तो यह जरूरी है कि हमारी शिक्षा नीति में पर्यावरण जागरूकता पर विशेष जोर हो और शिक्षा, समस्याओं को सुलझाने से जुड़ी हो।

हमें इस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है कि ऐसा क्यों है कि पर्यावरण के अच्छे और बुरे के बारे में बच्चों को पढ़ाए जाने के बावजूद समाज का व्यवहार नहीं बदला है। ज्ञान प्रदान करने के पारंपरिक तरीकों ने वांछित परिणाम नहीं दिया है।

इसका समाधान इस तथ्य में निहित है कि प्रकृति के साथ संबंध केवल प्रकृति में ही बनाया जा सकता है। यह केवल छात्रों के प्रकृति के साथ साक्षात्कार से सम्भव है। हमें उन्हें प्रयोगों में शामिल करना और चीजों को स्वयं बढ़ाना सिखाना होगा, ताकि वे प्रकृति प्रेमियों के रूप में विकसित हो सकें। पर्यावरण शिक्षा का बेहतर तरीका यह है कि छात्र शिक्षक वर्ग के साथ जंगल एवं विभिन्न स्थानों का भ्रमण कर सच्चाई का अनुभव करें। हमें स्कूलों में गार्डन स्थापित करना चाहिए जो न केवल छात्रों को पर्यावरण से जोड़ेगा, बल्कि उनके जीव विज्ञान के पाठों को भी जीवंत करेगा। इस तरह का सीखना न केवल आसान है, बल्कि स्थायी भी है। इसी तरह, रीसाइक्लिंग पर व्यावहारिक कौशल, कचरे का निपटारा और छात्रों को जैविक खेती की शिक्षा प्रदान की जा सकती है। इन सब की बात इस नई शिक्षा नीति में की गई है।

नई शिक्षा नीति में पर्यावरणीय जागरूकता, जल और संसाधन संरक्षण और स्वच्छता शामिल हैं; और स्थानीय समुदायों का सामना करने वाले महत्वपूर्ण मुद्दों के ज्ञान पर विशेष जोर दिया गया है। पर्यावरण शिक्षा में जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, अपशिष्ट प्रबंधन और स्वच्छता के विषयों को शामिल किया गया है। यह जैविक विविधता के संरक्षण, जैविक संसाधनों के प्रबंधन और जैव विविधता, वन और वन्यजीव संरक्षण के बारे में भी बात करता है। ये तत्व वास्तव में स्थायी भविष्य के लिए अनिवार्य हैं। हम जानते हैं कि शिक्षित आबादी आर्थिक विकास की कुंजी है। तेजी से वैश्वीकृत होती अर्थव्यवस्था में यह भी आवश्यक है कि आर्थिक विकास सतत विकास से जुड़ा हो। यह संयुक्त राष्ट्र के एक शीर्ष एजेंडे का हिस्सा भी है और इस पर भारत ने भी हस्ताक्षर किए हैं।

पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.