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आवरण कथा/बैंकिंग व्यवस्था/भगोड़ों की मौज, भंवर में फंसे बैंक

-आउटलुक,

“एनपीए बढ़ा, बैंकों को गहराते संकट से उबारने के उपाय ऊंट के मुंह में जीरे के सामान, गलतियों से सबक सीखने के प्रति लापरवाही, दिवालिया संहिता से सवालिया घेरे में बैंक, याराना पूंजीवाद और भगोड़ों पर कोई खास अंकुश नहीं”
अजब जलवा है भगोड़ों का। 23 मई की रात अचानक खबर आई कि देश के बैंकों को हजारों करोड़ का चूना लगाने वाले मोस्ट वांटेड भगोड़ों में से एक, मेहुल चोकसी अपनी कथित गर्लफ्रेंड बारबरा जाराबिका के साथ डोमिनिका में गिरफ्तार कर लिया गया है। आनन-फानन भारतीय जांच एजेंसियों के कुछ अधिकारी चार्टर्ड विमान लेकर उसे वापस लाने उड़ चले। विमान और अधिकारी आखिर कई दिनों के इंतजार के बाद खाली लौट आए। कथित तौर पर अब एंटीगुआ-बारबुडा के नागरिक चोकसी ने अगवा करके हनी ट्रैप में फंसाने का आरोप लगाया और 7 जुलाई को वह अपने खिलाफ मामला रद्द करने की याचिका डोमिनिका के हाइकोर्ट में दायर कर चुका है। मामला चोकसी का ही नहीं, विजय माल्या, ललित मोदी, नीरव मोदी या उन जैसे 72 भगोड़ों के लिए भारत के कानून के हाथ बेहद बौने साबित हो रहे हैं। इनमें कोई ब्रिटेन तो कोई एंटीगुआ जैसे सेफ हैवन (सुरक्षित स्थान) देशों में शानो-शौकत और मौज-मस्ती में जिंदगी गुजार रहा है, बल्कि अपने धंधे भी फैला रहा है। उनके कारनामों और गोरखधंधों से हमारे खस्ताहाल बैंक मानो ऐसी गर्त के किनारे पहुंच गए हैं कि बस कोई मामूली-सा झटका भी उन्हें और पहले से ही गर्त में धंसी हमारी अर्थव्यस्था को गहरी खाई में ढकेल सकता है। दरअसल पुरानी गलतियों से सबक न लेने की आदत, बढ़ती राजनीतिक दखलंदाजी और कोविड महामारी ने बैंकों को निचोड़कर खतरनाक हालत में पहुंचा दिया है। पांच साल में विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी जैसे विलफुल डिफॉल्टर (25 लाख रुपये से ऊपर का कर्ज लेकर न चुकाने की फिराक वाले) की संख्या 7,578 से बढ़कर 12,736 पहुंच गई है।

डोमिनिका जेल में मेहुल चोकसी

डोमिनिका जेल में मेहुल चोकसी

क्रेडिट ब्यूरो ट्रांसयूनियन-सिबिल की रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2016 से मार्च 2021 के बीच विलफुल डिफॉल्टरों की संख्या 68 फीसदी बढ़ी है। इन विलफुल डिफॉल्टरों ने मार्च 2021 तक बैंकों के 2.5 लाख करोड़ रुपये डकारे हैं, जो मार्च 2016 के करीब 79 हजार करोड़ रुपये से तीन गुना बढ़ चुका है। इसी तरह भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) की ताजा फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट के अनुसार सार्वजनिक बैंकों के जैसे हालात हैं, मार्च 2022 तक उनका डूबत कर्ज 12.52 फीसदी तक पहुंच जाएगा, जो मार्च 2021 में 9.54 फीसदी था। इसी डूबत कर्ज को बैंक या सरकारी की भाषा में गैर-निष्पादित संपत्ति या एनपीए कहकर कुछ अच्छा-सा नाम दिया जाता है, जो शायद हमारे देश में ही संभव है, क्योंकि जिसका निष्पादन न हो सके या जो काम न आ सके, वह संपत्ति कैसे हो सकती है?

दूसरी ओर लगातार खस्ताहाली की ओर ढकेले जाते बैंकों और सार्वजनिक पैसे की लूट की कहानी भी खुलती जा रही है। आरबीआइ के आंकड़ों के अनुसार 2014-15 से लेकर 2019-20 के बीच बैंकों के सकल एनपीए में 18.28 लाख करोड़ रुपये का इजाफा हुआ है, जिसमें से 6.83 लाख करोड़ रुपये के कर्ज बैंकों ने राइटऑफ कर दिए हैं। बढ़ते बैड लोन (डूबत कर्ज) को देखते हुए अब केंद्र सरकार बैड बैंक बनाने का ऐलान कर चुकी है। नया बैंक इन डूबे कर्ज का निपटारा करेगा। इस बीच सरकार ने सात सार्वजनिक बैंकों का भी विलय कर दिया है। इसके तहत देना बैंक, विजया बैंक, कॉरपोरेशन बैंक, आंध्रा बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और इलाहाबाद बैंक का विभिन्न बैंकों में विलय किया गया है। सरकार का दावा है कि इससे बैंकों की बैलेंस शीट सुधरेगी। हालांकि एक वरिष्ठ बैंकर का कहना है कि बैंक भंवर जाल में फंस गए हैं। उन्हें एक-दूसरे से समन्वय करने में ही बड़ी दिक्कत आ रही है, इसलिए ये कोशिशें मुलम्मा चढ़ाने जैसी ही हैं, ताकि रोग छुप जाए।

