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पश्चिम कर रहा है वैश्विक स्तर पर टीके में नस्लभेद

-न्यूजक्लिक,

अमीर देश जिनमें अमरीका, कनाडा, यूके तथा योरपीय यूनियन शामिल हैं, जहां दुनिया की कुल आबादी का आठवां हिस्सा रहता है, उन्होंने दुनिया की 50 फीसद से ज्यादा खुराकें हथिया ली हैं। अकेले अमरीका ने ही 14.7 करोड़ टीके हथिया लिए हैं। (देखें, तालिका-1) यह समूचे अफ्रीकी महाद्वीप, जिसकी आबादी अमरीका से चार गुनी ज्यादा है, को मिले टीकों से 14 गुनी से भी ऊपर है। 

वास्तव में अगर अफ्रीका के हिस्से से मोरक्को को मिली टीके की खुराकों को अलग कर दिया जाए, जो वैसे भी हर लिहाज से बाकी अफ्रीका से न्यारा ही है, तो अमरीका के हाथ आए टीके, अफ्रीका को मिले कुल टीकों से 60 गुना ज्यादा हो जाते हैं। इसलिए, अचरज की बात नहीं है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिर्देशक, टेडरॉस घेब्रेयेसस ने दुनिया के पैमाने पर टीके वितरण की स्थिति को बहुत ‘भोंडा’ करार दिया है। हमें भी टीकों की खुराकों का बहुत बड़ा हिस्सा मुट्ठीभर धनी, पूर्व-औपनिवेशिक या सैटलर-औपनिवेशिक देशों के लिए सुरक्षित कर लिए जाने को ‘टीका राष्ट्रवाद’ का नाम नहीं देना चाहिए। बल्कि इसे इसके असली नाम से पुकारना चाहिए और वह है--वैश्विक स्तर पर टीका नस्लभेद। 

तालिका-2 में विभिन्न प्रमुख टीका निर्माताओं द्वारा 29 मार्च तक निर्मित टीकों के आंकड़े दिए गए हैं (AirFinityवैबसाइट से)। अगर हम भारत बायोटैक, जान्सन एंड जान्सन तथा कैन सिनो के अब तक के काफी मामूली उत्पादन को छोड़ दें तो, हम यह पाते हैं कि इस समय उपलब्ध टीकों का 90 फीसद से ज्यादा हिस्सा फाइजर, एस्ट्राजेनेका, सिनोवैक, मॉडर्ना तथा सिनोफार्म से ही आया है। स्पूतनिक-v अब तक अपेक्षाकृत बड़े पैमाने पर टीके का उत्पादन नहीं कर पाया है, हालांकि उसने अनेक कंपनियों के साथ समझौते कर लिए हैं, जो इस टीके का उत्पादन करने के लिए तैयार हैं।

अब देखने की बात यह है कि अमीर देशों में उत्पादित टीके में से कितना हिस्सा शेष दुनिया को दिया गया है। इसका कड़वा लगने वाला जबाव यह है कि अमीर देशों ने अपने यहां बने करीब-करीब सारे टीके खुद ही रख लिए हैं। मॉडर्ना का उत्पादन पूरी तरह से अमरीका को ही मिला है। फाइजर ने अपने अमरीका स्थित टीका उत्पादन केंद्रों से अमरीका को टीका मुहैया कराया है और अपने यूरोप स्थित टीका कारखानों से यूरोपीय यूनियन तथा यूके को टीके मुहैया कराए हैं। इसके अलावा उसने इस्राइल को और खाड़ी के निरंकुश शासनों को भी टीके मुहैया कराए हैं, लेकिन यह तो उसके कुल उत्पादन का एक छोटा सा हिस्सा भर है।

बेशक, अमीर देशों के बीच आपस में भी कुछ झगड़े हुए हैं। मिसाल के तौर पर आस्ट्राजेनेका के टीके की आपूर्तियों को लेकर यूके और यूरोपीय यूनियन की आपसी खींचातान। शायद इसलिए, उन्हें शेष दुनिया की ओर नजर डालने का समय ही नहीं मिला है! अगर हम इन देशों में उत्पादित टीके की खुराकों को (तालिका-2) इन देशों में इस्तेमाल की गयी खुराकों क साथ रखकर देखें तो हमें आसानी से इसका अंदाजा लग जाएगा कि इन देशों से कितने टीके की दूसरे देशों के लिए आपूर्ति की गयी है।

तब अन्य देशों को यानी करीब-करीब बाकी सारी दुनिया को टीके कहां से मिले हैं? ऐसा लगता है कि टीकों का इकलौता स्रोत चीन और भारत ही हैं, जबकि रूस से अपेक्षाकृत कम संख्या में टीके उपलब्ध हुए हैं। इस तथ्य की पुष्टि प्रैस के तमाम स्रोतों से आयी खबरें करती हैं जो बताती हैं कि किस तरह लातीनी अमेरिका, पूर्वी-यूरोप तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया को चीन, भारत तथा रूस से ही टीके मिल रहे हैं।

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