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पीएम केयर्स फंड अपनी सुविधा से पब्लिक अथॉरिटी हो जाता है और अपनी सुविधा से ही पब्लिक ट्रस्ट

-सत्याग्रह,

बीती 13 जून को खबर आई कि पीएम केयर्स फंड के ऑडिटर का फैसला हो गया है. इन खबरों का स्रोत इस फंड की वेबसाइट ही थी. इस पर दर्ज एक प्रश्नावली में जानकारी दी गई थी कि पीएम केयर्स फंड को एक स्वतंत्र ऑडिटर द्वारा ऑडिट किया जा रहा है और यह जिम्मा दिल्ली की एक सीए फर्म सार्क एंड एसोसिएट्स को सौंपा गया है. इसी प्रश्नावली में एक सवाल यह भी है कि ‘वह कानूनी समय-सीमा क्या है जिसके दौरान पीएम केयर्स फंड का ऑडिट हो जाना चाहिए?’ इसके जवाब में वेबसाइट पर बताया गया है कि ‘आयकर कानून के तहत पीएम केयर्स फंड की ऑडिट के लिए कोई वैधानिक समय सीमा तय नहीं की गई है. लेकिन इसका ऑडिट वित्त वर्ष के अंत में कराया जाएगा.’

पीएम केयर्स फंड का ऐलान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 मार्च को किया था. उन्होंने कहा था कि सभी क्षेत्रों के लोगों ने कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में दान देने की इच्छा जताई है जिसका सम्मान करते हुए इस फंड का गठन किया गया है. उन्होंने सभी देशवासियों से इसमें योगदान देने की अपील की थी जिसके बाद इसकी झड़ी लग गई. आम लोगों से लेकर फिल्मी सितारों और कॉरपोरेट घरानों तक सब पीएम केयर्स फंड में खुलकर दान देने लगे. एक अनुमान के मुताबिक अब तक इसमें दस हजार करोड़ रुपयों से ज्यादा धन इकट्ठा हो चुका है.

लेकिन इस दान के साथ ही पीएम केयर्स फंड पर सवालों की भी शुरुआत हो गई. फंड के गठन के कारणों से लेकर इसकी कार्यप्रणाली तक तमाम मोर्चों पर अपारदर्शिता के आरोप लगने लगे. यह सिलसिला पीएम केयर्स फंड के लिए स्वतंत्र ऑडिटर के ताजा ऐलान तक जारी है.

पीएम केयर्स फंड के ऑडिटर की नियुक्ति के मामले में सबसे पहला सवाल तो यही है कि इसकी नियुक्ति के लिए किस तरह की प्रक्रिया का पालन किया गया? फंड की वेबसाइट इस बारे में यह जानकारी देती है कि ‘23 अप्रैल 2020 को फंड के ट्रस्टियों ने अपनी दूसरी बैठक में सार्क एंड एसोसिएट्स, चार्टर्ड अकाउंटेंट्स, नई दिल्ली को तीन साल के लिए पीएम केयर्स फंड का ऑडिटर नियुक्त करने का फैसला किया.’

अगर इसे सिर्फ तकनीकी और ऊपर-ऊपर से देखें तो इसमें कुछ गलत भी नहीं लगता. पीएम केयर्स फंड एक पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट के रूप में रजिस्टर्ड कराया गया है. ऐसे किसी भी ट्रस्ट का ऑडिटर नियुक्त करने से लेकर उसके बारे में कोई भी निर्णय लेने का अधिकार सिर्फ उसके ट्रस्टियों का होता है. और मोदी सरकार इसे पब्लिक अथॉरिटी यानी सरकार का हिस्सा मानती ही नहीं है. सूचना के अधिकार यानी आरटीआई के तहत दायर कई आवेदनों में पीएम केयर्स फंड की डीड से लेकर इसमें आए पैसे और इसके द्वारा खर्च किये गये पैसों से जुड़ी तमाम जानकारियां मांगी गई थीं. पीएमओ के केंद्रीय जन सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) परवीन कुमार का इस तरह के सभी आवेदनों पर एक ही जवाब रहा है - ‘पीएम केयर्स आरटीआई एक्ट, 2005 की धारा 2(एच) के तहत पब्लिक अथॉरिटी नहीं है. पीएम केयर्स से जुड़ी संबंधित जानकारी pmcares.gov.in वेबसाइट पर देखी जा सकती है.’ लेकिन अगर कोई ट्रस्ट पब्लिक अथॉरिटी नहीं है तो यह उस पर या उसके ट्रस्टियों पर निर्भर करता है कि वे इसकी कौन सी जानकारी आपको देना चाहते हैं और कौन सी नहीं.

तो पहले इसी तर्क की पड़ताल करते हैं कि पीएम केयर्स फंड पब्लिक अथॉरिटी है या नहीं है? और अगर नहीं है तो क्या उसे ऐसा होना नहीं चाहिए था? पीएम केयर्स फंड की वेबसाइट पर दर्ज प्रश्नावली में छठवां सवाल है कि इसकी प्रशासकीय व्यवस्था कैसे चलती है. इसके जवाब में लिखा गया है, ‘फंड की प्रशासकीय व्यवस्था पीएमओ में संयुक्त सचिव (प्रशासन) मानद रूप से करते हैं, जिनकी मदद पीएमओ में निदेशक या उपनिदेशक (प्रशासन) स्तर के एक अधिकारी मानद रूप से करते हैं.’ आगे कहा गया है कि प्रधानमंत्री कार्यालय ट्रस्टियों की जरूरत के हिसाब से उन्हें ट्रस्ट के प्रबंधन और प्रशासन के लिए प्रशासकीय और सचिवालय स्तर का सहयोग उपलब्ध करवाता है. प्रश्नावली में अगला सवाल है कि फंड का मुख्यालय कहां है. इसका जवाब है, ‘फंड का मुख्यालय नई दिल्ली के साउथ ब्लॉक में स्थित प्रधानमंत्री का कार्यालय है.’

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