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कोरोना वायरस ने विश्व भर की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की पोल खोल के रख दी है

-द वायर,

कई बार ऐसे दृश्य, ऐसी तस्वीरें खींचे जाते वक्त़ ही कालजयी बने रहने का संकेत देती हैं. वह एक ऐसी ही तस्वीर थी. मिलान, जो इटली के संपन्न उत्तरी हिस्से का मशहूर शहर है, वहां अपने डॉक्टरी यूनिफॉर्म पहनी एक टीम मालपेन्सा एयरपोर्ट पर उतर रही थी और मिलान के उस प्रसिद्ध एयरपोर्ट में जमे तमाम लोग खड़े होकर उनका अभिवादन कर रहे थे. (18 मार्च 2020)

यह क्यूबा के डॉक्टर तथा स्वास्थ्य पेशेवर थे जो इटली सरकार के निमंत्रण पर वहां पहुंचे थे. एयरपोर्ट में खड़े लोगों में चंद श्रद्धालु ऐसे भी थे, जिन्होंने अपने सीने पर क्रॉस बनाया, अपने भगवान को याद किया क्योंकि उनके हिसाब से क्यूबा के यह डॉक्टर किसी ‘फरिश्ते’ से कम नहीं थे.

मिलान वही इलाका है जो कोरोना से बुरी तरह प्रभावित इटली के लोम्बार्डी क्षेत्र में स्थित है. दुनिया की सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था कही जाने वाली इटली – जिसकी स्वास्थ्य सेवाओं की दुनिया में काफी बेहतर मानी जाती हैं, कोरोना के चलते मरने वालों की तादाद वहां 9,000 पार कर गयी है. ( 28 मार्च 2020)

क्यूबा की यह अंतरराष्ट्र्रीयतावादी पहल इस मायने में भी मायने रखती है कि इटली उन मुल्कों में शुमार रहा है जिसने क्यूबा पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने में हमेशा अमेरिका का साथ दिया है.

और यह कोई पहली टीम नहीं है जो क्यूबा से दूसरे मुल्कों में रवाना हुई है. इसके पहले कोरोना से जूझने के लिए क्यूबा की टीमें पांच अलग अलग मुल्कों में भेजी गयी है: वेनेजुएला, जमैका, ग्रेनाडा, सूरीनाम और निकारागुआ.

एक ऐसे समय में जब विकसित कहे जाने वाले मुल्कों में कोरोना नामक फिलवक्त़ असाध्य लगने वाली बीमारी से मरने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है, अस्पतालों से महज मरीजों की ही नहीं बल्कि डॉक्टरों एव स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की मरने की ख़बरें आना अब अपवाद नहीं रहा, इस छोटे-से एक करोड़ आबादी के इस मुल्क ने अपनी दखल से जबरदस्त छाप छोड़ी है.

आलम यह है कि कोरोना के चलते उपजे वैश्विक संकट से जूझने की अग्रणी कतारों में क्यूबा दिख रहा है. यह वही क्यूबा है जिस पर अमेरिका की तरफ से पचास साल से अधिक समय से आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए हैं और अमेरिका की इस अन्यायपूर्ण हरकत का तमाम पूंजीवादी मुल्कों ने साथ दिया है.

हमें नहीं भूलना चाहिए कि इन प्रतिबंधों को संयुक्त राष्ट्र संघ की तरफ से गैरकानूनी घोषित किया गया है और क्यूबा का आकलन है कि सदियों से चले आ रहे इन प्रतिबंधों ने उसे 750 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है.

सोवियत संघ के विघटन के बाद वहां आर्थिक स्थिति पर काफी विपरीत असर पड़ा है. गौरतलब है कि क्यूबा में लोगों की औसतन उम्र 78 साल के करीब पड़ती है जो संयुक्त राज्य अमेरिका के बराबर है और अगर प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर खर्चे को देखें तो वहां अमेरिका की तुलना में महज 4 फीसदी खर्च होता है.

कहने का तात्पर्य कि चाहे निजी बीमा कंपनियां हों, गैरजरूरी इलाज हो, बीमारियों का निर्माण हों या अस्पताल में अधिक समय तक भर्ती रखकर होने वाले छूत के नए संक्रमण हो, अमेरिका में मरीजों का खूब दोहन होता है.

