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किसानों और खेतिहर मजदूरों की खुदकुशी: पंजाब की जमीनी हकीकत बनाम सरकारी आँकड़े

-गांव सवेरा,

भारत में दुर्घटनावश मौतों और खुदकुशी पर राष्‍ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्‍यूरो (एनसीआरबी) के ताज़ा आंकड़े इस बात की ओर इशारा करते नज़र आते हैं कि देश में किसानों की आत्‍महत्‍या के मामलों में गिराव्रट आ रही है। मुख्‍यधारा का मीडिया जोरशोर से प्रचारित कर रहा है कि किसानों की खुदकुशी के मामले घटे हैं। इन रिपोर्टों के मुताबिक किसानों के मुकाबले अब खेतिहर मजदूर और दूसरे तबके के लोग ज्‍यादा खुदकुशी कर रहे हैं। देश में किसानों की खुदकुशी के मामले 2018 के 10356 से घटकर 2019 में 10281 पर आ गए जबकि खेतिहर मजदूरों की खुदकुशी का आंकड़ा 30132 से बढ़कर 32559 पर पहुंच गया।

इस मामले को जड़ से समझने के लिहाज से पंजाब में किसानों की खुदकुशी पर एक निगाह दौड़ाना जरूरी है जहां इस गंभीर मुद्दे को संबोधित करने के लिए घर-घर सर्वेक्षण किये गए हैं। पंजाब के तीन विश्‍वविद्यालयों- लुधियाना की पंजाब एग्रिकल्‍चरल सुनिवर्सिटी (पीएयू), पंजाबी युनिवर्सिटी पटियाला और अमृतसर की गुरुनानक देव युनिवर्सिटी- से मिली रिपोर्टें पर्याप्‍त स्‍पष्‍ट करती हैं कि किसानों की खुदकुशी की संख्‍या कितनी है और उसके पीछे के कारण क्‍या हैं। यह चौंकाने वाली बात है कि एनसीआरबी ने 2015 में किसानों की खुदकुशी पर विस्‍तृत रिपोर्ट छापी थी लेकिन इस बार की रिपोर्ट में उसने खुदकुशी के कारणों के विस्‍तार में जाने की ज‍हमत नहीं उठायी है।


NCRB और PAU के तुलनात्मक आँकड़े
पंजाब में किसानों और खेतिहर मजदूरों की खुदकुशी पर पीएयू, लुधियाना में किया गया एक अध्‍ययन छह जिलों की जनगणना पर केंद्रित था- लुधियाना, मोगा, भटिंडा, संगरूर, बरनाला और मानसा। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार 2014 से 2018 के बीच समूचे पंजाब में 1082 किसानों और खेतिहर मजदूरों ने खुदकुशी की है जबकि पीएयू का अध्‍ययन बताता है कि यह संख्‍या इसकी सा़ढ़े तीन गुना (3740) है। एनसीआरबी कहता है कि 2014 और 2015 में ऐसे 64 और 124 खुदकुशी के केस हुए जबकि पीएयू की रिपोर्ट के मुताबिक ये संख्‍या पंजाब के केवल छह जिलों में 888 और 936 थी।

इसी तरह 2016 में पीएयू के 518 मौतों के मुकाबले एनसीआरबी 280 केस गिनवाता है, 2017 में 611 के मुकाबले 291 और 2018 में 787 के मुकाबले 323 केस। यह जानना जरूरी है कि पंजाब के कुल 12729 गांवों में से पीएयू के सर्वे में सिर्फ 2518 गांव शामिल किये गए थे। यदि बचे हुए 10211 गांवों के मामले भी जोड़ लिए जाएं तो हकीकत पूरी तरह खुलकर सामने आ जाएगी।

सन 2018 के बाद से किसी भी युनिवर्सिटी या संस्‍थान ने ऐसा कोई सर्वे नहीं किया है हालांकि एनसीआरबी के अनुसार 2019 में 302 और 2020 में 257 खुदकुशी के मामले सामने आए। तीन विश्‍वविद्यालयों के सर्वे दिखाते हैं कि सन 2000 से 2018 के बीच पंजाब में खेती के क्षेत्र में करीब 16600 लोगों ने खुदकुशी की जिनमें 9300 किसान थे और 7300 खेतिहर मजदूर थे। इस तरह देखें तो रोजाना पंजाब में करीब दो किसान और एक खेतिहर मजदूर अपनी जान दे रहा है। इन आत्‍महत्‍याओं के पीछे बढ़ता कर्ज का बोझ है। किसानों की खुदकुशी के मामले में एक तीखा मोड़ आया है लेकिन इस मुद्दे पर लोकप्रिय विमर्श हकीकत को छुपाने की काफी जद्दोजेहद कर रहा है।

भारत में बड़े पैमाने पर आत्‍महत्‍याओं का रुझान नब्‍बे के दशक में नयी आर्थिक नीतियों के लागू होने के बाद देखने में आया। एनसीआरबी के मुताबिक 1997 से 2006 के बीच भारत में 1095219 लोगों ने खुदकुशी की जिनमें 166304 किसान थे। नब्‍बे के दशक के मध्‍य के बाद से अब तक किसानों की खुदकुशी की संख्‍या 4 लाख का आंकड़ा पार कर चुकी है। पिछले वर्षों की रिपोर्टों के मुताबिक आबादी के किसी भी तबके के मुकाबले किसानों में खुदकुशी की दर सबसे ज्‍यादा है। आम आबादी में एक लाख लोगों पर 10.6 लोग आत्‍महत्‍या करते हैं वहीं हर एक लाख किसानों पर 15.8 किसानों ने अपनी जान दी है।

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