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भारत की कोविड-19 इमरजेंसी: The Lancet का ताज़ा संपादकीय

-जनपथ,

भारत के पीड़ा भरे दृश्‍यों को समझ पाना मुश्किल है। बीती 4 मई तक 20.2 मिलियन से ज्‍यादा कोविड-19 संक्रमण के मामले दर्ज किए गए यानी रोज़ाना का औसत 378000 मामले, जिनमें मौतों की संख्‍या 222000 थी जो जानकारों के मुताबिक वास्‍तविकता से बहुत कम आकलन है। अस्‍पताल मरीज़ों से पटे पड़े हैं, स्‍वास्‍थ्‍यकर्मी पस्‍त हो चुके हैं और संक्रमित हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर ऑक्‍सीजन, अस्‍पताल के बिस्‍तर और दूसरी ज़रूरी चीजों के लिए लोग (डॉक्‍टर और जनता) गुहार लगा रहे हैं। इसके बावजूद, मार्च के आरंभ में कोविड-19 की दूसरी लहर में संक्रमण के मामले बढ़ने से पहले तक भारत के स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री डॉ. हर्षवर्द्धन ऐलान कर रहे थे कि भारत अब महामारी को अंजाम तक पहुंचा चुका है। सरकार ऐसा माहौल बना रही थी कि कई महीनों तक संक्रमण के कम मामले देखन के बाद भारत ने कोविड-19 को मात दे दी है, बावजूद इसके कि लगातार दूसरी लहर के खतरे और नए स्‍ट्रेन के उभार की चेतावनी दी जा रही थी। मॉडलिंग में झूठा दावा किया गया कि भारत हर्ड इम्‍यूनिटी की स्थिति में पहुंच चुका है, जिसने लापरवाही और अपर्याप्‍त तैयारी की छूट दे दी। जनवरी में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा किए गए एक सीरोसर्वे ने बताया कि केवल 21 प्रतिशत आबादी में SARS-COV-2 के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित हो सकी थी। ऐसा लगता है कि कई मौकों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को महामारी की रोकथाम से कहीं ज्‍यादा चिंता ट्विटर पर हो रही आलोचनाओं को शांत कराने की रही है।

बड़े पैमाने पर संक्रमण के प्रसार वाले आयोजनों के खिलाफ लगातार जारी की जा रही चेतावनी के बावजूद सरकार ने धार्मिक त्‍योहारों को होने दिया जिनमें देश भर से लाखों लोगों ने शिरकत की। साथ ही विशाल सियासी रैलियां आयोजित की गयीं जिनमें कोविड-19 से बचने के उपायों की अनदेखी की गयी। कोविड-19 अब खत्‍म हो चुका है, ऐसे संदेश ने भारत के टीकाकरण अभियान के आगाज को भी सुस्‍त बना दिया जहां अब तक 2 प्रतिशत से कम आबादी को ही टीका लग सका है। केंद्रीय स्‍तर पर टीकाकरण की योजना जल्‍द ही बिखर गयी। राज्‍यों के साथ नीतिगत बदलाव पर कोई परामर्श करने के बजाय केंद्र सरकार ने तुरंत अपनी दिशा बदलते हुए टीकाकरण को 18 बरस से ज्‍यादा की उम्र की समूची आबादी तक विस्‍तारित कर दिया जिसके चलते आपूर्ति कम पड़ गयी, बड़े पैमाने पर भ्रम फैला और टीके का एक ऐसा बाजार उभर आया जहां राज्‍य और अस्‍पताल एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी बन बैठे।

यह संकट हर ओर समान रूप से नहीं फैला है। उत्‍तर प्रदेश और महाराष्‍ट्र जैसे राज्‍यों में मामले तेजी से बढ़ने के साथ ही अस्‍पतालों के बिस्‍तर, ऑक्‍सीजन और श्‍मशानों व कब्रिस्‍तानों में जगह का टोटा पड़ गया। तिस पर कुछ राज्‍य सरकारों ने ऑक्‍सीजन और अस्‍पतालों में बिस्‍तर की मांग करने वालों पर राष्‍ट्रीय सुरक्षा कानून लगाने की धमकी दे डाली। इनके मुकाबले केरल और ओडिशा जैसे राज्‍य कहीं बेहतर तैयारी में थे। इन्‍होंने इस दूसरी लहर में इतना ऑक्‍सीजन उत्‍पादित कर दिया है कि दूसरे राज्‍यों को भी दे रहे हैं।     

भारत को अब दो आयामी रणनीति पर काम करना चाहिए। पहला, बिखरे हुए टीकाकरण अभियान को किफायती बनाते हुए पूरी गति से लागू किया जाना चाहिए। फिलहाल दो कमियों को पूरा करने की जरूरत है: वैक्‍सीन की आपूर्ति में इजाफा (जिसमें से कुछ तो बाहर से मंगवायी जा सकती है) और एक ऐसा वितरण अभियान शुरू करना जो न सिर्फ शहरी बल्कि ग्रामीण और गरीब जनता को भी कवर कर सके जिसकी हिस्‍सेदारी पूरी आबादी में 65 प्रतिशत से ज्‍यादा है (80 करोड़ से ज्‍यादा) लेकिन जनस्‍वास्‍थ्‍य और प्राथमिक देखभाल सुविधाओं का सबसे ज्‍यादा अभाव उसी को झेलना पड़ता है। सरकार को स्‍थानीय और प्राथमिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्रों के साथ मिलकर काम करना चाहिए क्‍योंकि वे अपने समुदायों को अच्‍छे से जानते हैं और टीकों का एक समतापूर्ण वितरण तंत्र स्‍थापित करना चाहिए।      

जब तक वैक्‍सीन आए, तब तक इस बीच भारत को SARS-COV-2 के प्रसार को यथासंभव रोकना चाहिए। मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं इसलिए सरकार को समयबद्ध तरीके से सटीक आंकड़े प्रकाशित करने चाहिए और सामने आकर जनता को बताना चाहिए कि आखिर चल क्‍या रहा है और महामारी के मामले कम करने के लिए क्‍या-क्‍या किए जाने की ज़रूरत है, जिसमें संघीय स्‍तर पर लागू किया गया नया संभावित लॉकडाउन भी एक विकल्‍प हो। SARS-COV-2 के उभरते हुए औश्र ज्‍यादा प्रसार क्षमता वाले वैरिएंट की पहचान, समझ और नियंत्रण के लिए जीनोम सीक्‍वेंसिंग को विस्‍तारित किए जाने की जरूरत है। स्‍थानीय सरकारों ने बीमारी की रोकथाम के उपाय शुरू कर दिए हैं, लेकिन जनता को मास्‍क लगाने, शारीरिक दूरी बरतने, बड़ी संख्‍या में एकत्रित होने, स्‍वैच्छिक क्‍वारंटीन होने और परीक्षण करवाने की ज़रूरत समझाने के लिहाज से केंद्रीय सरकार की भूमिका अनिवार्य है। इस संकट के दौरान मोदी ने जिस तरीके से आलोचनाओं और खुली बहसों का मुंह बंद करवाने की कार्रवाई और कोशिश की है, वह माफ़ किए जाने योग्‍य नहीं है।

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