वहां स्वास्थ्य रक्षा का फोकस बीमारी केंद्रित है वहीं क्यूबा में वह निवारण केंद्रित है.

मालूम हो कि चीन में कोरोना से मरनेवाले मरीजों में तेजी से कमी आयी है जिसमें एक महत्वपूर्ण कारक के तौर पर क्यूबा द्वारा विकसित एंटीवायरल ड्रग अल्फा 2 बी का उल्लेख करना जरूरी है.

यह दवाई वर्ष 2003 से चीन में निर्मित हो रही है जहां क्यूबा सरकार की मिल्कियत वाली फार्मास्युटिकल कंपनी के साथ मिलकर यह उत्पादन हो रहा है. इसे इंटरफेरॉन कहते हैं जो एक तरह से प्रोटीन्स होते हैं जो मनुष्य की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं.

शायद ‘मुनाफे के लिए दवाईयां’ के सिद्धांत पर चलने वाले मौजूदा मॉडल में ऐसी कामयाबियों पर गौर करने की फुर्सत नहीं है. क्यूबा ने इस दवा को डेंगू जैसी बीमारी से लड़ने में बेहद प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया है.

आखिर क्यूबा इस स्थिति में कैसे पहुंचा यह लंबे अध्ययन का विषय है. फिलवक्त़ इतना ही बताना काफी रहेगा कि क्यूबा की सार्वभौमिक स्वास्थ्य प्रणाली, जिस ‘चमत्कार’ को लेकर पश्चिमी जगत के तमाम विद्वानों ने कई किताबें भी लिखी हैं और बीबीसी जैसे अग्रणी चैनलों ने उस पर विशेष डॉक्युमेंट्री भी तैयार की है.

अपनी चर्चित किताब ‘सोशल रिलेशंस एंड द क्यूबन हेल्थ मिरैकल’ (2010) में एलिजाबेथ काथ बताती हैं कि ‘क्यूबा में स्वास्थ्य नीति पर अमल में व्यापक स्तर पर लोकप्रिय सहभागिता और सहयोग दिखता है, जिसे सार्वजनिक स्वास्थ्य को वरीयता देने की सरकार की दूरगामी नीति के तहत हासिल किया गया है. सरकार का इतना राजनीतिक प्रभाव भी है कि वह शेष जनता को इसके लिए प्रेरित कर सके.’

व्यापक इंसानियत के प्रति क्यूबाई जनता के सरोकार की एक ताज़ी मिसाल मार्च महीने के मध्य में समूची दुनिया के मीडिया में आयी जब उसने ब्रिटेन के ऐसे जहाज को अपने यहां उतरने की अनुमति दी, जिस जहाज पर सवार कई यात्राी कोविड-19 बीमारी का शिकार हुए थे और कैरेबियन समुद्र में वह जहाज महज पानी में तैर रहा था.

यह ख़बर मिलने पर कि उसमें सवार यात्राी कोविड-19 का शिकार हुए हैं, किसी मुल्क ने उन्हें अपने यहां उतरने की अनुमति नहीं दी थी.

क्यूबाई इंकलाब के महान नेता चे ग्वेरा- जो 1967 में सीआईए के गुर्गों के हाथों शहीद हुए थे- ने अपनी जनता को लिखे अंतिम पत्र में लिखा था ‘अनटिल विक्टरी, ऑलवेज’ (विजयी होने तक हमेशा). क्यूबा की जनता आज भी उनके संदेश को दिलों में संजोए है.

निश्चित ही कोरोना का कहर अभी जारी है और जैसा कि जानकार बता रहे हैं कि आने वाला समय समूची विश्व की मानवता के लिए जबरदस्त चुनौतियों का समय है, कितने लोग इसमें कालकवलित होंगे और कितने बच निकलेंगे इसका अनुमान लगाना संभव नहीं.

लेकिन एक बात तो तय है कि आपदा के ऐसे समय में लोगों/मुल्कों की खुदगर्जी और निस्वार्थी भाव ही सामने नहीं आ रहा बल्कि इस आपदा का लाभ उठाने में कॉरपोरेट सम्राटों की क्या कारगुजारियां चल रही हैं, वह भी साफ दिख रहा है.

आपदा का समय मनुष्य के एक और पहलू को बखूबी उजागर करता है, जिसे उसका अहमकपना भी कह सकते हैं.

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