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सेविंग्स, प्रोफिट और स्टॉक्स ज्यादा समय तक नहीं चढ़ सकते, उम्मीद की जानी चाहिए कि बदलाव की रफ्तार धीमी होगी

-द प्रिंट,

जब लोगों की आमदनी घटती जा रही है, कंपनियों का कारोबार सिकुड़ रहा है, तब आप यही उम्मीद कर रहे होंगे कि घरेलू बचत और कॉर्पोरेट मुनाफे में भी गिरावट आ गई होगी. आपकी यह उम्मीद गलत है. हकीकत यह है कि आम तौर पर जीडीपी के 10 प्रतिशत के बराबर रहने वाली घरेलू वित्तीय बचत ने इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में इसके दोगुने से ज्यादा का स्तर हासिल कर लिया है. यह तब है जब लोगों के रोजगार खत्म हो रहे थे और उनके वेतन में कटौती हो रही थी.

कंपनियों का मामला भी कोई भिन्न नहीं था, सिर्फ समय का फर्क था. जुलाई-सितंबर की तिमाही में 2100 से ज्यादा सूचीबद्ध कंपनियों की बिक्री में गिरावट आई लेकिन टैक्स के बाद के मुनाफे में 150 की वृद्धि हुई (इससे पिछली तिमाही में हुई गिरावट को उलटते हुए). मुनाफा अब बिक्री के 9 प्रतिशत के सम्मानजनक आंकड़े पर पहुंच गया है. अंततः, हमें यह सूचना मिली है कि सरकार ने अपने खर्चों में अप्रैल-जून की तिमाही में पिछले साल की तुलना में 13 प्रतिशत की वृद्धि की लेकिन आश्चर्य की बात है कि अगली ही तिमाही में उसने अपने कुल खर्चों में इसी दर से कमी कर दी. ऐसा लगता है कि हर कोई नकदी बचा कर रखना चाहता है, जबकि सरकार उधार को एक सीमा में रखने की कोशिश कर रही है.


इसकी वजह बेशक यही है कि भविष्य को लेकर अनिश्चितता कायम है. जब आपको पता नहीं कि आगे क्या होने वाला है, तब आप एक उपभोक्ता होने से संन्यास ले लेते हैं. और व्यवसाय गंवाने वाली कंपनियां घाटे की चिंता में अपनी बिक्री में गिरावट की तुलना में अपने खर्चों में ज्यादा कटौती कर देती हैं. इसलिए उनका मुनाफा आसमान छू रहा है. और सरकार एक के बाद एक आर्थिक पैकेज की घोषणा करते हुए और अपने कार्यक्रमों के लिए पैसे जुटाने की चिंता में जहां भी मुमकिन हो वहां खर्चों में कटौती करने लगती है.

यह रुझान बैंक डिपॉजिटों में भी दिख रहा है, जो उधार की तुलना में तेजी से बढ़ रहा है, आयातों में दिख रहा है, जो निर्यातों की तुलना में तेजी से गिर रहा है, रिजर्व बैंक के विदेशी मुद्रा भंडार में दिख रहा है, जो तेजी से बड़ा हो रहा है और मुद्रा बाजार में बढ़ी नकदी में दिख रहा है, जिसके चलते ब्याज दरों में कमी हो रही है क्योंकि नकदी की मांग उसकी आपूर्ति से कम है.

अब मुद्रास्फीति दर में गिरावट आनी चाहिए क्योंकि सामान की मांग उनकी उपलब्धता से कम है, वास्तव में उन पर कई तरह की छूट भी दी जा रही है. लेकिन नकदी की कीचड़ जिस तरह फैली है उसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए अगर मुद्रास्फीति दर ने छह साल की उच्चतम दर को छू लिया है. अधिकारियों का कहना है कि स्थानीय और कोविड के कारण लॉकडाउन ने सप्लाई में व्यवधान डाला और प्याज-आलू आदि की सप्लाई में रुकावटों आदि के कारण खाद्य सामग्री की कीमतें बढ़ीं.

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