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महाराष्ट्र: कोविड-19 की दूसरी लहर से गांवों में रहने वाले परिवारों की बदहाली

-न्यूजलॉन्ड्री, 

महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में कोविड-19 की दूसरी लहर ने ऐसा कहर बरपाया है कि बहुत से परिवार इससे घोर गरीबी के दुष्चक्र में फंस गए हैं. यह वो अनगिनत लोग हैं जिन्होंने अपने परिवार के उन सदस्यों को खोया जिनके ऊपर घर चलाने की सारी ज़िम्मेदारी थी. मुंबई में बैठे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनकी महाअघाड़ी सरकार के बाकी हुक्मरानों के लिए शायद महाराष्ट्र का मतलब सिर्फ मुंबई ही है. वरना देहातों में रहने वाले इन परिवारों की ऐसी बदहाली नहीं होती.

अहमदनगर के पिंपलगांव वाघा के रहने वाले वाबले परिवार ने घर का ज़िम्मा उठा रहे परिवार के एक मात्र सदस्य सुरेश वाबले को खो दिया है. 21 मई को कोरोना संक्रमण के चलते उनकी मृत्यु हो गयी थी. वह अपने पीछे पत्नी अनीता, बेटी मोहिनी और बेटे वैभव को छोड़ गए हैं. उनके इलाज में लगभग 97 हज़ार रूपये का बिल बना था जो उनके परिवार ने लोगों से उधार देकर चुकाया. सुरेश अहमदनगर के एक निजी अस्पताल सांगले हॉस्पिटल में वार्ड बॉय की नौकरी करते थे. घर का सारा खर्च उनकी कमाई से ही चलता था. उनके पास पांच एकड़ खेती थी लेकिन खेती में हुयी पैदावार से बस इतना अनाज ही मिलता था कि उनके घरेलू इस्तेमाल में आ सके. उनकी मृत्यु के बाद परिवार इस कश्मकश में है कि आगे घर कैसा चलेगा.

उनकी 22 साल की बेटी मोहिनी वाबले कहती हैं, "जब शुरुआत में उनकी तबीयत ख़राब हुयी थी तो वह इलाज के खर्च से घबरा रहे थे. अस्पताल में भी इस बात कि फिक्र थी कि उनके इलाज में बहुत खर्चा हो रहा है. उन्हें हम लोगों की भी बहुत फिक्र होने लगी थी. उसी टेंशन में उनका देहांत हो गया. वहीं हमारा पूरा घर चलाते थे अब हम दोनों बहन-भाई कुछ ना कुछ करेंगे घर का खर्चा चलाने के लिए. खेती पर निर्भर नहीं रह सकते क्योंकि अगर बारिश ज़्यादा होती है तो फसल बर्बाद हो जाती है, कम होती है तो बर्बाद हो जाती है. अब नौकरी ही एक मात्र ज़रिया हैं."

अहमदनगर के न्यू आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज में बीएससी के अंतिम वर्ष में पढ़ने वाले वैभव वाबले आगे जाकर कंप्यूटर साइंस में एमएससी करना चाहते थे. वह कहते हैं, "मुझे एमएससी करना था लेकिन लगता है अब यह मुश्किल है. पिताजी की मृत्यु के बाद अब घर का ज़िम्मा उठाना है. अब नौकरी करनी होगी घर के खर्च उठाने के लिए. नौकरी तलाशना शुरू कर दिया है देखते हैं क्या होता है. पिताजी के इलाज के लिए घर में सिर्फ 20-21 हज़ार रूपये थे, बाकी 76 हज़ार रूपये का कर्जा लिया है, वह भी चुकाना है."

वाबले परिवार की ही तरह निम्बलक गांव में रहने वाले गुंड परिवार ने भी अपने सर्वेसर्वा को कोरोना के चलते खो दिया है. 40 साल के बालासाहब गुंड मजदूरी किया करते थे. 26 अप्रैल, 2021 को उनकी मृत्यु हो गयी थी.

उनकी पत्नी सुनीता गुंड भरी हुयी आंखों और रुआंसी आवाज़ में कहती है, "हमारा घर मेरे पति की कमाई पर ही निर्भर था. उनकी मृत्यु के बाद घर में राशन तक नहीं था. मेरी एक दोस्त ने एक महीने का राशन खरीद कर दिया था उसी से अभी तक घर चल रहा है. घर में पैसे भी नहीं तो अब मैंने अपने 21 साल के बेटे अनिकेत को मजदूरी करने भेजा है. उसकी तनखव्वाह 290 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से तय हुयी है. क्या करूं घर में कुछ भी नहीं है, इसलिए बेटा काम पर जा रहा है, वह आगे पढ़ाई नहीं करेगा अब."

सुनीता की 17 साल की बेटी साक्षी कहती हैं, "मैं भी अब आगे नहीं पढ़ पाऊंगी. हमारी परिस्थिति ऐसी नहीं है अब कि पढ़ाई का खर्चा उठा पाएं. मुझे भी नौकरी करनी होगी तभी घर चल पायेगा. मैंने नौकरी तलाश करना शुरू कर दिया है. बालासाहेब के इलाज का बिल चुकाने के लिए उनके परिवार को 80 हजार रूपये का कर्ज लेना पड़ गया था. इसके अलावा घर बनाने के लिए उनके ऊपर दो लाख रुपये का कर्जा हो गया था. यह सभी पैसे अब परिवार को चुकाने हैं."

सुनीता कहती हैं, "पिछले साल जब लॉकडाउन लगा था तब हम शहर में किराए के मकान में रहते थे. लॉकडाउन के चलते काम ना मिलने की वजह से किराया भरने के लिए पैसे नहीं थे तो हम अपने आधे-अधूरे बने घर में गांव आ गए. इस घर को बनवाने के लिए मेरे पति ने दो लाख का कर्ज लिया था. अब फाइनेंस कंपनी वाले वो कर्ज़ा लौटाने के लिए फ़ोन कर रहे हैं. पता नहीं कैसे होगा सब. हमारे घर में पिछले तीन दिन से बिजली तक नहीं है. पिछले एक साल से हम बिजली के कनेक्शन के लिए आवेदन कर रहे है. पड़ोस के घर से पैसे देकर बिजली लेते हैं. लेकिन अब बिजली विभाग वाले कहते हैं कि नया खंभा लगवाओ तब बिजली मिलेगी, खंभा लगवाने के लिए कहां से पैसे लाऊं? जब तक मेरे पति थे तब तक कुछ हो भी सकता, अब उम्मीद कम हैं."

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