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वायनाड के आदिवासी छात्रों ने शिक्षा में संस्थागत भेदभाव के खिलाफ उठाई आवाज

-कारवां,

केरल का आदिवासी समुदाय हमेशा से ही माध्यमिक और उच्च शिक्षा के मामले में बड़े नुकसान में रहा है और कोविड-19 महामारी के समय में आदिवासी छात्रों के सामने आने वाली मुश्किलें बढ़ गई हैं. केरल में स्कूलों और कॉलेजों ने डिजिटल क्लास लेनी शुरू की है लेकिन अक्सर आदिवासी और दलित छात्रों के लिए इस रूप में पढ़ाई कर सकना लगभग असंभव है. समाज के हाशिए पर रहने वाले छात्रों पर इसके पड़ने वाले प्रभाव को 14 वर्ष की दलित छात्रा देविका बालाकृष्णन की आत्महत्या के मामले में साफ देखा जा सकता है जिसने 1 जून को ऑनलाइन क्लास अटेंड न कर पाने से तंग आकर जान दे दी थी.

28 सितंबर से वायनाड जिले में सुल्तान बथरी शहर में 100 से अधिक आदिवासी छात्र सिविल पुलिस स्टेशन के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. छात्र प्रदर्शनकारियों का कहना है कि डिजिटल क्लास के मामले में राज्य सरकार के प्रयासों, जैसे मुफ्त लैपटॉप का वितरण और राज्य के स्वामित्व वाले टेलीविजन चैनलों पर कक्षाओं का प्रसारण, ने आदिवासी छात्रों के लिए शिक्षा की खराब स्थिति को बेहतर नहीं किया है. इनका कहना है कि ऑनलाइन कक्षाओं तक पहुंच न होना बहिष्करण की उस व्यापक प्रणाली का एक हिस्सा है जिसमें अपारदर्शी प्रवेश प्रक्रियाएं, आरक्षित सीटों की कमी और अत्यधिक शुल्क शामिल हैं जो आदिवासी छात्रों को माध्यमिक और उच्च शिक्षा प्रणाली से वंचित करता है.

विरोध प्रदर्शन में शामिल होने आए आदिशक्ति समर (ग्रीष्मकालीन) स्कूल के छात्र संगठन के सत्यश्री द्रविड़ ने बताया, " टेलीविजन, लैपटॉप या मोबाइल फोन तो छोड़ दीजिए आदिवासी घरों में अभी भी बिजली नहीं है.” आदिशक्ति स्कूल इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहा है. द्रविड़ ने कहा, “आधे से अधिक आदिवासी छात्र ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली के दायरे से बाहर हैं. मैं बिना संदेह के यह कह सकता हूं सरकार ने अचानक बिना आंकड़ों को जांचे नई शिक्षा प्रणाली शुरू की है." यह स्वीकार करते हुए कि कई छात्रों की पहुंच इंटरनेट तक नहीं है, 1 जून को केरल सरकार ने राज्य के स्वामित्व वाले काइट विक्टर्स टेलीविजन चैनल के माध्यम से स्कूलों और कॉलेजों के बच्चों के लिए कक्षाएं शुरू कराई. लेकिन कई कार्यकर्ताओं ने बताया कि इस तक भी कई आदिवासी छात्रों के लिए पहुंच बना लेना आसान नहीं है. इस विरोध प्रदर्शन का प्रमुख चेहरा और दलित और आदिवासी अधिकारों के लिए काम करने वाले एम गीतानंदन ने मुझे बताया कि कई आदिवासी छात्र पहली पीढ़ी के शिक्षार्थी हैं और उन्हें अभिभावक का मार्गदर्शन नहीं मिलता है जो आभासी (वर्चुअल) माध्यम से सीखने के लिए आवश्यक हैं.

गीतानंदन ने इस मुद्दे को समझाने के लिए जून की एक घटना सुनाई. उन्होंने बताया, "हमारे पास आठ छात्र थे जो कोच्चि में ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ रहे थे. हमने टेलीविजन सेट की व्यवस्था की और उन्हें पहले सत्र से ही विक्टर्स चैनल के माध्यम से पढ़ाने लगे. वे उसे समझने में असमर्थ थे. उन्हें वहां किसी की सहायता चाहिए जो लिखी गई बातों की व्याख्या कर सके.”

