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आर्मी की महिला अफ़सरों को उनका अधिकार देने में भारत सरकार और देर करने वाली है?

-लल्लनटॉप, 

भारतीय थल सेना में महिला अफ़सरों को परमानेंट कमीशन मिलने में थोड़ा समय और लग सकता है. फरवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिए थे कि सेना में महिलाओं को परमानेंट कमीशन दिया जाए. आदेश था कि तीन महीने के भीतर उन महिला अफसरों को परमानेंट कमीशन दिया जाए, जो इसे चुनना चाहती हैं.

मियाद पूरी हो गयी. कोरोना और लॉकडाउन जैसी चीज़ें सिर पर. फ़ैसला लागू नहीं हो सका. इस पर सरकार ने कहा कि प्रक्रिया पूरी करने में लगभग समय लग रहा है. छह महीने का समय मांगा. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया. और कहा कि एक महीने में लागू कर दीजिए.

चूंकि महिला ऑफिसर्स जल्दी रिटायर हो जाती थीं, इस वजह से उन्हें ऊंचे पदों तक पहुंचने का मौका नहीं मिलता था. वो पद,जिन्हें कमांड पोस्ट कहा जाता है. (सांकेतिक तस्वीर: PTI)
क्या है परमानेंट कमीशन?

अभी तक थल सेना में महिला अफ़सरों की नियुक्ति शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) में ही होती थी. जिसमें दस साल और अधिकतम 14 साल तक ही सर्विस दी जाती है. यानी फ़ुल सर्विस नहीं मिलती थी. मेडिकल कोर और नर्सिंग सर्विसेज को छोड़ दें, तो बाकी की आर्मी की टुकड़ियों में महिला अफ़सरों को SSC का तय समय पूरा करके रिटायर होना ही पड़ता था.

इसके खिलाफ महिला ऑफिसर्स पिछले 17 सालों से अपना विरोध जता रही थीं. दिल्ली हाईकोर्ट ने 2010 में ये निर्णय सुनाया था कि महिला अफ़सरों को भी परमानेंट कमीशन मिलना चाहिए. इसे चैलेंज किया था केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में.

केंद्र सरकार किस आधार पर मना कर रही थी?

जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, तब केंद्र सरकार ने महिलाओं को परमानेंट कमीशन न देने के पीछे कई वजहें गिनाई थीं. सरकार की तरफ से वकील आर बालासुब्रह्मण्यम और नीला गोखले ने सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड और अजय रस्तोगी की बेंच के सामने दलील पेश की थी. और दलीलें क्या दीं :

# रैंक और फ़ाइल में मौजूद ट्रूप्स में पुरुष अधिक हैं. उनमें से भी अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं. समाज के जिन तौर-तरीकों के बीच वो बड़े हुए हैं, उनमें वो किसी महिला से कमांड लेने के आदी नहीं हैं.

# महिला अफ़सरों के लिए कमांड पोस्ट में होना इसलिए भी मुश्किल है, क्योंकि उन्हें प्रेग्नेंसी के लिए लम्बी छुट्टी लेनी पड़ती है. परिवार की जिम्मेदारियां होती हैं उन पर.

# लड़ाई के दौरान अगर कोई महिला अफ़सर युद्धबंदी बना ली जाती है, तो ये आर्मी और सरकार के लिए बेहद मुश्किल स्थिति होगी. सीधे-सीधे कॉम्बैट से उन्हें दूर रखना ही बेहतर होगा.

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