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हरियाणा: जान जोखिम में डाल सीवर साफ करने वाले रोहतक के कर्मचारियों को नहीं मिलता तय वेतन

-न्यूजलॉन्ड्री,

साल 1995 की बात है. हरियाणा का रोहतक शहर बाढ़ से बुरी तरह जूझ रहा था. पानी की निकासी के सारे रास्ते बंद होने के कारण लोगों के घरों में चार-चार फुट तक पानी भर गया था. बाढ़ के पानी में शहर का मल-मूत्र भी तैर रहा था, जिसके कारण पूरे शहर का जीवन नरकीय हो गया था. ऐसी स्थिति में शहर को इस संकट से बचाने का सारा दबाव सीवर सफाईकर्मियों पर आन पड़ा था.

रोहतक के सीवर सफाईकर्मी जिले सिंह याद कर बताते हैं, “1995 में आई बाढ़ की याद मुझे मरते दम तक रहेगी. शहर में भरे पानी और घरों में तैर रहे मल-मूत्र को अगर हम नहीं निकालते तो महामारी फैल सकती थी. सारे सीवर बंद पड़े थे. सीवरेज की सफाई के लिए हम सीवरों में उतरते तो हमारे हाथों में कभी मरी हुई बिल्लियां आतीं तो कभी चूहे. शहर के लोगों का मल पानी में तैर रहा था और सीवरों में मृत जानवर और कूड़ा जमा हो रखा था. इस सबके बीच हमारे साथी अपना पूरा दिन शहर के सीवरों को साफ करने में बिताते. उस बाढ़ में पूरा दिन पानी में रहने के कारण हमारे हाथ-पैरों में गलावट आ गई थी और कई तरह के चर्म रोग हो गये थे, जिनका ईलाज आज तक चल रहा है.”

इतना कहकर जिले सिंह थम जाते हैं और एक लंबी सांस भरकर कहते हैं, “लेकिन इन सब बातों का क्या फायदा. किसी को कोई लेना-देना नहीं इन बातों से. पिछले 26 सालों से सीवर की सफाई का काम कर रहा हूं. लेकिन अब तक नौकरी पर पक्का करना तो दूर हमें कलेक्टर द्वारा निर्धारित वेतन भी नहीं दिया जा रहा है.”

जिले सिंह की तरह पूरे शहर में करीब सौ सीवरेज सफाईकर्मी हैं जिनके पास शहर को कई बार इस तरह की आपदा से बचाने के सैंकड़ों किस्से हैं. रोहतक के एक सीवर पंपहाउस (डिस्पोजल पंप) में बैठकर हम ये किस्से सुन रहे थे. जिले सिंह कहते हैं, “आप इन किस्सों को छोड़िए. हमें हमारा पूरा वेतन दिलवा दीजिए. इन किस्सों से पेट थोड़े न भरता है.”

अपना पूरा वेतन पाने के लिए रोहतक के सीवरेज सफाईकर्मी सरकार से लेकर प्रशासन तक हर दरवाजा खटखटा चुके हैं. सीवरमैन यूनियन के अध्यक्ष सुनील कुमार बताते हैं, “सफाईकर्मियों के लिए कलेक्टर द्वारा निर्धारित मासिक वेतन 15,100 रुपये है. लेकिन ठेकेदारों और सरकारी अफसरों की मिलीभगत के कारण सीवर सफाईकर्मियों को केवल 9,100 रुपये महीना वेतन दिया जाता है. हमें न तो सरकार द्वारा निर्धारित रिस्क भत्ता मिलता है और न ही कोई और सुविधा. और जब हम अपनी आवाज उठाते हैं तो ठेकेदार उनके साथ बहुत बुरा बर्ताव करते हैं, काम से निकालने की धमकियां देते हैं. एक ठेकेदार ने तो हमारे एक साथी के साथ गाली-गलौच और मारपीट भी की जिसके बाद हमने उसके खिलाफ थाने में केस दर्ज करवाया लेकिन दबाव के कारण मामला दबा दिया गया और आज तक उस मामले में कुछ नहीं हुआ.”

कोरोना महामारी के इस दौर में जब पूरा देश और शहर के लोग घरों में बंद थे तब भी सफाईकर्मी सीवर में उतरकर सफाई कर रहे थे. सुनील कुमार प्रशासन पर आरोप लगाते हुए कहते हैं, “यह इतनी खतरनाक महामारी है और हम गटर में उतरकर पूरे शहर का गंध साफ करते हैं ताकि शहर को कोई दिक्कत न हो. और एक ये प्रशासन है जिसने हमें कोरोना बीमारी से बचने के लिये मास्क और सेनिटाइजर जैसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं करवाई. क्या हम इन्सान नहीं हैं या फिर क्या सफाईकर्मियों को कोरोना नहीं हो सकता है. आम लोगों की तरह हमारा भी परिवार है. हमें भी काम करने के बाद परिवार के बीच जाना पड़ता है. लेकिन सरकार और प्रशासन के लिए हम कुछ नहीं हैं.”

