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क्या धरती पर जीवन के अंत का छठा दौर शुरू हो गया है?

-सत्याग्रह, 

लगभग साढ़े चार अरब साल पुरानी हमारी धरती ने पिछले 54 करोड़ सालों के दौरान सामूहिक विलुप्ति के पांच दौर देखे हैं. वैज्ञानिक कहते हैं कि ऐसे हर दौर में पृथ्वी से 50 फीसदी से ज्यादा प्रजातियों का सफाया हो गया. इस तरह की पांचवीं घटना करीब साढ़े छह करोड़ साल पहले तब हुई थी जब दूसरे कई जीवों के साथ डायनासोर भी गायब हो गए थे. वैज्ञानिकों का एक वर्ग कुछ समय से कहता रहा है कि अब धरती पर सामूहिक विलुप्ति का छठवां दौर शुरू हो गया है और खतरा यह है कि इंसान इसकी शुरुआत में ही गायब हो सकता है. अब हाल ही में अमेरिका स्थित चर्चित संस्था नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज ने एक अध्ययन के हवाले से कहा है कि इस छठे दौर में प्रजातियों के विलुप्त होने की रफ्तार लगातार बढ़ रही है.

कोरोना वायरस से लेकर टिड्डियों और तूफानों के हमले तक 2020 में दुनिया ने असाधारण विनाश देख लिया है और अभी तो साल आधा भी खत्म नहीं हुआ है. लेकिन विनाश के और भी पहलू हैं जो हमारी नजर में आम तौर पर नहीं आ पाते. जैसा कि द न्यूयॉर्क टाइम्स से बातचीत में नेशनल ऑटोनॉमस यूनिवर्सिटी ऑफ मैक्सिको में पारिस्थितिकी के प्रोफेसर गेरार्डो सेबालोस कहते हैं, ‘2001 से 2014 के दौरान धरती से 173 प्रजातियां पूरी तरह गायब हो गईं.’ वे आगे जोड़ते हैं, ‘515 प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं.’ वे आगे जोड़ते हैं ‘पिछली सदी के दौरान ऐसे 77 स्तनधारियों और पक्षियों की 94 फीसदी आबादी खत्म हो चुकी है जो पहले ही संकट में थे.’

वैज्ञानिकों का कहना है कि सामूहिक विलुप्ति का यह छठा चरण इंसानी सभ्यता के लिए सबसे खतरनाक हो सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसलिए पलटा नहीं जा सकता. अध्ययन बताते हैं कि इसकी वजह भी इंसान ही है जिसकी उपभोग की प्यास लगातार बढ़ रही है और उसके चक्कर में वह प्राकृतिक संसाधनों को लगातार नुकसान पहुंचा रहा है. असल में इंसान अपने उपभोग के लिए प्राकृतिक संपदा के दोहन पर ही निर्भर है. पिछले कुछ दशक के दौरान भूमंडलीकरण के साथ-साथ उपभोग के आंकड़ों में भी असाधारण बढ़ोतरी हुई है. इसके चलते नदियों, जंगलों, पहाड़ों और इन पर निर्भर वन्यजीव प्रजातियों पर दबाव भी असाधारण रूप से बढ़ता गया है.

कुछ समय पहले अमेरिका स्थित स्टैनफोर्ड, प्रिंसटन और बेर्कले यूनिवर्सिटी के एक संयुक्त अध्ययन में भी कहा गया था कि बीते कुछ समय के दौरान जीवों की अलग-अलग प्रजातियां जिस तेजी से विलुप्त हुई हैं वह बहुत ही असामान्य है. इन विश्वविद्यालयों के नामी वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट प्रतिष्ठित साइंस एडवांसेज जर्नल में भी छपी थी. इसके मुताबिक सन 1900 से लेकर अब तक धरती से रीढ़ की हड्डी वाले जीवों की 400 से ज्यादा प्रजातियां खत्म हो चुकी हैं. जीवों के गायब होने की यह दर सामान्य से 100 गुना ज्यादा है और इसके चलते ही कहा जा रहा है कि दुनिया सामूहिक विलुप्ति के एक नए दौर में दाखिल हो चुकी है. वैज्ञानिकों के मुताबिक जीवों के विलुप्त होने की रफ्तार अगर इसी तरह जारी रही तो धरती से इंसान के खत्म होने में ज्यादा वक्त वक्त नहीं बचा है.

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