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नाराज किसान: मजबूत किसान मोर्चेबंदी

-आउटलुक,

“नए केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की चौहद्दी और देश भर में मोर्चे पर डटे किसानों के पक्ष में बढ़ता जन समर्थन”

शुरुआत में ट्रैक्टरों का एक छोटा काफिला एनएच 44 पर दिल्ली की ओर बस कुछ नारों और फौलादी इरादों के साथ बढ़ा चला आ रहा था। सामान्य हालात में उनका विरोध प्रदर्शन भी बाकी सेक्टरों जैसा ही मान लिया जाता, जिसकी देश में धारा शायद ही कभी टूटती है। लेकिन जैसे-जैसे‌ दिन बढ़ते गए, ऐसा हुजूम और समर्थन जुड़ने लगा, जो किसी ऐसी मध्ययुगीन फौजी ताकत जैसा दिखने लगा, जिससे इतिहास की धारा बदल जाया करती रही है। देश को हरित क्रांति का तोहफा देने वाले पंजाब के गौरवान्वित मगर सतर्क किसानों ने एक मुकम्मल राजनैतिक चक्रवात के आसार पैदा कर दिए हैं और एनडीए सरकार से सीधे टकरा गए हैं। यह ऐसा मंजर है जो उसे झुकने पर मजबूर कर सकता है। सरकार 1 दिसंबर से बैकफुट पर नजर आ रही थी। 40 किसान संगठनों के साथ पांच दौर की बातचीत में वह नए कृषि कानूनों में संशोधन के लिए तैयार दिखी। इन बदलावों के लिए वह संसद का विशेष सत्र बुलाने पर भी विचार कर रही थी। हालांकि दस दिन बाद गतिरोध आ खड़ा हुआ क्योंकि अधिकतम पेशकश न्यूनतम मांग से मेल नहीं खा रही थी। अलबत्ता दोनों ओर से काफी कोशिशें हुईं, कई बार अविश्वास की खाइयां भी लांघी गईं लेकिन अवरोध हटने को तैयार नहीं हुआ।

मामला अंधे मोड़ की ओर बढ़ रहा है, यह 8 दिसंबर को खुलकर दिखने लगा, जिस दिन किसान संगठनों का भारत बंद देश भर में लगभग सफल रहा। बातचीत में गतिरोध दिखने लगा। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहली बार बातचीत के लिए आगे आए और उसी दिन 13 किसान संगठनों के नेताओं के साथ करीब चार घंटे तक उनकी बैठक चली। उस बैठक में गृह मंत्री ने नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पूरी तरह नकार दी, जो सितंबर में संसद के मानसून सत्र में पारित किए गए थे। सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने के बजाए नया प्रस्ताव दिया। इन कानूनों के जिन बिंदुओं पर किसानों को आपत्ति थी, उसके लिए इन कानूनों में संशोधन की बात कही गई। केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि वह इन कानूनों में संशोधन की बात लिख कर देने के लिए तैयार है। वैसे तो पहले के कई दौर की बैठकों में भी इन कानूनों को रद्द करने की मांग नकारी जा चुकी थी, लेकिन अमित शाह के कहने से उस पर लगभग अंतिम मुहर लग गई है।

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