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क्या बालिग, क्या नाबालिग, जो हत्थे चढ़ा, वो जेल गया

-न्यूजलॉन्ड्री,

17 मार्च 2020 की तारीख लग गयी थी.आधी रात गुज़र चुकी थी और 22 साल का देवा मंडावी नीलावाया पंचायत के मल्लापारा गांव में अपने घर के आंगन में आराम से सो रहा था. रात के लगभग तीन बजे कुछ आवाज़ों से उसकी नींद खुल गई. उसने पाया कि खाट के अगल-बगल वर्दी पहने हथियारबंद लोग खड़े थे.उनमें से एक ने उसकी छाती पर बन्दूक के बट से वार किया.वो लोग उसे पकड़ने की कोशिश करने लगे लेकिन जैसे-तैसे अंधेरे का फायदा उठाकर देवा उनकी पकड़ से भाग निकला. वो आखिरी दिन था जब देवा की मां ने उसे देखा था.

वो वर्दी पहने लोग जो देवा को पकड़ने की कोशिश कर रहे थे, डिस्ट्रिक्ट रिज़र्व गार्ड (डीआरजी-स्थानीय आदिवासी युवा और आत्मसमर्पण कर चुके नक्सलियों की पुलिस फ़ोर्स) थे. सुबह तक दंतेवाड़ा जिले की नीलावाया पंचायत में आने वाला मल्लापारा चारों तरफ से घेर लिया गया था. सुबह डीआरजी वाले फिर देवा के घर पहुंचे और उसकी 60 साल की विकलांग मां लक्खे को धमकी देने लगे कि वह अपने बेटे को उनके पास भेज दे वरना वो उसे मार देंगे.

न्यूज़लॉन्ड्री ने लक्खे से मल्लापारा में मुलाकात की. उन्होंने कहा, "उस रात को वह अचानक से हमारे घर में आये और मेरे बेटे को मारने लगे. किसी तरह वह उनकी पकड़ से भागने में कामयाब रहा. तकरीबन सुबह छह बजे मैं आग जला कर ताप रही थी, तब वो पुलिस वाले फिर से मेरे घर आये. उसमें तीन औरतें थीं बाकी 15-20 पुरुष थे. वह कह रहे थे कि मैं अपने बेटे को उनके पास जाने बोल दूं वरना वो उसे मार देंगे. वो डंडे से मुझे मारने लगे, उन्होंने दो बार डंडे से मुझे मारा. मैं उनके हाथ जोड़ने लगी तो तीसरा डंडा लकड़ी के खम्बे में मार कर रुक गए. उन्होंने मेरे घर का दरवाज़ा तोड़ दिया और घर में मौजूद पैसे, मच्छरदानी, साबुन, जूते, मुर्गा, हल्दी, मसाले और सल्फी (बस्तर के इलाकों में पेड़ से निकाले जाने वाली देसी शराब) लेकर चले गए.”

लक्खे ने बताया कि पुलिस वाले उनके घर से दस हज़ार रुपये लूट कर ले गए थे जो उनके परिवार ने बकरा बेच कर और उनके बच्चों (दो बेटों और बहू)ने मजदूरी करके कमाए थे.

25 वर्षीय जोगी मंडावी लक्खे के दूसरे बेटे चन्नाराम मंडावी की पत्नी हैं. वो कहती हैं, "मैं सुबह-सुबह महुआ बीनने गयी थी, वापस आयी तो पता चला कि पुलिस वाले हमारे घर से पैसे और सामान भी लूट कर ले गए. मैं उनके पीछे भी गयी, जब मैंने उनसे हमारे पैसे और सामान लौटने कहा तो वह मुझे मारने की धमकी देने लगे और बोले-यह तुम्हारे पैसे नहीं हैं गांववालों के पैसे हैं,गांव वालों ने इकट्ठा कर तुम्हारे पास रखवाए थे. भाग जाओ."

