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ट्रंप भले ही हार जाएं लेकिन अमेरिका में ट्रंपवाद का उभार हो चुका है, यह प्रदर्शन से ज्यादा पॉपुलिज्म पर निर्भर है

-द प्रिंट,

अमेरिकी राष्ट्रपति के इस चुनाव की राजनीतिक उपलब्धि यह नहीं होगी कि कौन जीता. यह तो तय है कि चुनाव वही जीतने जा रहा है, जो जीत का हकदार है. लेकिन इससे भी आगे जाकर देखें तो भविष्य में अमेरिका और भारत समेत दुनिया के दूसरे लोकतंत्रों की राजनीति पर इस तथ्य का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ने वाला है कि डोनाल्ड ट्रंप ने लगभग 50 फीसदी पॉपुलर वोट हासिल कर लिये. आखिर यह कैसे हुआ?

इसके अलावा भी कई सवाल हैं- करीब 7 करोड़ अमेरिकी लोगों ने उस आदमी को वोट कैसे दे दिया जिसे मसखरा, सनकी, लालची, कुर्सी का भूखा, भ्रष्ट, सेक्स से संबंधित कई कांड करने वाला, टैक्स चोरी करने वाला और एक ऐसा शख्स माना जाता है जिसने अपने देश को दुनिया में कमजोर किया और एकध्रुवी दुनिया में सुपरपावर के रूप में अपने देश का वर्चस्व चीन के हाथों गंवा दिया?

अपने नाम को सार्थक करने वाला लगभग हरेक थिंक टैंक वर्षों से हमें यही बताता रहा है. हरेक चुनाव विशेषज्ञ, चुनाव आंकड़ा विशेषज्ञ 2016 में ट्रंप के द्वारा अनुशासित किए जाने के बावजूद बाइडेन की आसान जीत की पूर्वघोषणा कर चुका है. वे यह भी वादा कर रहे थे कि ‘ब्लू वेव’ तो ट्रंप को और उनकी ‘निंदनीय’ राजनीति के मलबे को बुहार कर अमेरिकी राजनीति के इतिहास के गटर में पहुंचा देगा.

क्या किसी ने यह सोचा था कि ट्रंप इस मुक़ाबले को इतना कड़ा बना देंगे कि महामारी के बावजूद इतने सारे वोटर उनके आह्वान पर वोट देने निकल आएंगे, वे फ्लॉरिडा, नॉर्थ कैरोलिना को जीत लेंगे और पेंसिलवानिया, विस्कॉन्सिन, मिशिगन, और नेवाडा में कांटे की टक्कर देंगे? डोनाल्ड ट्रंप? घोषित सनकी?

हम प्रायः यह सवाल सुनते रहते हैं कि आखिर हम अमेरिकियों को हो क्या गया है? आगे, इस चुनाव के नतीजे से ज्यादा इस सवाल का राजनीतिक रंग और भी ज्यादा गहरा होकर उभरेगा. इस नतीजे की कल्पना इस रूप में कीजिए कि कोरोनावायरस ने दुनिया पर हमला नहीं किया और अमेरिका में ट्रंप ने इसका मुक़ाबला खराब ढंग से नहीं किया. तब क्या वे अमेरिका ही नहीं, पूरी दुनिया की राजनीति की दिशा तय करने वाले इस चुनाव को जबरदस्त ‘रेड वेव’ पर सवार होकर नहीं जीत जाते?

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