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RCEP: 'दुनिया की सबसे बड़ी ट्रेड डील' में भारत नहीं, क्या मोदी सरकार का सही फ़ैसला?

-बीबीसी,

चीन समेत एशिया-प्रशांत महासागर क्षेत्र के 15 देशों ने रविवार को 'दुनिया की सबसे बड़ी व्यापार संधि' पर वियतनाम के हनोई में हस्ताक्षर किये हैं.

जो देश इस व्यापारिक संधि में शामिल हुए हैं, वो वैश्विक अर्थव्यवस्था में क़रीब एक-तिहाई के हिस्सेदार हैं.

'द रीजनल कॉम्प्रीहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप' यानी आरसीईपी में दस दक्षिण-पूर्व एशिया के देश हैं. इनके अलावा दक्षिण कोरिया, चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड भी इसमें शामिल हुए हैं.

इस व्यापारिक-संधि में अमेरिका शामिल नहीं है और चीन इसका नेतृत्व कर रहा है, इस लिहाज़ से अधिकांश आर्थिक विश्लेषक इसे 'क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव' के तौर पर देख रहे हैं.

यह संधि यूरोपीय संघ और अमेरिका-मैक्सिको-कनाडा व्यापार समझौते से भी बड़ी बताई जा रही है.

पहले, ट्रांस-पैसिफ़िक पार्टनरशिप (टीपीपी) नाम की एक व्यापारिक संधि में अमेरिका भी शामिल था, लेकिन 2017 में, राष्ट्रपति बनने के कुछ समय बाद ही, डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका को इस संधि से बाहर ले गये थे.

महामारी से 'डूबी अर्थव्यवस्थाओं' को निकालने की उम्मीद
तब उस डील में इस क्षेत्र के 12 देश शामिल थे जिसे पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का भी समर्थन प्राप्त था क्योंकि वे उस व्यापारिक संधि को 'चीनी-वर्चस्व के जवाब' के तौर पर देखते थे.

आरसीईपी को लेकर भी बीते आठ वर्षों से सौदेबाज़ी चल रही थी, जिस पर अंतत: रविवार को हस्ताक्षर हुए.

इस संधि में शामिल हुए देशों को यह विश्वास है कि कोरोना वायरस महामारी की वजह से बने महामंदी जैसे हालात को सुधारने में इससे मदद मिलेगी.

इस मौक़े पर वियतनाम के प्रधानमंत्री न्यून-शुअन-फ़ूक ने इसे 'भविष्य की नींव' बतलाते हुए कहा, "आज आरसीईपी समझौते पर हस्ताक्षर हुए, यह गर्व की बात है, यह बहुत बड़ा क़दम है कि आसियान देश इसमें केंद्रीय भूमिका निभा रहे हैं, और सहयोगी मुल्कों के साथ मिलकर उन्होंने एक नए संबंध की स्थापना की है जो भविष्य में और भी मज़बूत होगा. जैसे-जैसे ये मुल्क तरक़्क़ी की तरफ़ बढ़ेंगे, वैसे-वैसे इसका प्रभाव क्षेत्र के सभी देशों पर होगा."

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