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किसान को क्या चाहिए

-आउटलुक,

“कोरोना संकट के दौर में सरकार को वाकई किसानों की फिक्र है तो वह फौरन कुछ जरूरी कदम उठाए”
कोरोना महामारी के कारण पूरे देश में लॉकडाउन है। हर व्यक्ति भविष्य को लेकर डरा हुआ है पर एक बात से पूरा देश निश्चिंत है कि हमारे पास खाने के लिए भरपूर अनाज है। दो महीने पहले ओलावृष्टि से फसलों को नुकसान हुआ और अब समय गेहूं, सरसों आदि काटकर भंडारण का है। अगर किसान भी कोरोना के कारण घर बैठ जाएगा और अपनी फसल नहीं काटेगा या नई फसल नहीं लगाएगा तो अगले साल देशवासियों को अनाज मिलना मुश्किल हो जाएगा। हमें यह देखना है कि एक तरफ आगे देश का भंडार भरा रहे इसलिए रबी की फसलों की कटाई भी हो और दूसरी तरफ किसान महामारी से भी बचे रहें। इसलिए सवाल उठता है कि क्या कोरोना से बचने के लिए सरकार ने किसान को कुछ सुविधाएं दी हैं? कुछ ऐसा किया है जिससे किसान की मदद हो या हर साल की तरह इन हालात में भी किसान को अपने आर्थिक रूप से कमजोर कंधों पर देश को खिलाने की जिम्मेदारी लेनी होगी?

विडंबना देखिए, एक तरफ जो देशवासी घरों में बैठे हैं उनके पास मास्क एवं सैनिटाइजर हैं और जो महामारी से लड़ते हुए फसल काट रहे हैं, उनके पास अपने बच्चों के लिए कुछ नहीं है। गेहूं की हाथ से कटाई से लेकर थ्रेशर में गहाई करने तक, घट्टे के कारण दमे की बीमारी फैलती है। थ्रेशर में पुली डालने वाला व्यक्ति 10 मिनट भी गमछा लगाए बिना खड़ा नहीं रह सकता। भले छोटे किसान पशुओं के लिए भूसे के लालच में हाथ से गेहूं कटाई करते हैं पर वहीं हाथ से काटने के साथ- साथ गहाई करते वक्त एवं भूसा इकठ्ठा करते वक्त सांस की बीमारी होने का खतरा रहता है। कोरोना के प्रकोप में यह बड़ा संकट हो सकता है। इसलिए सरकार को किसानों को कंबाइन हार्वेस्टर से कटवाने के लिए प्रोत्साहन राशि देनी चाहिए। इस बारे में मेरे कुछ और सुझाव हैं -

(i) अगर किसान कंबाइन हार्वेस्टर से फसल काटेगा तो ही उसे 100 रुपये क्विंटल की प्रोत्साहन राशि मिले।

(ii) भूसे के लालच में न पड़े, इसलिए अगले एक साल के लिए दूध पर 5 रुपये प्रति लीटर दिया जाए, जिससे किसान हरे चारे की व्यवस्था कर पाए क्योंकि दूध से ही ग्रामीणों की जीविका चलती है। आज जब लॉकडाउन में हलवाई, चाय वाले, ढाबे और होटल आदि बंद होने के कारण दूध के भाव गिर गए हैं, वहीं पशुओं के चारे का दाम बढ़ गया है। इस स्थिति में किसान को प्रोत्साहन देना और भी जरूरी है। यह सही है कि छोटा मजदूर कटाई की तरफ देखता है लेकिन हमें इस समय सांस की बीमारी या कोरोना के संक्रमण से भी बचाना है।

(iii) कंबाइन हार्वेस्टर में ब्रेकडाउन होता रहता है इसलिए हर ब्लॉक में मिस्‍त्री, स्पेयर पार्ट, वेल्डिंग एवं पंचर की एक या दो दुकानें खुली रहना जरूरी है।

(iv) सरकार खरीद केंद्रों को खेत या गांव से गेहूं खरीदने का निर्देश दे। पूर्व में भी सेंटर इंचार्ज खेतों से 100-200 रुपये प्रति क्विंटल नाजायज रूप से लेकर खरीदते थे।

(v) सब्जी गांव से मंडी तक नहीं पहुंच पा रही है। शहरों में सब्जियों के दाम चार गुना तक बढ़ गए हैं। इसलिए सब्जी मंडियां भी खोली जाएं और किसान को अपनी सब्जी मंडी तक लाने की अनुमति दी जाए। इससे किसान को फसल का दाम भी मिलेगा और शहर वालों को सब्जी सस्ते दाम पर भी उपलब्ध हो पाएगी।

(vi) जहां गन्ने के भुगतान के लिए किसान मारा-मारा फिर रहा है, वहीं कुछ जगहों पर सट्टे वाले गन्ने की पेराई किए बिना मिलें बंद हो गईं हैं। पिछले 25 वर्षों में जब भी मिलें निर्धारित सट्टे की पेराई के बिना बंद हुईं तो हाइकोर्ट ने आदेश दिए कि गन्ने के निर्धारित सट्टे की पेराई के बिना मिल बंद नहीं हो सकती, वर्ना खड़े गन्ने का भुगतान मिलों को करना होगा। 1996 में तो कोर्ट के आदेश के तहत बंद मिलों ने भी अगस्त तक मिलों ने गन्ने की पेराई की। गन्ने की बुवाई का समय निकल रहा है और निर्धारित सट्टे से अलग भी गन्ना खड़ा है। इसलिए सरकार को अतिरिक्त सट्टे बनवाने का निर्देश देना चाहिए, जिससे किसान का खेत खाली हो और वह आगे बुवाई कर पाए।

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