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टीआरपी घोटाला: बार्क कैसे डेटा की हेरा-फेरी में रहस्यमय बनी हुई है

-न्यूजलॉन्ड्री, 

भारत का नंबर वन अंग्रेजी न्यूज़ चैनल कौन सा है. रिपब्लिक टीवी या टाइम्स नाउ? असल में, इसका जवाब किसी को नहीं पता क्योंकि टीआरपी में घपले की जारी जांच की वजह से हम सब रेटिंग को लेकर अंधेरे में हैं.

ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल- जो अपने आप को विश्व की सबसे बड़ी दर्शकों की गणना करने वाली कंपनी कहती है, पर घपले के आरोप लगे लगभग तीन महीने हो चुके हैं और तब से सभी अंग्रेजी, क्षेत्रीय भाषाई और बिजनेस चैनलों की हर सप्ताहिक रेटिंग जारी करने को स्थगित कर दिया गया है. और अभी उसके द्वारा शुरू किए जाने पर प्रश्न चिन्ह है.

मई 2017 में प्रसारण शुरू होने से पहले, रिपब्लिक टीवी ने कथित तौर पर देशभर में कई केबल टीवी संचालकों से अपने चैनल को लैंडिंग पेज बनाने के लिए हाथ मिला लिया था. जिसका मकसद यह था कि दर्शकों की टीवी देखने की आदत को मापने के लिए लगाए गए बार्क के उपकरण “ बार-ओ-मीटर” में चैनल बदलने से पहले उनका चैनल जनता के द्वारा देखा गया गिना जा सके.

दो साल बाद अगस्त 2019 में, बार्क ने भारत में अपने डेटा को सत्यापित करने की प्रक्रिया में कुछ एल्गोरिदम डालीं, जिससे कि दर्शकों से मिलने वाली जानकारी पर स्वत: खुलने वाले चैनल का गुणात्मक प्रभाव कम किया जा सके. बार्क भारत का यह कहना था कि ऐसा इसलिए किया गया जिससे कि डाटा की जांच के विज्ञान को बेहतर किया जा सके और देखने की आदतों पर बाहरी चीजों का कम से कम प्रभाव दिखाई दे.

लांच होने से पहले, रिपब्लिक टीवी ने अपनी शुरुआत की घोषणा करते हुए जगह-जगह विशालकाय होर्डिंग भी लगाए थे. एक पुराने कर्मचारी ने हमें यह बताया कि रिपब्लिक के सबसे पहले होर्डिंग में से एक चेन्नई में लगा था, जहां पर नए-नए अंग्रेजी चैनल आते रहते हैं. बाहर होने वाले जबरदस्त प्रचार से लेकर चैनल को लैंडिंग पेज बनाने तक, अति आवश्यक टीआरपी रेटिंग में चढ़ने के लिए सब कुछ वाजिब तरीके से होता हुआ प्रतीत होता था.

जब इस नए चैनल- जो अपने आप को "जिसकी आवाज को चुप न कराया जा सके" होने का दावा करता था, ने टाइम्स नाउ को पहले हफ्ते में दूसरे स्थान पर धकेल दिया तो हर कोई स्तब्ध रह गया. मुंबई के एक मीडिया पर पैनी नजर रखने वाले कहते हैं, "हमें सही में लगा कि अर्णब गोस्वामी एक पूर्व टाइम्स नाउ के व्यक्ति ने अंग्रेजी समाचार जगत पर जादू करके असंभव को संभव बना दिया."

दो साल और चार महीने बाद जब बार्क इंडिया के पहले चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर पार्थो दासगुप्ता ने अक्टूबर 2019 में अपना पद छोड़ा और उनकी जगह सुनील लुल्ला ने पद संभाला, तो काफी लोगों को लगा कि यह मैनेजमेंट में आमतौर पर होने वाला परिवर्तन है. सुनील यह पद दिए जाने से पहले भी बार्क के बोर्ड के सदस्य थे और उनके काम करने के तरीकों को अच्छे से जानते थे. उन्होंने अपने आप को जल्दी ही इस काम में ढाल भी लिया.

उसके थोड़े ही समय बाद चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर रोमिल रामगढ़िया ने भी अपना पद त्याग दिया. सूत्रों ने बताया कि बार्क के तौर-तरीकों पर एक आंतरिक रिपोर्ट ने कई गड़े मुर्दे उखाड़ दिए थे. डाटा में घपले की एक फॉरेंसिक जांच और संस्था को सही आकार देने का प्रयास, समानांतर रूप से चलने के कारण करीब 40 वरिष्ठ और मध्यम श्रेणी के कर्मचारी मैनेजमेंट के बाहर हो गए थे जिससे कि बार्क में कर्मचारियों की कुल संख्या 200 से कुछ अधिक ही रह गई.

यह पांच वर्ष पुरानी संस्था अपने स्टाफ में 10-12% की कटौती करते समय भी नुकसान में चल रही थी. कुछ लोगों को जहां जाने के लिए कह दिया गया वहीं कुछ बेहतर अवसरों को पाकर निकल गए. छोड़कर जाने वालों में पश्चिम के प्रमुख रुशभ मेहता, दक्षिण के प्रमुख वेंकट सम्राट और मुख्य जन अधिकारी और कार्य नीति प्रमुख मानशी कुमार भी मौजूद थीं.

अक्टूबर 2020 में बार्क इंडिया और उनके एक विक्रेता हंसा ने मुंबई पुलिस से "संदेहास्पद झुकावों और क्रियाकलापों" की शिकायत लेकर संपर्क किया. ऐसा प्रतीत होता था कि कुछ घरों में अपने टीवी को चालू रखने का पैसा दिया जा रहा था, भले ही वह उसे देख रहे हो या नहीं. जिससे कि दर्शकों से मिलने वाले डाटा को कुछ चैनलों के पक्ष में झुकाया जा सके.

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