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60 दिन का लॉकडाउन बनाम 60 साल के पर्यावरणीय प्रोटोकॉलः कुछ नीतिगत सुझाव

-जनपथ,

कोविड-19 महामारी के चलते वैश्विक लॉकडाउन ने भले ही तमाम देशों की अर्थव्यवस्था और सामाजिक ढांचे को अस्त-व्यस्त कर दिया हो लेकिन पर्यावरण के लिए यह काल बहुत सुखद साबित हुआ है. विश्व भर से आ रहे तमाम आंकड़ों से स्पष्ट हो रहा है कि विगत 60 दिनों में पर्यावरणीय स्थिति में जो सुधार देखने को मिला है वह 60 वर्षों में किये गये तमाम प्रयासों और जलवायु परिवर्तन के तमाम वैश्विक समझौतों के बावजूद नहीं हो सका था. क्योटो प्रोटोकॉल या  पेरिस जलवायु समझौते जैसी कोशिशों का भी कोई विशेष सकारात्मक प्रभाव नहीं मिल पाया था.

लॉकडाउन के शुरुआती चरण में जालंधर से नज़र आती धाैलाधार की श्रृंखला की तस्वीर वायरल हुई थी
प्रकृति में उपस्थित सभी प्रकार के जीवधारी अपनी वृद्धि तथा विकास के साथ-साथ सुव्यवस्थित एवं सुचारु जीवन चक्र को चलाते हैं. इसके लिए उन्हें स्वस्थ वातावरण की आवश्यकता होती है. वातावरण का एक निश्चित संगठन होता है तथा उसमें सभी प्रकार के जैविक एवं अजैविक पदार्थ एक निश्चित अनुपात में पाये जाते हैं. ऐसे वातावरण को संतुलित वातावरण कहते हैं. वातावरण में एक या अनेक घटकों की प्रतिशत मात्र किसी कारणवश या तो अत्यधिक बढ़ जाय या कम हो जाय अथवा अन्य हानिकारक घटकों का प्रवेश हो जाय तो हमारा पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है. विगत 5-6 दशकों में हुए अँधाधुंध और अनियंत्रित विकास के क्रम में हमारे वातावरण का संतुलन लगातार बिगड़ता ही रहा है.

 प्रदूषण, पर्यावरण में दूषक पदार्थों के प्रवेश के कारण प्राकृतिक संतुलन में पैदा होने वाले दोष को कहते हैं. प्रदूषक तत्व पर्यावरण को और जीव-जन्तुओं को नुकसान पहुंचाते हैं. प्रदूषण का अर्थ है: ‘हवा, पानी, मिट्टी आदि का अवांछित द्रव्यों से दूषित होना’, जिसका सजीवों पर प्रत्यक्ष रूप से विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान द्वारा अन्य अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ते हैं. वर्तमान समय में पर्यावरणीय अवनयन का यह एक प्रमुख कारण है, इसकी वजह से मनुष्य के साथ-साथ सभी जीव जन्तुओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. इन प्रभावों को कम करने के लिए किये जाने वाले उपायों को विश्व स्तर पर कभी ईमानदारी या गम्भीरता से नही लागू किया जा सका. नतीजा यह हुआ कि वायु, जल, भूमि, ध्वनि और यहाँ तक कि समुद्र भी प्रदूषित होते चले गये. निस्संदेह इसका बुरा प्रभाव मानव जीवन के साथ साथ, वन्य जीवों और पारिस्थितिकीय तंत्र पर पड़ा.

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