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किसान आंदोलन का एक महीना: ‘हम अपने बच्चों को कॉरपोरेट का लेबर नहीं बनने देंगे’

-द वायर,

बीते 26 नवंबर से दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों के किसान धरने पर बैठे हुए हैं. ये किसान केंद्र सरकार के तीन नए
 कृषि कानूनों
 के खिलाफ विरोध कर रहे हैं.

उनकी मांग है कि इन तीनों कानूनों को वापस लिया जाए और न्यूनतम समर्थन मूल्य (
एमएसपी)
 सुनिश्चित करने वाला एक केंद्रीकृत कानून लाया जाए.

हालांकि, एक महीने के बाद भी केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच हुई पांच दौर की बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकला था.

8 दिसंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ किसान संगठनों की वार्ता विफल होने के 22 दिनों के बाद बुधवार 30 दिसंबर को बातचीत एक फिर से शुरू हुई.

आखिरकार दो मांगों पर सरकार और किसान संगठनों के बीच सहमति बन गई है और किसानों की मुख्य मांग एमएसपी पर कानून को लेकर आगामी 4 जनवरी को बातचीत की तारीख तय की गई है. इससे आंदोलन के किसी समाधान की ओर बढ़ने की उम्मीद जगी है.

हालांकि, एक महीने से भी अधिक समय से भीषण ठंड के मौसम में खुले आसमान के नीचे कई-कई किलोमीटर डेरा जमाकर बैठे किसान सरकार की थकाने और भगाने की रणनीति से किसी भी तरह से विचलित होते नहीं दिख रहे हैं.

वहां जहां लोगों की तादाद बढ़ती जा रही है, तो वहीं कई लोग घर से धरनास्थल और धरनास्थल से घर के बीच की दूरी तय करते रहते हैं. लेकिन वहां बहुत से ऐसे लोग हैं जो लगातार एक महीने से डटे हुए हैं.

द वायर  ने टिकरी बॉर्डर पर इकट्ठे ऐसे ही लोगों से बात की, जो लगातार पिछले एक महीने से प्रदर्शन कर रहे हैं और आगे भी धरना चलने तक वहां रहने की बात कर रहे हैं. उनका कहना है कि वे छह महीने का राशन लेकर आए हैं और सरकार को झुकाकर ही वापस लौटेंगे.

70 वर्षीय तेजा सिंह ऐसे ही एक किसान हैं. वे पिछले एक महीने से दिल्ली के टिकरी बॉर्डर पर डटे हुए हैं. वे बताते हैं कि उनके पास पांच एकड़ जमीन है और वही उनकी आजीविका का साधन है.

वे कहते हैं, ‘हम लोग वापस नहीं जाएंगे. एक-दो दिन देखेंगे और फिर प्रधानमंत्री आवास पर जाकर आत्महत्या कर लेंगे. हम आत्महत्या ही नहीं करेंगे बल्कि मोदी का नाम लेकर जाएंगे. जिएं या मरें, चाहे जो हो जाए हमारा एक भी आदमी वापसी नहीं जाएगा.’

22 दिनों के अंतराल के बाद बातचीत दोबारा शुरू होने पर सरकार पर भरोसे के सवाल पर वे कहते हैं, ‘हमारा सरकार पर एक नया भी भरोसा नहीं है. अगली बातचीत में भी वह इधर-उधर की बातें लाएगी. उसके अगले दिन हम वहां अपना बलिदान दे देंगे. इसके बाद हमारे घर का दूसरा आदमी आकर बैठेगा, कोई बात नहीं.’

वे कहते हैं, ‘हमारे पास पांच एकड़ जमीन है. उसमें हम गेहूं और धान सहित अन्य फसलें उगाते हैं. उसी से हमारा घर चलता है और वही हमारी आजीविका का साधन है.’

इसी तरह 85 वर्षीय सतपाल सिंह पिछले एक महीने से अपने कई अन्य साथियों के साथ एक कैंप में हैं, वे वहीं रहते हैं, वहीं सोते हैं.

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