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यूपी में 1 करोड़ जॉब और 1 ट्रिलियन की इकनॉमी के ख्वाब की हकीकत

-द क्विंट,

उत्तर प्रदेश में 1 करोड़ नई नौकरियां, राज्य में बड़े बदलाव की शुरुआत है?

कम से कम नए सपनों/वादों के बारे में सोचकर/सुनकर अच्छी फीलिंग आती है. एक करोड़ नई नौकरियां, उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था को अगले चार साल में एक ट्रिलियन डॉलर का बनाने का लक्ष्य, एक जिला-एक प्रोडक्ट, 30 लाख प्रवासी मजदूरों के रोजगार का इंतजाम- ये सारे बड़े-बड़े वादें हैं जिससे लोगों का कितना भला होगा, पता नहीं. लेकिन राज्य की सार्वजनिक मानसिकता को रिसेट करने के लिए इन वादों का बार-बार जिक्र होना भी जरूरी है. साथ ही, यह भी सच है कि ये सारे ऐलान रिपैकेजिंग के अलावा और कुछ नहीं है.

अब एक करोड़ नई नौकरियों को ही ले लीजिए. इसका बड़ा हिस्सा मनरेगा से जुड़ी नौकरियां होंगी. यूपी में 60 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार गारंटी स्कीम के तहत इस साल काम दिए गए हैं.

राज्य में करीब 90 लाख लोगों के पास मनरेगा का जॉब कार्ड है. बाहर से लौटे प्रवासी मजदूरों में से करीब 15 लाख को इस स्कीम से जोड़ने की बात हो रही है. ऐसा होता  है तो एक करोड़ का लक्ष्य वैसे ही पूरा हो जाएगा.

इसके अलावे, रियल एस्टेट कंपनियों के संगठन नरेडको का कहना है कि कंस्ट्रक्शन साइट्स पर 1 लाख लोगों को काम दिया जाएगा. सरकारी विभागों के जो भी ठेके दिए जाएंगे, वहां होने वाले रोजगार की भी गिनती होगी. मुद्रा लोन बांटे जा रहे हैं, स्किल्ड वर्कर्स को टूल किट दिए जा रहे हैं, लॉकडाउन के बाद छोटे-मझोले यूनिट्स को रिवाइव करने की बात हो रही है और वहां भी नौकरी के मौके बनेंगे. इन सारी काउंटिंग के बाद एक करोड़ का आंकड़ा तो बड़े आराम से पार हो जाएगा. लेकिन ये सारे गेम चेंजर हैं क्या?

मनरेगा का काम तो लोगों को आपातकाल में राहत पहुंचाना है. लॉकडाउन के समय में इस स्कीम को उत्तर प्रदेश के अलावे कुछ और राज्यों में तेजी लागू किया गया वो अच्छी बात है. जहां सब कुछ ठप था वहां मनरेगा लोगों का एकमात्र सहारा बना.

लेकिन बेसिक सर्वाइवल स्कीम को जॉब क्रिएशन मानना ठीक होगा क्या? उसी तरह, कंस्ट्रक्शन साइट्स पर लोगों की जरूरत तो पड़ती ही है. इस स्वाभाविक रूप से होने वाले काम को सरकारी उपलब्धि के तौर पर पेश करने की जरूरत है क्या? MSME यूनिट्स फिर से खड़े होंगे. जाहिर है, काम पर लोग तो रखे ही जाएंगे.

यूपी में रेगुलर सैलरी पाने वालों की संख्या काफी कम
2017 में यूपी में रोजगार के हालात पर इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट आई थी. इसके मुताबिक राज्य में काम करने वालों में महज 12 परसेंट रेगुलर सैलरी वाले जॉब्स में है. 62 परसेंट स्वरोजगार में हैं और 26 परसेंट कैजुअल वर्कर्स हैं. रेगुलर सैलरी पाने वालों का पूरे देश में औसत है 20 परसेंट. यूपी में जॉब सेक्टर को हेल्दी बनाने के लिए जरूरी है कि स्वरोजगार वालों (इसमें से अक्सर खेतों में काम करने वाले हैं) की संख्या घटे और रेगुलर सैलरी पाने वालों का अनुपात बढ़े. क्या एक करोड़ नौकरी के ताजा वादों के बाद ऐसा हो पाएगा? इसके बाद तो कैजुअल वर्कर्स की फौज बढ़ेगी जो अभी भी काफी बड़ी है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले कुछ सालों से स्वरोजगार करने वालों की संख्या घटी है. लेकिन रेगुलर सैलरी वालों की संख्या फ्लैट है. सिर्फ कैजुअल वर्कर्स की संख्या बढ़ी है.

अर्थव्यवस्था जब बड़ी मंदी में हो, और फिलहाल पूरे देश में वही हालात हैं, तो किसी भी तरह के नौकरी के मौके को बनाने पर ध्यान देना सराहनीय ही है. इस हिसाब से यूपी में सरकार का इस मोर्चे पर सक्रिय दिखना अच्छी बात है. लेकिन ये सारे कदम तत्काल राहत पहुंचाने वाले ही है.

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