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Resource centre on India's rural distress
 
 

सर्विलांस राज्य ही विश्व का 'न्यू नॉर्मल'

-न्यूजक्लिक,

अक्सर ऐसा होता है कि कुछ देशों से संबंधित कोई गंभीर घटना प्रमुख वैश्विक परिघटनाओं को सुर्खियों में ला देती है। विपक्ष के नेताओं के फोन टैप करने के लिए इज़रायली खूफिया एजेंसी एनएसओ के पेगासस सॉफ्टवेयर को लेकर उठा विवाद ऐसा ही एक मामला है। जब पिछले एक दशक में वैश्विक स्तर पर एक सामान्य दक्षिणपंथी झुकाव हुआ है, तो राज्य की संस्था कैसे बच सकती है? राज्य के दक्षिण झुकाव की जो सबसे प्रमुख अभिव्यक्ति है - वह है उसका लगातार और अधिक निरंकुश होते जाना। इस किस्म के नव-तानाशाही में हम देखेंगे कि निगरानी या सर्विलांस केवल विरोधी ताकतों पर नहीं बल्कि संपूर्ण नागरिक समाज पर होता है।

इसके बावजूद कि सभी प्रमुख देशों में निजता की रक्षा के लिए कानून है, स्थिति आज यह है कि हरेक नागरिक का फोन टैप हो सकता है और हर बातचीत रिकार्ड होती है। हरेक अकाउंट होल्डर के ई-मेल आदान-प्रदान भी ‘बिग डाटा’ तक पहुंच जाते हैं, जो सत्ताधारियों के हाथ में होता है। ये मेल ट्रैक किये जाते हैं और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित सॉफ्टवेयर का प्रयोग करके कम्प्यूटरों के जरिये इनका विश्लेषण किया जाता है, ताकि अपराध और राज्य-विरोधी गतिविधियों पर नजर रखी जा सके। फिर सारी सूचनाएं भारी सर्वरों में आरकाइव की जाती हैं, जिससे कि भविष्य में कभी भी उन्हें उपलब्ध कराया जा सके और उनका अध्ययन हो सके।

उदाहरण के तौर पर आप इंटरनेट पर क्या-क्या देखते हैं और क्या खरीदते हैं इस सूचना को भी कॉरपोरेट्स घराने अध्ययन करते रहते हैं। अपकी हर पसंद-नापसंद का पता उन्हें रहता है। सबसे खतरनाक बात तो यह है कि हर नागरिक का चेहरा भी एक मास्टर डाटाबेस में दर्ज होता है। इसीके आधार पर आप कौन से स्टोर या मॉल में गए और आपने क्या खरीदा, यह सारी जानकारी एक सर्वर में मौजूद डाटाबेस में एकत्र होती है, जो सत्ताधारी प्रतिष्ठान के ऐक छोटे से हाई-टेक मण्डली द्वारा नियंत्रित की जाती है। फिर यह जीएसटीएन डाटा के साथ कॉरपोरेट्स को भेज दिया जाता है। सर्विलांस पूंजीवाद को मार्केटिंग की जरूरतों से अलग नहीं किया जा सकता।

इसी तरह प्रतिस्पर्धा में जो कम्पनियां हैं, उनके व्यवसाय संबंधी जानकारी उनके कॉरपोरेट विरोधियों द्वारा हासिल की जा सकती है, यदि सत्ताधारी गुट में उनके ठीक-ठाक संपर्क हों। और भी बुरा तो यह कि स्टॉक मार्केट व अन्य वित्तीय बाज़ारों में निवेशकों के लाखों करोड़ रुपयों के रोजाना वित्तीय निवेश आदान-प्रदान को ‘रियलटाइम’ में ट्रैक किया जा सकता है।

जब निवेश-संबंधी निर्णय लिए जाते हैं और निवेश से एक सेकेन्ड पूर्व भी राज्य में कोई भी यदि ‘रियलटाइम डाटा’ को नियंत्रित कर ऐसे निवेशों  के साथ हेर-फेर करे, वह अरबों कमा सकता है । बस उसे अन्य निवेशकों की सूचनाओं से लैस होकर वित्तीय बाज़ार में हस्तक्षेप करने की देर रहती है। सही सूचनाओं पर काबू करके अरबों की अवैध कमाई हो सकती है। मुकेश अंबानी ने सही ही कहा था कि डाटा ही आज का तेल है। इसी तरह डिजिटल सर्विलांस अर्थव्यवस्था की एक संपूर्ण सत्ता उभरती है।

जन सुरक्षा के नाम पर, कौन सी गाड़ी आप चलाते हैं, आपके साथ कौन चलता है, आप कहां जाते हैं और कहां- कहां ठहरते हैं-यह सब भी मॉनिटर किया जाता है। बड़ी टेक कम्पनियों के अमेरिकन सीनेट सुनवाइयों से पता चला कि फेसबुक ने लाखों-लाख प्रयोगकर्ताओं का निजी डाटा वोटर एनालिटिक्स के लिए केम्बरिज एनालिटिका को बेच दिया था ताकि वह भारी शुल्क लेकर राजनीतिक दलों को चुनावी सलाह दे सके। केवल विपक्षी दलों के राजनीतिक नेताओं की नहीं, बल्कि सत्तधारी दल के नेताओं के और मंत्रीमण्डल के साथियों तक के फोन की टैपिंग करना कोई नई बात नहीं है। यह 1970 के दशक में यूएस राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के शासनकाल में वाटरगेट स्कैण्डल के समय से होता आ रहा है। हमारे देश में भी जब प्रणव मुखर्जी वित मंत्री थे, उन्होंने मनमोहन सिंह से शिकायत की थी कि उनके फोन तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदाम्बरम द्वारा टैप किये जा रहे हैं।

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