लक्खे कहती हैं, "मेरा बेटा साधारण जीवन जी रहा था. वन उपज बेच कर या थोड़ी बहुत खेती कर हम लोग जीवन काट रहे थे. वो नक्सली नहीं था. उस रात अगर वो भागता नहीं तो वो या तो उसे मार देते या फिर उसे नक्सली बना कर जेल में डाल देते. इसी डर से वह भागा और अब घर भी नहीं आता. उसने किसी का कुछ भी नहीं बिगाड़ा है. पता नहीं उससे कब मिलना हो पाएगा.”

17 मार्च को मल्लापारा के कई और घरों में पुलिस वालों ने लूटपाट की थी. इसी तरह बगल में गुर्रेपारा में भी मारपीट और लूटपाट की गई. नीलावाया पंचायत के इन गांवों में ऐसे बहुत लोग हैं जिन्हें नक्सली गतिविधियों में शामिल होने का इल्ज़ाम लगा कर जेल में डाल दिया गया है. इनमें से कुछ नाबालिग भी हैं.

गौरतलब है कि मल्लापारा गांव के तीन बच्चों को पुलिस ने फरवरी महीने में नक्सली गतिविधियों में शामिल होने का इलज़ाम लगा कर गिरफ्तार किया था. फरवरी और मार्च में मल्लापारा में हो रही लूटपाट और गिरफ्तारियों के पीछे गांव वाले मोहन भास्कर नाम के व्यक्ति की नक्सलियों द्वारा की गयी हत्या से जोड़ कर देखते हैं.

नीलावाया के पटेलपारा का रहने वाला मोहन भास्कर डीआरजी/पुलिस में भर्ती होना चाहता था. वह उन्हीं के साथ रहता था और पुलिस की तरफ से उसे भरोसा दिलाया गया था कि जल्द ही उसकी भर्ती डीआरजी में हो जाएगी. पुलिस में भर्ती की चाह में मोहन गांव वालों के साथ बुरी तरह से पेश आने लगा था. वह उनके साथ अक्सर मारपीट करने लगा था. डीआरजी के साथ गश्त के दौरान वह गांव वालों से बदसलूकी करता था.

अरनपुर थाने में दर्ज की गयी एक एफआईआर के अनुसार 30 जनवरी को नक्सली सोना हेमला, धुरवा और हिड़मा, मोहन को नीलावाया से अपने साथ ले गए थे और एक फरवरी को उसकी लाश सड़क किनारे मिली थी. नक्सलियों ने मोहन की गला रेत कर हत्या कर दी थी. पुलिस ने इस मामले में नक्सली सोना हेमला, धुरवा, हिड़मा अवं अन्य नक्सलियों के ऊपर नामजद एफआईआर दर्ज की थी.

मोहन की हत्या के बाद पुलिस ने गांववालों को इसका जिम्मेदार बताना शुरू कर दिया था. इस मामले में पुलिस ने गांव की तीन नाबालिक लड़कियों मनीषा सोना मड़कम, कोशी मल्ला मंडावी और कमली नाग कुर्रम को भी गिरफ्तार किया है.

उन तीनों नाबालिग लड़कियों के साथ गीदम मजदूरी करने गयी जोगी मंडावी कहती हैं, "फरवरी के महीने में हम आठ लोग मेलावाड़ा और गीदम मजदूरी करने गए थे. जब एक दिन गीदम में हम मजदूरी कर लौटने के बाद फॉरेस्ट कैंप के पास ठेकेदार के दिए हुए ठिकाने पर रात को आराम कर रहे थे तो कुछ लोग सादे कपड़ों में आकर हमसे पूछताछ करने लगे. उन लोगों ने वहां आकर पूछा कि कौन-कौन नीलावाया से है और जवाब देने पर हमारे गांव के आठ लोगों को पुलिस थाने ले आये. वो हमसे पूछ रहे थे कि हम लोग गीदम क्यों आये थे? जब हमने पुलिस को बताया कि हम मजदूरी करने आये थे तो वह कहने लगे कि हम झूठ बोल रहे हैं. वो कहने लगे कि हमें नक्सलियों ने भेजा है जासूसी करने. फिर वो कहने लगे-तुमने मोहन को क्यों मारा, जैसे तुमने मोहन को मारा है वैसे ही हम तुमको मारेंगे. "

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