इस प्रकार कि सहायता प्रदान करने के लिए केरल सरकार के शिक्षा विभाग ने 2017 में 'केरल समागम शिक्षा' की शुरुआत की थी. इसके अंतर्गत अकेले वायनाड जिले में 241 संरक्षक शिक्षक या गोत्रबंधु नियुक्त किए. इन शिक्षकों के लिए, शिक्षा की डिग्री में स्नातक की योग्यता के साथ मलयालम भाषा का अच्छा ज्ञान और वायनाड में स्थानीय आदिवासी बोलियों में से कम से कम एक की जानकारी जरूरी थी. गीतानंदन ने मुझे बताया, "ये बच्चे पहली कक्षा से ही कक्षा में अलगाव की भावना महसूस करते हैं. इस अंतर को भरने के लिए संरक्षक शिक्षकों की नियुक्ति की गई. उनके कर्तव्यों में आदिवासी छात्रों को सहायता प्रदान करना और उनके घरों का दौरा करना शामिल है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे बीच में स्कूल न छोड़ें” उन्होंने कहा कि उनके संगठन ने सिफारिश की थी कि ये शिक्षक लॉकडाउन के दौरान आदिवासी कॉलोनियों में जाएं और जब टेलीविजन पर क्लास चल रही हो तब उन्हें व्यक्तिगत रूप से बच्चों को समझाएं. उन्होंने मुझे बताया, “एक स्थानीय अध्ययन केंद्र की आवश्यकता थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. शिक्षक उनसे मिलने नहीं गए और न ही स्कूल ठीक से कार्य कर रहे थे." सामगरा शिक्षा केरल के राज्य परियोजना निदेशक कुट्टीकृष्णन एपी ने वायनाड में कार्यक्रम के कार्यान्वयन की आलोचनाओं को लेकर किए गए सवालों के जवाब नहीं दिए.


1 जुलाई को केरल सरकार ने घोषणा की कि केरल राज्य वित्तीय उद्यम विद्याश्री योजना के तहत सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समूहों के छात्रों को लैपटॉप प्रदान किए जाएंगे. केएसएफई योजना एक माइक्रो-फाइनेंस योजना है जिसके तहत केएसएफई के छात्र को तीन महीने के लिए 500 रुपए की किस्त चुकाने के बाद लोन पर लैपटॉप मिलता है. सरकार द्वारा सहायता प्राप्त स्वयंसहायता समूह कुडुम्बश्री की स्थानीय इकाइयां राज्य के स्वामित्व वाली चिट फंड और ऋण कंपनी केरल राज्य वित्तीय उद्यमों के साथ मिलकर लैपटॉप वितरित करेगी. गीतानंदन ने कहा कि इस योजना के सफल होने गुंजाइश नहीं है क्योंकि कुडुम्बश्री समूहों की जिले में बहुत कम उपस्थिति है. उन्होंने यह भी कहा कि एक उपकरण खराब कनेक्टिविटी की बड़ी समस्या और अधिकांश आदिवासी घरों में इंटरनेट डेटापैक खरीदना एक समस्या है.

सुल्तान बथरी में विरोध प्रदर्शन में शामिल होने आए एक आदिवासी छात्र और आदिशक्ति के स्वयंसेवक समन्वयक जिष्णु कोयलिपुरा ने मुझे बताया कि महामारी के दौरान आदिवासियों को शिक्षा सुलभ कराने में केरल सरकार की विफलता हमेशा से चलती आ रही आदिवासी शिक्षा की उपेक्षा के इतिहास का हिस्सा है. कोयलीपुरा ने कहा कि आदिवासी शिक्षा के लिए चिंता की यह कमी माध्यमिक शिक्षा में दाखिला ले सकने वाले आदिवासी छात्रों की संख्या में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है. कोयलिपुरा ने कहा, "हमारी मुख्य मांग यह है कि ग्यारहवीं कक्षा में अधिक सीटें होनी चाहिए और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए एक अतिरिक्त बैच होना चाहिए और जो बारहवीं के बाद आगे की पढ़ाई करना चाहते हैं उन्हें कॉर्पस फंड से वित्तीय सहायता प्रदान की जानी चाहिए.” उन्होंने कहा, 2020 के अकादमिक वर्ष में दसवीं बोर्ड परीक्षा के लिए उपस्थित 2442 छात्रों में से 2009 छात्र ही उत्तीर्ण हुए थे. कोयलिपुरा ने मुझे बताया कि इस वक्त वायनाड में 2009 छात्रों के लिए केवल 529 सीटें हैं. अन्य 1400 छात्रों को आगे की पढ़ाई करने के लिए सीटें नहीं है. यह स्थिति उन्हें पढाई छोड़ने के लिए मजबूर करती है.”

