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PPP पर ग्रोथ का दारोमदार लेकि‍न वि‍त्‍त मंत्रालय ने ही उठाए कई सवाल


नई दि‍ल्‍ली। वि‍त्‍त मंत्री अरुण जेटली ने बजट में सार्वजनि‍क नि‍जी भागीदारी (पीपीपी) पर बड़ा दांव तो लगा दि‍या है लेकि‍न इस व्‍यवस्‍था पर अब वि‍त्‍त मंत्रालय ने ही कई सवाल खड़े कर दि‍ए हैं। वि‍त्‍त सचि‍व अरविंद मायाराम ने नि‍जी कंपनि‍यों पर आरोप लगाया है कि‍ ये प्रोजेक्‍ट्स की ऊंची बोलि‍यां लगाती हैं। पि‍छले दि‍नों कैग की रि‍पोर्ट में भी यह कहा गया था कि‍ नि‍जी कंपनि‍यां प्रोजेक्‍ट्स की ज्‍यादा बोली लगा कर ग्राहकों से अनुचि‍त शुल्‍क वसूलती हैं। वहीं, मायाराम ने कहा कि‍ पीपीपी प्रोजेक्‍ट्स की समझ सबके पास नहीं है। सरकार के इस रुख से साफ जाहि‍र हो रहा है कि‍ पीपीपी प्रोजेक्‍ट्स फि‍लहाल दूर की कौड़ी हैं।

पीपीपी पर उठे सवाल

मायाराम ने कहा है कि‍ कंपनि‍यां पीपीपी प्रोजेक्‍ट्स के लि‍ए जरूरत से ज्‍यादा ऊंची बोलि‍यां लगाती हैं।
कंपनि‍यों को पीपीपी प्रोजेक्‍ट्स के लि‍ए बोली लगाने से पहले ही उसका मूल्‍यांकन करना चाहि‍ए।
पीपीपी में कंपनि‍यां लागत खर्च बढ़ाती है और कई बार मोलभाव करती हैं।
मायाराम ने यह भी कहा है कि‍ नि‍जी कंपनि‍यां प्रोजेक्‍ट्स पर बेहद ज्‍यादा मुनाफे की मांग करती हैं।
वि‍त्‍त सचि‍व ने कहा है कि‍ पीपीपी प्रोजेक्‍ट्स में निहित जोखि‍म को सरकार वहन नहीं कर सकती है।
मायाराम ने कहा है कि‍ पीपीपी प्रोजेक्‍ट्स की समझ सबके के पास नहीं है।

क्‍यों पीपीपी पर लग रहा है आरोप

कैग ने मुंबई हवाईअड्डा के लिए पीपीपी मॉडल की यह कहते हुए आलोचना की है कि जोखिम को उचित ढंग से निजी पक्ष को हस्तांतरित नहीं किया। इससे परियोजना की लागत दोगुनी हो गई और इसके अंतर की भरपाई विकास शुल्क के जरिए यात्रियों से की जा रही है। परियोजना की लागत 5,826 करोड़ रुपए के दोगुने से भी अधिक बढ़कर 12,380 करोड रुपए पहुंच गई।
सड़क एवं राजमार्ग परि‍योजनाओं से लेकर पोर्ट नि‍र्माण पर कंपनि‍यां स्‍पेशल पर्पस व्‍हीकल बनाती हैं जि‍सके जरि‍ए वह बैंक से लोन लेती हैं। प्रोजेक्‍ट्स डूबने पर सारा बोझ सरकारी बैंकों पर पड़ जाता है। इसी वजह से बैंकों का सबसे ज्‍यादा फंसा हुआ कर्ज इंफ्रा सेक्‍टर में है।
कैग ने कहा है कि‍ अनुबंध हासिल करने वाली कंपनी के सामने कोई वित्तीय खतरा उत्पन्न नहीं हुआ क्योंकि पैसे की कमी यात्रियों पर विकास शुल्क बढ़ा कर पूरी कर ली जा रही है जबकि इस परियोजना के परिचालन, प्रबंध एवं विकास समझौते में इसका प्रावधान नहीं था।

वित्त सचि‍व ने और क्‍या कहा

वि‍देशी कंपनि‍यों के साथ जीवी करने का प्रस्‍ताव।
पीपीपी का नया और बेहतर ढांचा बनाने की कोशि‍श।
आर्थि‍क संकट में फंसे पीपीपी के लि‍ए परि‍भाषा बनाने की जरूरत।
पीपीपी प्रोजेक्‍ट्स की बोली प्रक्रि‍या भारत में काफी मजबूत है।
आर्थिक वि‍कास को आगे बढ़ाने के लि‍ए इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर डेवलपमेंट।
जमीन अधि‍ग्रहण कानून के कारण जमीन खरीदने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।