बैंक डूब गए

इस बीच, एक खबर स्विट्जरलैंड से भी आ गई है। स्विस बैंक के अनुसार वहां के बैंकों में भारतीयों की जमा राशि 2019 की तुलना में 2020 में 286 फीसदी बढ़ गई। 2019 में वहां भारतीयों का 7,200 करोड़ रुपये जमा था, जो 2020 में बढ़कर 20,706 करोड़ रुपये हो गया है। हालांकि वित्त मंत्रालय ने बिना कोई आंकड़ा जाहिर किए यह दावा कर दिया है कि स्विस बैंक में जमा राशि बढ़ी नहीं, बल्कि घटी है। सरकारी दावा यह भी है कि मोटे तौर पर अघोषित आय बढ़ने के संकेत नहीं हैं।

साफ है कि हमारे राजनैतिक नेतृत्व और बैंकिंग सेक्टर ने अपनी पिछली गलतियों से कोई खास सबक नहीं लिया है। चाहे बात 1992 के हर्षद मेहता घोटाले की हो, 2001 के केतन पारेख घोटाले, 2016 में देश छोड़कर भागे विजय माल्या की हो या फिर भगोड़े मेहुल चोकसी और नीरव मोदी का 2018 में किया गया पंजाब नेशनल बैंक का घोटाला, सबमें वही गलतियां पिछले 30 साल से दोहराई जा रही हैं। राजनीतिक दखलंदाजी, बैंकिंग सेक्टर की कमियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से लाखों करोड़ रुपये का चूना लग जाता है। और पूरा सिस्टम हाथ पर हाथ धरे बैठा रह जाता है।

इन आंकड़ों पर गौर कीजिए और बैंकों की समस्या पर जुलाई 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान को याद कीजिए। तब उन्होंने कहा था, ‘‘यूपीए शासन के दौर में फोन बैंकिंग घोटाला होता था।’’ उनका इशारा था कि फोन करके कर्ज की बंदरबांट कराई गई। उम्मीद थी कि नई सरकार इस स्थिति को बदलेगी, लेकिन हालात और आंकड़े तो यही बताते हैं कि वह या उस जैसी बंदरबांट में और तेजी आ गई।

क्रोनी कैपिटलिस्टों की चांदी

अगर याद करें तो क्रोनी कैपिटलिज्म या याराना पूंजीवाद का आरोप कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए सरकार के दौरान खूब उछला था। इसलिए यह भी उम्मीद थी कि केंद्र में सत्ता-परिवर्तन के साथ ये हालात बदलेंगे, लेकिन 2014 के बाद आंकड़े यही जाहिर करते हैं कि याराना पूंजीवाद में तेजी ही आई। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में 2019 के बाद जैसे यह तेजी कई गुनी बढ़ गई। कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा कहते हैं, ‘‘मोदी सरकार का क्रोनी कैपिटलिस्टों से ऐसा रिश्ता है, जो शायद दिल की गहराइयों से कहीं आगे जा चुका है। बड़े बुजुर्ग कहते थे कि भावनात्मक रिश्ते इंसान को अंधा बना देते हैं। फिर वह सही, गलत, अच्छा, बुरा, भला, कुछ नहीं देख पाता। कुछ ऐसी ही इस सरकार की दास्तां है।’’

खेड़ा कुछ मिसालें भी पेश करते हैं। वे बताते हैं, ‘‘देश में क्रोनी कैपटलिज्म का खेल कैसे चल रहा है, इसे रुचि सोया के उदाहरण से समझा जा सकता है।’’ दरअसल 2017 में रुचि सोया कंपनी ने दिवालिया होने की अर्जी एनसीएलटी (नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल) में डाली थी। इस कंपनी ने 12,146 करोड़ रुपये का कर्ज अलग-अलग बैंकों से लिया था, जिसमें भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) का सबसे ज्यादा 1,816 करोड़ रुपये का कर्ज था। जब सेटलमेंट की बात आई, तो एसबीआइ सिर्फ 883 करोड़ ले पाया। दिवालिया घोषित होने के बाद कंपनी खरीदने के लिए पतंजलि और वूलमार्क अडानी ने बोली लगाई। अंत में पतंजलि ने 4,350 करोड़ में रुचि सोया को खरीद लिया।

