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उत्तर प्रदेश और बिहार के पांच वर्ष से कम उम्र के मासूम बच्चों पर वायु प्रदूषण का खतरा सबसे अधिक

-डाउन टू अर्थ, 

उत्तर प्रदेश और बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान जैसे बड़े और प्रति व्यक्ति कम आय वाले राज्य खतरनाक स्तर के पार्टिकुलेट मैटर वाले वायु प्रदूषण की चपेट में हैं। यह राज्य वायु प्रदूषण के कारण होने वाली समयपूर्व मौतों और रुग्णता के कारण जबरदस्त आर्थिक नुकसान भी उठा रहे हैं। यह बात इस तरफ भी इशारा कर रही है कि इन राज्यों में वायु प्रदूषण की बलि सबसे ज्यादा गर्भ में पल रहे व नवजात बच्चों को ही चढ़ना पड़ रहा है। 

द लैंसेट की ताजा रिपोर्ट में ग्लोबल बर्डन डिजीज 2019 के मुताबिक 2019 में 17 लाख मौतों का कारण वायु प्रदूषण है जबकि 2017 जीबीडी रिपोर्ट में वायु प्रदूषण जनित मौतों का आंकड़ा 12.4 लाख ही था। यह आंकड़ा स्पष्ट तौर पर यह भी बताता है कि खासतौर से ऐसे राज्य जो गरीब आय वाले हैं और जहां बच्चों व माताओं के लिए कुपोषण की बड़ी लड़ाई है वहां वायु प्रदूषण ज्यादा हमलावर है।

लैंसेट प्लेटनरी हेल्थ रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चचिम बंगाल और राजस्थान पांच राज्य हैं जहां अकेले 50 फीसदी मौते हुई हैं। यही पांचो ंराज्य 2017 की रिपोर्ट में भी शीर्ष मौत वाले राज्यों की सूची में शामिल थे। 

2019 की रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण जनित मौतें  349, 000 उत्तर प्रदेश में हुई है। हालांकि अभी यह स्पष्ट कर पाना मुश्किल है कि इस रिपोर्ट में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की संख्या वास्तविकता में कितनी है। लेकिन रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि बड़ी संख्या पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की है।

वायु प्रदूषण जनित रोगों में निचले फेफड़ों के संक्रमण सबसे ज्यादा बच्चों की मौत का कारण बनते हैं। पुरानी जीबीडी रिपोर्ट के विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है।  

यदि 1990 से लेकर 2017 तक दो दशक में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की प्रमुख बीमारियों से होने वाले मौतों के आंकड़ों का विश्लेषण करें तो यह साफ पता चलता है कि जिस तरह से डायरिया, खसरा जैसे रोगों पर नियंत्रण पाया गया है उस गति में निचले फेफड़ों के संक्रमण से मौतों पर नियंत्रण की कोशिश नहीं हुई है। मसलन 1990 में पांच वर्ष से कम उम्र वाले बच्चों की डायरिया से 16.73 फीसदी (4.69 लाख मौतें) हुई थीं जबकि 2017 में नियंत्रण से यह 9.91 फीसदी (एक लाख) पहुंच गईं। वहीं, निचले फेफड़ों के संक्रमण से 1990 में 20.20 फीसदी (5.66 लाख मौतें) हुईं थी जो कि 2017 में 17.9 फीसदी (1.85 लाख) तक ही पहुंची। यानी करीब तीन दशक में एलआरआई से मौतों की फीसदी में गिरावट बेहद मामूली है।
 
पांच वर्ष से कम उम्र वाले बच्चों की मौत का प्रमुख कारण क्या है? इस सवाल के जबाव में 1990 से 2017 तक के जीबीडी आंकड़ों का विश्लेषण यह बताता है कि पांच वर्ष से कम उम्र वाले बच्चों की मौत का दूसरा सबसे प्रबल कारक निचले फेफड़ों का संक्रमण है। वहीं, निचले फेफड़ों के संक्रमण में वायु प्रदूषण की बड़ी भूमिका है। विभिन्न वैज्ञानिक अध्ययनों से यह स्पष्ट हो चुका है कि पार्टिकुलेट मैटर 2.5 प्रदूषण के वो कण हैं जो आंखों से दिखाई नहीं देते और इतने महीन होते हैं कि श्वास नली के जरिए निचले फेफड़े तक पहुंच जाते हैं। सिर्फ बच्चों में ही यह प्रदूषण कण इसलिए भी ज्यादा प्रभावी होते हैं क्योंकि बच्चे किसी वयस्क के मुकाबले ज्यादा सांस के दौरान ज्यादा प्रदूषण कण भी अपने फेफडों तक पहुंचाते हैं।  
 
जीबीडी के ही आंकड़ों के मुताबिक पांच वर्ष से कम उम्र आयु वर्ग में अब भी अपरिपक्वता, समयपूर्व जन्म, कम वजन का होना, स्वास्थ्य सुविधाओं का न होना जैसे नवजात विकारों के कारण दम तोड़ देते हैं। 28 दिन की उम्र से नीचे यानी नवजात बच्चों की मृत्यु में भी यह कारक प्रमुख हैं। लेकिन जो इस स्टेज को पार कर जाते हैं और पांच वर्ष से छोटे हैं उनमें निचले फेफड़े का संक्रमण होने का जोखिम सबसे ज्यादा है और इसी आयु वर्ग के बच्चे निचले फेफड़े के संक्रमण से दम तोड़ रहे हैं। 
 
जीबीडी, 2017 के आंकड़ों के मुताबिक देश के हर एक घंटे में पांच वर्ष से कम उम्र वाले 21.17 बच्चे निचले फेफड़े के संक्रमण (एलआरआई) के कारण दम तोड़ रहे हैं।  इसमें राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार के बच्चे सबसे बड़े भुक्तभोगी हैं। देश में अब तक के उपलब्ध विस्तृत आंकड़ों के मुताबिक 2017 में 5 वर्ष से कम उम्र वाले 1,035,882.01 बच्चों की मौत विभिन्न रोगों और कारकों से हुई। इनमें 17.9 फीसदी यानी 185,428.53 बच्चे निचले फेफड़ों के संक्रमण के कारण असमय ही मृत्यु की आगोश में चले गए।
 
लचर स्वास्थ्य सेवाएं और निम्न आय वर्ग वाले राज्यों में वायु प्रदूषण के कारण बच्चों की मृत्युदर का आंकड़ा भी सर्वाधिक है। जीबीडी, 2017 के आंकडो़ं के मुताबिक वर्ष 2017 में 41.38 फीसदी यानी 428647.98 मौतें इन्हीं कारणों से हुईं। इसके बाद बच्चों की मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण निचले फेफड़े के संक्रमण ही है। वर्ष 2017 में निचले फेफड़ों के संक्रमण के कारण 17.9 फीसदी मौते यानी 185,428.53 बच्चों की मृत्यु हुई है।

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