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क्यों प्रशांत भूषण पर सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई कई पूर्व जजों को भी सही नहीं लगती है

-सत्याग्रह,

किस्सा 1987 का है. पीटर राइट की आत्मकथा ‘स्पाइकैचर: द कैंडिड ऑटोबायोग्राफी ऑफ अ सीनियर इंटेलिजेंस ऑफिसर’ ने छपते ही धूम मचा दी थी. राइट ब्रिटेन की खुफिया सेवा एमआई5 के पूर्व सहायक निदेशक थे. ऑस्ट्रेलिया में छपी उनकी इस आत्मकथा में स्वेज संकट के समय एमआई5 द्वारा मिस्र के राष्ट्रपति जमाल अब्दुल नासिर की हत्या की साजिश जैसे कई सनसनीखेज दावे किए गए थे. स्वाभाविक ही था कि इंग्लैंड में इस किताब के प्रकाशन पर पाबंदी लग गई. यही नहीं, वहां के अखबारों को भी स्पाइकैचर में दर्ज दावों की रिपोर्टिंग करने से रोक दिया गया.

मामला अदालत में पहुंचा. एक हाई कोर्ट ने यह पाबंदी हटा दी. इसके खिलाफ सरकार देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था पहुंची. उन दिनों इंग्लैंड में सुप्रीम कोर्ट नहीं होता था. किसी भी मामले में अंतिम अपील संसद के ऊपरी सदन - हाउस ऑफ लॉर्ड्स - की एक समिति के सामने होती थी. इसके सदस्यों को लॉ लॉर्ड्स कहा जाता था. लॉ लॉर्डस ने पाबंदी को बहाल कर दिया.

इंग्लैंड के अखबारों में इस फैसले की तीखी आलोचना हुई. द लंदन टाइम्स ने इस फैसले को तानाशाही सनक बताया. द डेली मिरर तो इससे कहीं आगे निकल गया. उसने यह फैसला सुनाने वाले तीनों लॉ लॉर्ड्स की एक उल्टी तस्वीर छापी और नीचे लिखा - यू ओल्ड फूल्स. ठेठ हिंदी में कहें तो बुड्ढे उल्लुओं!

सिडनी टेंपलमैन उन तीन लॉ लार्ड्स में से एक थे जिन्होंने यह फैसला सुनाया था. जब द डेली मिरर के खिलाफ अदालत की अवमानना की मांग उठी तो उन्होंने इसे खारिज कर दिया. सिडनी टेंपलमैन का कहना था कि बूढ़े तो वे वास्तव में हैं और उल्लू हैं या नहीं, यह अपनी-अपनी सोच है, हालांकि वे खुद ऐसा नहीं मानते. अदालत की अवमानना के मुद्दे पर किसी गहरी बहस में अक्सर इस किस्से को भी याद कर लिया जाता है.

यह मुद्दा इन दिनों फिर चर्चा में है. इसकी वजह है वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना की कार्रवाई. उन्होंने हाल में दो ट्वीट किए थे. इनमें से एक उस तस्वीर के बारे में था जो कई अखबारों में छपी थी और जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एसए बोबडे एक बहुत महंगी बाइक पर बैठे दिख रहे थे. प्रशांत भूषण ने लिखा था, ‘नागपुर के राजभवन में मास्क और हेलमेट पहने बगैर सीजेआई 50 लाख की एक मोटरसाइकिल की सवारी कर रहे हैं जो भाजपा के एक नेता की है, वह भी एक ऐसे समय पर जब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को लॉकडाउन मोड पर रखा हुआ है जिससे नागरिक न्याय तक पहुंच के अपने बुनियादी अधिकारों से वंचित हैं.’

एक दूसरे ट्वीट में प्रशांत भूषण ने लिखा, ‘इमरजेंसी घोषित किए बिना भी भारत में लोकतंत्र को किस तरह खत्म किया गया, यह जानने के लिए भविष्य में जब इतिहासकार बीते छह सालों की तरफ देखेंगे तो वे इस विनाश में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका को खास तौर पर रेखांकित करेंगे और उसमें भी खास तौर पर पिछले चार मुख्य न्यायाधीशों की भूमिका को.’

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