गीतानंदन ने तर्क दिया कि माध्यमिक शिक्षा से स्कूल छोड़ने वाले छात्रों की संख्या और भी अधिक होगी. उन्होंने कहा कि ग्यारहवीं कक्षा में प्रवेश पाने वाले आदिवासी छात्रों की संख्या की गणना पिछले वर्ष में उत्तीर्ण छात्रों पर विचार किए बिना नहीं की जा सकती है जो पास हुए पर सीट पाने में असफल रहे.

गीतानंदन ने कहा, "अंतिम बैच में असफल रहे छात्र भी आवेदन करेंगे. ऐसे छात्र भी होंगे जो राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान से आवेदन करेंगे." उन्होंने कहा कि आदिवासी छात्रों के लिए उपलब्ध सीटों की अनुपातहीन संख्या से कई छात्र औपचारिक शिक्षा बीच में ही छोड़ देते हैं और शिक्षा के अधिकार से वंचित हो जाते हैं.

आदिवासी छात्रों के लिए शिक्षा की बाधाएं कॉलेज स्तर पर आकर और भी स्पष्ट हो जाती हैं. आदिशक्ति में स्वयंसेवा करने वाली मैरी लिडिया ने मुझे कात्युनायन समुदाय के एक अन्य आदिवासी छात्र के संघर्ष के बारे में बताया. लिडा ने कहा, “वह निलाम्बुर में एमआरएस स्कूल में पढ़ रही थी." उन्होंने मॉडल आवासीय स्कूलों का जिक्र करते हुए बताया कि यह स्कूल उन बच्चों के लिए अनुसूचित जनजाति विकास बोर्ड द्वारा सूचीबद्ध किए गए हैं जो अपने घरों के आसपास के शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश नहीं कर सकते हैं. लिडिया ने कहा, “उसे वहां से अपना प्रमाण पत्र प्राप्त करना था और फिर कोच्चि के एक कॉलेज में जमा करना था. इसके लिए उनकी मदद करने के लिए कोई मध्यस्थ नहीं है. हमारे पास एक सपोर्ट सिस्टम नहीं है जो यह सुनिश्चित करने में रुचि रखे है कि ऐसे बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त करें और आगे बढ़ें.”

कई कॉलेज प्रवेश पद्धति लागू करते हैं जिसे स्पॉट अलॉटमेंट कहा जाता है. गीतानंदन ने कहा, "पूरी सीट आवंटन प्रक्रिया समाप्त होने के बाद अधिकारी एक सार्वजनिक समारोह में बची हुई सीटों के लिए स्थान आवंटित करते हैं." बहुत से छात्रों को विज्ञान चुनने के लिए मजबूर किया जाता है. कई निजी समरूप कॉलेजों में भेजे जाते हैं जो ट्यूशन सेंटरों की तरह काम करते हैं. वे समरुप कॉलेजों में एससी और एसटी बैच के कुछ 500 छात्रों को भेजते हैं.” समानांतर कॉलेज केरल में आमतौर पर उन निजी शिक्षण संस्थानों को कहा जाता जो विश्वविद्यालय द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है.

उनके अनुसार, ये निजी संस्थान गुणस्तरीय शिक्षा प्रदान नहीं करते हैं और कई छात्रों को ग्यारहवीं कक्षा में प्रवेश से वंचित कर दिया जाता है.

लिडिया ने कहा कि केरल के स्वायत्त कॉलेजों में आमतौर पर किसी भी पाठ्यक्रम में एसटी छात्रों के लिए सिर्फ दो सीटें आरक्षित होती हैं. इसका मतलब है कि छात्रों को प्रवेश प्राप्त करने के लिए कई स्थानों पर आवेदन करना होगा. लिडिया ने कहा, "एक छात्र को आवेदन शुल्क के रूप में लगभग तीन हजार रुपए का भुगतान करना पड़ता है. उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए कोई तंत्र नहीं है. हमारी प्रणाली उन्हें उच्च शिक्षा के लिए एक आसान और समावेशी मार्ग प्रदान नहीं करती है.” उन्होंने आरोप लगाया कि अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति से संबंधित सरकारी विभाग इस बात का पता लगाने में विफल रहे हैं कि सीमांत छात्रों के लिए आरक्षित सीटें स्व-वित्तपोषित कॉलेजों के प्रबंधन कोटे में स्थानांतरित की जाती हैं.

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