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अगर पीएम केयर्स फंड आरटीआई या सीएजी के दायरे में नहीं आता तो उसे ऐसा बनाया क्यों गया है?

-सत्याग्रह,

बीते हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की 41 कोयला खदानों के व्यावसायिक खनन के लिए डिजिटल नीलामी प्रक्रिया शुरू की. इस कवायद को उन्होंने ऊर्जा क्षेत्र में भारत के आत्मनिर्भर होने की दिशा में बड़ा क़दम बताया. प्रधानमंत्री ने कहा कि पुरानी सरकारों में पारदर्शिता की बड़ी समस्या थी जिसकी वजह से कोल सेक्टर में बड़े-बड़े घोटाले देखने को मिले, लेकिन अब यह स्थिति बदल गई है.

पारदर्शिता उन कई शब्दों में से एक है जिन पर नरेंद्र मोदी सरकार सबसे ज्यादा जोर देती रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार इसे अपनी उपलब्धियों में गिनाते हैं. कुछ समय पहले विपक्ष पर निशाना साधते हुए उनका कहना था कि देश में पारदर्शिता लाने के लिये यदि कोई चीज होती है तो कुछ लोगों को समस्या होती है.

लेकिन प्रधानमंत्री के ही नाम पर हुई एक ताजा और बड़ी कवायद इस पारदर्शिता से कोसों दूर दिखती है. यह कवायद है प्रधानमंत्री नागरिक सहायता एवं आपात स्थिति राहत कोष. संक्षेप में कहें तो पीएम केयर्स फंड.

पीएम केयर्स फंड को लेकर पारदर्शिता से जुड़े सवाल इसके ऐलान के साथ ही खड़े होने लगे थे. यह ऐलान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 मार्च को किया था. उन्होंने कहा था कि सभी क्षेत्रों के लोगों ने कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में दान देने की इच्छा जताई है जिसका सम्मान करते हुए इस फंड का गठन किया गया है. उन्होंने सभी देशवासियों से इसमें योगदान देने की अपील की थी.

प्रधानमंत्री के इस ऐलान से चार दिन पहले ही राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम लागू हो चुका था. यानी कोरोना वायरस से निपटने के मामले में अब सारे राज्यों को केंद्र के निर्देशों के हिसाब से काम करना था. साधारण परिस्थितियों में कानून-व्यवस्था की तरह स्वास्थ्य भी राज्यों का विषय होता है, लेकिन राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम लगने के बाद यह स्थिति बदल जाती है. इस कानून के लागू होने के साथ ही कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई की कमान नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के हाथ में आ गई थी जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं.

पीएम केयर्स फंड पर उठने वाले पहले सवाल का सिरा इसी राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम से जुड़ता है. 2005 में बने इस कानून के तहत एक राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (एनडीआरएफ) का भी प्रावधान किया गया था. इसमें कहा गया था कि बड़ी आपदाओं के समय मिलने वाले योगदानों को अनिवार्य रूप से इस कोष में डाला जाएगा. यही वजह है कि जब पीएम केयर्स फंड का गठन हुआ तो पूछा गया कि जब आपदाओं में आम नागरिकों या कंपनियों से मिलने वाले योगदान के लिए एक फंड का प्रावधान पहले से है तो यह नया फंड क्यों? क्या यह संसद से पारित कानून की मूल भावना का उल्लंघन नहीं है?

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