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पैकेज बिना सब सूना

-आउटलुक,

“मुख्य आर्थिक सलाहकार के अनुसार दूसरा राहत पैकेज कोरोना का वैक्सीन आने के बाद, लेकिन पैकेज को अनिश्चितता से जोड़ना कितना उचित”

विक्रम देकाते की औरंगाबाद में डेक्सन कास्टिंग नाम की कंपनी है, जो दोपहिया वाहनों के लिए एल्युमिनियम कास्टिंग करती है। उन्होंने प्रॉपर्टी के एवज में एक एनबीएफसी से कर्ज ले रखा था। लॉकडाउन के दौरान कैशफ्लो घट गया तो इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम के तहत वर्किंग कैपिटल लोन लेने की सोची। एनबीएफसी के अलावा कई सरकारी और निजी बैंक गए, पर सरकार की शर्तों के विपरीत सब कोलैटरल मांग रहे हैं। पुराने कर्ज की ईएमआइ पर तीन महीने का मोरेटोरियम लिया है, लेकिन उससे ईएमआइ की अवधि 10-11 महीने बढ़ गई। चिंता है कि अगर फिर मोरेटोरियम लेना पड़ा तो ईएमआइ कई साल के लिए बढ़ जाएगी। स्थिति खराब हुई तो कर्मचारियों की छंटनी करनी पड़ेगी, हो सकता है कंपनी भी बंद करनी पड़े। इसलिए विक्रम चाहते हैं कि सरकार ऐसे कदम उठाए जिनसे मांग बढ़े और कैशफ्लो सुधरे।

आंकड़े

लेकिन सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार के.वी. सुब्रमण्यम के बयान के बाद विक्रम को भरोसा नहीं कि स्थिति जल्दी सुधरेगी। सुब्रमण्यम के अनुसार कोविड-19 महामारी का वैक्सीन तैयार होने के बाद सरकार दूसरा राहत पैकेज लेकर आएगी। उद्योग जगत तो तत्काल राहत की उम्मीद लगाए बैठा ही है, ज्यादातर अर्थशास्त्री भी मानते हैं कि सरकार जितनी देर करेगी, हालात उतने खराब होंगे। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर इनफॉर्मल सेक्टर एेंड लेबर स्टडीज से हाल ही रिटायर हुए और इंस्टीट्यूट ऑफ अप्लाइड मैनपावर रिसर्च के पूर्व महानिदेशक प्रो. संतोष मेहरोत्रा ने आउटलुक से कहा कि राहत पैकेज को वैक्सीन से जोड़ना सर्वथा अनुचित है। सरकार को कर्ज लेकर खर्च करने की जरूरत है। आइएचएस मार्किट के एपीएसी (एशिया-प्रशांत) चीफ इकोनॉमिस्ट राजीव विश्वास कहते हैं, कई वैक्सीन क्लिनिकल ट्रायल के चरण में हैं, सबसे एडवांस ऑक्सफोर्ड वैक्सीन ग्रुप का है और उसके भी दिसंबर से पहले पूरा होने की उम्मीद नहीं है। वैक्सीन के बाजार में आने की कोई तय समय सीमा नहीं है। इसलिए राहत पैकेज को अनिश्चित टाइमलाइन से नहीं जोड़ा जाना चाहिए, खासकर तब जब अर्थव्यवस्था घोर मंदी की ओर बढ़ रही हो और करोड़ों लोग इसकी मार झेल रहे हों। हालांकि कुछ अर्थशास्त्री मानते हैं कि इंतजार करने में बुराई नहीं। उद्योग चैंबर सीआइआइ की चीफ इकोनॉमिस्ट विदिशा गांगुली कहती हैं कि वैक्सीन का उपभोक्ता सेंटिमेंट पर सकारात्मक असर होगा, इसलिए उस समय सरकार जो भी खर्च करेगी उसका अर्थव्यवस्था पर असर भी अधिक होगा। सरकार के पास फंड की समस्या है और अतिरिक्त खर्च से रेटिंग घटने और वित्तीय अस्थिरता का खतरा रहेगा।

भारत में जुलाई में कोरोना संक्रमण 200% बढ़ा और मरने वालों की संख्या 116% बढ़ी। इसे रोकने के लिए राज्य सरकारें जब-तब लॉकडाउन कर रही हैं, जो अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में बड़ी बाधा बन रहे हैं। मैन्युफैक्चरिंग लगातार चौथे महीने गिरी, जुलाई की स्थिति जून से भी खराब है। इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज में मैलकम आदिशेषैया चेयर प्रोफेसर अरुण कुमार का मानना है कि शुरू में लॉकडाउन ठीक से लागू नहीं किया गया, इसलिए बार-बार ऐसा करना पड़ रहा है। डिमांड बढ़ाने के लिए मदद जरूरी है, खासकर उनकी जिनकी नौकरियां चली गई हैं। असंगठित क्षेत्र में 20 करोड़ नौकरियां गई हैं और ये गरीबी रेखा से नीचे चले गए हैं। इस तरह कुल 80 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं, इनके लिए सर्वाइवल पैकेज चाहिए। प्रो. अरुण कुमार के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र की तरह शहरों के लिए भी रोजगार गारंटी स्कीम की जरूरत है, क्योंकि अनेक ऐसे लोग हैं जिनकी नौकरी तो चली गई पर वे अपने गांव वापस नहीं गए या गांव से लौटकर तो आए, लेकिन शहरों में काम नहीं मिला है। सीएमआइई के अनुसार संगठित क्षेत्र में 1.4 करोड़ नौकरियां गई हैं, अनेक लोगों के वेतन में भी कटौती हुई है।

कुछ वस्तुओं की मांग बढ़ी पर यह कुछ इलाकों तक सीमित है। ग्रामीण इलाकों में शहरों की तुलना में पाबंदी कम है, इसलिए वहां मांग में वृद्धि है। वहां बेरोजगारी दर भी शहरों से कम है, लेकिन आगे मुश्किलें बढ़ सकती हैं। प्रो. मेहरोत्रा के अनुसार गांवों में लोगों को इसलिए काम मिला क्योंकि मार्च-अप्रैल में जब वे गांव लौटे तो उस समय फसल कटाई का मौसम था, उसके बाद खरीफ की बुवाई-रोपाई होने लगी। अब वहां कोई काम न होने के कारण मजदूर वापस शहर आना चाहते हैं, लेकिन शहरों में भी उनके लिए काम की कमी है। कंस्ट्रक्शन का काम पूरी तरह शुरू नहीं हुआ, इसलिए इस सेक्टर में पहले जितने मजदूर थे उतने नहीं खप सकते। सर्विस सेक्टर में एयरलाइंस, पर्यटन, होटल एवं रेस्तरां, ट्रांसपोर्ट ज्यादातर में बिजनेस ठप पड़े हैं। सीआइआइ की विदिशा भी मानती हैं कि मिनी लॉकडाउन से काफी अनिश्चितता पैदा हो रही है और बिजनेस करना मुश्किल हो रहा है। सरकार के अधिकारी भले ‘हरी कोंपलें’ दिखने की बात कह रहे हों, आइएचएस मार्किट के राजीव के अनुसार महामारी पर नियंत्रण पाने तक स्थायी रिकवरी मुश्किल है।

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