Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/sea-farmers-grass-cultivation.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | तटीय किसान, दमदार घास ‘खसखस’ से दौलत कमा रहे हैं | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

तटीय किसान, दमदार घास ‘खसखस’ से दौलत कमा रहे हैं

-विलेज स्कवायर,

चंद्रशेखर का खेत खारी हवा और लहरों की आवाज़ के बीच, बंगाल की खाड़ी के तट से सिर्फ 50 मीटर दूर है। पुदुचेरी के नरमाई गाँव के चंद्रशेखर (60) दो दशक से ज्यादा समय से यहाँ खेती कर रहे हैं।

पहले वे कैसुआरिना और नारियल के पेड़ उगाते थे। चंद्रशेखर बताते हैं – “कैसुआरिना के पेड़ हमें हर छह या सात साल में उपज देते हैं और इस तटीय क्षेत्र के लिए यह एक आम दृश्य है। लेकिन 2011 में, जब थाने चक्रवात आया, तो इसने पूरे बागान को बर्बाद कर दिया। हमारे पास कुछ नहीं बचा।”

यह वक्त था, जब उन्होंने खसखस या खस (Vetiveria zizanioides) के बारे में सुना, एक ऐसी बारहमासी भारतीय घास, जिससे लगभग आठ महीनों में ही फसल ली जा सकती थी। खोने के लिए चंद्रशेखर के पास कुछ भी नहीं बचा था, इसलिए उन्होंने खसखस की खेती शुरू कर दी और एक साल के भीतर प्रति एकड़ एक लाख रुपये से अधिक का लाभ कमाया।

पूर्वी तट के किनारे रहने वाले चंद्रशेखर जैसे बहुत से किसानों ने देखा कि खसखस में न केवल मिट्टी के खारेपन और विपरीत मौसम को झेलने की योग्यता है, बल्कि ये व्यावसायिक रूप से भी लाभदायक है।

कठोर घास

चंद्रशेखर ने VillageSquare.in को बताया – “निचले इलाके में होने के कारण, भारी बारिश के दौरान हमारे खेत में अक्सर पानी भर जाता है। खसखस घास बाढ़ को झेलने में सक्षम है। समुद्र का पानी मिल जाने से खारे हुए पानी में भी खसखस अच्छी पैदावार देती है। हमारे तटीय भूमि जैसे हालात के लिए खसखस सबसे अच्छा उपाय है।”

पड़ोसी कुड्डालोर जिले में किसानों को भी ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ रहा है, जहाँ तट की लगातार बढ़ती लवणता (खारापन) के कारण फसलों का बचना मुश्किल हो जाता है। पहले इस जिले में खसखस की खेती करने वाले कुछ ही किसान थे| यह पिछले केवल पांच वर्षों में ही हुआ है कि पूर्वी तट के किसानों ने बड़े पैमाने पर खसखस की खेती को अपनाया।

जलवायु-निरोधक फसल

कुड्डलोर जिले के नोचिकाडु के एक किसान भाग्यराज (23) याद करते हैं कि 2004 की हिंद महासागर सुनामी में उनकी फसल कैसे बच गई थी। उस समय, उनके पिता के पास काजू और कासुआरिना के पेड़ थे और उन्होंने अपने 20 एकड़ के खेत में केवल दो एकड़ में ही खसखस की बुआई की थी।

भाग्यराज ने VillageSquare.in को बताया – “मुझे याद है कि कैसे सब कुछ खत्म हो गया या बह गया था और कैसे सुनामी के बाद काली पड़ गई खसखस घास ताजा पानी देने के कुछ ही दिनों के अंदर एकदम ताज़ा हो गई थी।”

किसान भाग्यराज ने 2004 में आई सुनामी में कसुआरिना और काजू को बर्बाद होते और खसखस को बचते देख खसखस की खेती की ओर रुख किया (छायाकार- बालासुब्रमण्यम एन.)
सुब्रमण्यपुरम के एक युवा कृषि उद्यमी, प्रसन्ना कुमार (25) के अनुसार, कुछ साल पहले, किसान अपनी जमीनें कारखानों को बेचने लगे थे, क्योंकि वे कुछ भी उगा नहीं पा रहे थे। तूफान और बाढ़ जैसी निरंतर बढ़ती मौसम की विसंगतियों के कारण खेत, कूड़े के मैदान में बदल रहे थे।

प्रसन्ना कुमार VillageSquare.in को बताते हैं – “जब उन्होंने महसूस किया कि मौसम की मार वाली इन परिस्थितियों से जूझते हुए भी, खसखस थोड़े समय में लाभदायक हो सकता है, तो बहुत से किसानों ने अपनी भूमि बेचने और पलायन करने की बजाय इसकी खेती शुरू कर दी|”

नए बाजार

भाग्यराज के पिता ने खसखस की खेती का क्षेत्र 2 एकड़ से बढ़ाकर 5 एकड़ कर दिया। उन्होंने कहा – “जब इत्र उद्योग में बढ़ोतरी हुई, तो खसखस की जड़ों से बने तेल की मांग बढ़ गई, और मैंने अपने पिता को सभी 20 एकड़ में खसखस की खेती करने के लिए राजी कर लिया।” इससे उन्हें एक के बाद एक फसल में लगभग 2 लाख रुपये प्रति एकड़ की आमदनी हुई।

आमतौर पर, यहां के किसान खसखस की जड़ें, पारंपरिक दवाइयां बेचने वाले, नत्तू मारुंधु कडाई के भंडारों को बेचते थे। अब मरुधाम जैसी स्टार्ट-अप कंपनियों ने देश भर में, तेजी से बढ़ते इत्र और हस्तशिल्प उद्योग को ध्यान में रखकर, खसखस के लिए स्थानीय बाजार खोल दिया है, जिससे किसानों को बेहतर आय होती है।

पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.