कहानी में ट्विस्ट यहीं से आता है। रुचि सोया को खरीदने के लिए पतंजलि ने 3,250 करोड़ रुपये का कर्ज लिया और कर्ज का प्रमुख हिस्सा एसबीआइ ने दिया। यानी एक कंपनी जो तमाम बैंकों का पैसा लेकर डूब गई, उस कंपनी को बेचने की सौदेबाजी शुरू हुई, तो खरीदार को भी उन्हीं बैंकों से उसी डूबी हुई कंपनी को खरीदने के लिए कर्ज मिल गया। खेड़ा कहते हैं, ‘‘एसबीआइ ने आम लोगों का पैसा लगाया है। अर्थव्यवस्था की क्या स्थिति है, हम-आप देख ही रहे हैं। ऐसे माहौल में जब एनपीए के आंकड़े चौंका देते हैं तो यह क्रोनी कैप्टलिज्म नहीं तो क्या है?’’

इस बीच वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने जनवरी 2021 में सीबीआइ से अपील की थी वह अनिल अंबानी के खिलाफ बैंक धोखाधड़ी का मामला दर्ज करे। उन्होंने ऐसी ही अपील आरबीआइ, विदेश मंत्रालय, केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, वित्त मंत्रालय से भी की थी। उन्होंने अपील में कहा था कि रिलायंस कम्युनिकेशंस, रिलायंस इंफ्राटेल सहित दूसरी कंपनियों पर करीब 85 हजार करोड़ रुपये का कर्ज बकाया है। हालांकि अभी तक उनकी अपील पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

सरकारी हरकत नाकाफी

वैसे, मोदी सरकार के लिए इन आरोपों के बीच एक राहत की खबर आई है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 23 जून को दावा किया कि विजय माल्या, मेहुल चोकसी और नीरव मोदी ने बैंकों को करीब 22,585 करोड़ रुपये का चूना लगाया था। इस वसूलने के लिए ईडी ने 18,170 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त कर ली है। इसमें 9317.17 करोड़ रुपये की संपत्ति बैंकों को ट्रांसफर भी कर दी गई है। इस पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ट्वीट किया, ‘‘भगोड़े आर्थिक अपराधियों पर लगातार शिकंजा कसा जा रहा है और वसूली के लिए उनकी संपत्ति जब्त की जा रही है।’’

माल्या पर बैंकों का ब्याज के साथ करीब 10 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है। इस वसूली के तहत बैंकों ने माल्या के यूनाइटेड ब्रेवरीज में मौजूद 5,800 करोड़ रुपये के शेयर हेनिकेन इंटरनेशनल को बेचे हैं। इसके पहले बैंकों ने 1357 करोड़ रुपये के शेयर बेचे थे। इसके जरिए उन्होंने करीब 7,000 करोड़ जुटा लिए हैं। यह विपक्ष को जवाब देने के लिए भाजपा का सहारा बन रहा है।

भाजपा के अंदर भी यह माना जा रहा है कि कोविड-19 की दूसरी लहर के बाद जिस तरह से सरकार चौतरफा घिरी है, उसे देखते हुए इन भगोड़ों को वापस लाने का कदम उसकी छवि को सुधारने का काम करेगा। पार्टी के एक नेता का कहना है कि विजय माल्या, मेहुल चोकसी, नीरव मोदी बैंकिंग धोखाधड़ी के प्रतीक बन गए हैं। ऐसे में अगर सरकार उन्हें वापस लाने में कामयाब हो जाती है तो यह बहुत बड़ा कदम साबित होगा। उन्होंने कहा कि मेहुल चोकसी जिस तरह डोमिनिका में गिरफ्त में आया है, उसके बाद इंटरपोल के रेड कॉर्नर नोटिस के जरिए उसे भारत लाने की संभावना प्रबल हो गई है। नीरव मोदी मामले में भी सफलता नजदीक है। इसी तरह विजय माल्या को लेकर भी प्रयास जारी हैं। ब्रिटेन में कानून लड़ाई में सीबीआइ और प्रवर्तन निदेशालय अपना पक्ष रख रहे हैं। सरकार ने 2018 में भगोड़ा आर्थिक आपराधी अधिनियम भी संसद से पारित कराया है, जो ऐसे लोगों पर नकेल कसने के लिए बनाया गया है।

लेकिन विदेश से भगोड़ों को लाना कितना मुश्किल है, यह केंद्रीय मंत्री जितेंद्र प्रताप सिंह के संयुक्त राष्ट्र की सामान्य महासभा में 6 जून के बयान से साफ हो जाता है। उन्होंने कहा, ‘‘आरोपी विदेश में शरण लेकर अपने अपराधों की सजा से बचने की कोशिश करते हैं। अलग-अलग देशों में जटिल कानून और न्याय व्यवस्था होने और देशों में बेहतर आपसी समन्वय न होने का ये अपराधी फायदा उठाते हैं।’’

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