साल 2013-14 में जनस्वास्थ्य विभाग द्वारा शुरू किए गए ठेकेदारी सिस्टम की वजह से सीवरेज की सफाई का जिम्मा ठेकेदारों को दे दिया गया था. जिसके कारण सीवर सफाईकर्मियों की किसी भी तरह की समस्या से प्रशासन मुंह मोड़ लेता है.

सुनिल सरकारी अफसरों पर ठेकेदारों के साथ सांठगाठ का आरोप लगाते हुए कहते हैं, “ठेकेदार के पास सफाई करवाने के लिए मशीनें नहीं हैं. किसी तरह के सुरक्षा उपकरण नहीं हैं. आखिर सरकारी अफसरों की ओर से ऐसे ठेकेदारों को ठेके क्यों दिये जाते हैं? वहीं जनस्वास्थ्य विभाग में 14 पक्के सीवर सफाईकर्मी भर्ती किए गए थे जो हमारी तरह कभी सफाई करते हुए नहीं दिखाई देते हैं. उन पक्के कर्मियों से केवल दफ्तर का काम लिया जा रहा है और हम लोगों को दबाव बनाकर और नौकरी से हटाने की धमकी देकर गैस के जहरीले टैंक में उतार दिया जाता है. सुप्रीम कोर्ट की मनाही के बावजूद आज भी हम बिना सुरक्षा उपकरणों के सीवरों में उतरने के लिए मजबूर हैं.”

सुप्रीम कोर्ट की मनाही के बावजूद सफाईकर्मी आज भी बिना सुरक्षा उपकरणों के सीवरों में उतरने के लिए मजबूर हैं.
वहां पास ही बैठे सीवर सफाईकर्मी विकास एकदम बोल पड़ते हैं, “पीएफ (एम्प्लोई प्रोविडेंट फंड) को लेकर भी ठेकेदार हमारे साथ धोखा करते हैं. हमारे साथ काम करने वाले कई साथियों का पीएफ नहीं कटवाया जाता है. ठेकेदार ने मेरा ढाई साल का पीएफ काट लिया और केवल आठ महीने का पीएफ जमा करवाया. और जब हम ठेकेदार की शिकायत अपने अधिकारियों से करते हैं तो अधिकारी हमें ही हड़का देते हैं.”

दूसरे सीवर कर्मियों से मिलने के लिए जब हम शहर के दूसरे डिस्पोजल पंप पर गए तो वहां के सफाईकर्मियों की स्थिति और भी भयावह थी. डिस्पोजल पंप के साथ बने एक छोटे से कमरे में सभी सफाईकर्मी इकट्ठा हुए थे और हमारा इंतजार कर रहे थे. हमने बड़े हल्के सवाल से बातचीत आरंभ की और उनकी दिनचर्या के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वे लोग सुबह आकर सबसे पहले सुपरवाईजर को अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं. उसके बाद शहर के अलग-अलग हिस्सों से मिली शिकायतों के तहत ड्यूटी लगाई जाती है और फिर वे अपने काम पर निकल जाते हैं.

इस डिस्पोजल पंप पर काम करने वाले प्रवीन कुमार अभी कुछ देर पहले ही सीवर के अंदर उतरे हुए थे. बिना कमीज और गीली पेंट में हमारे सामने बैठे 22 साल के दुबले से प्रवीन एकटक हमारी तरफ देख रहे थे. जब हमने उनसे पूछा कि उनको महीने में कितनी बार सीवर में उतरना पड़ता है, तो वह हंसकर कहने लगे, “एक-आधा दिन. महीने का कोई दिन ही मेरे लिए भाग्यशाली होता है जब मुझे सफाई करने के लिये सीवर में नहीं उतारा जाता. मेरा मन तो नहीं करता उतरने का लेकिन ठेकेदार जोर जबर्दस्ती करके सीवर में उतरने के लिए दबाव डालता है. सीवर में उतरने के लिए मास्क, सेफ्टी बेल्ट और ऑक्सीजन सिलेंडर जैसी कोई भी चीज नहीं होती है. इसलिए उसमें उतरने का कभी मन नहीं करता.”

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