Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/what-tuberculosis-teach-india-about-covid-19-hindi.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | बेदम होती स्वास्थ्य व्यवस्था : कोविड-19 संकट में तपेदिक के सबक | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

बेदम होती स्वास्थ्य व्यवस्था : कोविड-19 संकट में तपेदिक के सबक

-कारवां,

{1}

दिसंबर 2019 में डॉ. आनंदे वुहान से आने वाली खबरों पर व्याकुलता के साथ नजरें जमाए हुए थे. चीन के शहरों में सार्स जैसा एक रहस्यमय वायरस फैल रहा था. उस समय अपने डॉक्टर मित्रों के साथ होने वाली चर्चा को याद करते हुए आनंदे ने मुझे बताया, “मैंने सुना कि वह वायुजनित बीमारी थी. हम सुन रहे थे कि रोगियों में खांसी, बुखार आदि जैसे ही लक्षण हैं.”

आनंदे की चिंता ने तब दहशत का रूप ले लिया जब फरवरी के आसपास उन्होंने चीन से आने वाले वीडियो देखे जिनमें ज्यादा से ज्यादा लोगों को कोविड-19 से मरते दिखाया गया था . “मैंने सोचा कि वुहान एक बड़ा शहर है लेकिन आबादी के घनत्व के एतबार से मुंबई उससे बड़ा है. अगर ऐसा कुछ हमारे यहां होता है तो क्या होगा”?

वुहान की आबादी एक करोड़ 11 लाख है जबकि उससे छोटे भूभाग पर मुंबई की आबादी एक करोड़ 84 लाख है और मुंबई तो पहले से ही तपेदिक जैसी विभिन्न संक्रामक, वायुजनित सांस की बीमारियों के लिए बदनाम है.

यह समझने के किसी भी प्रयास की शुरुआत कि महामारी के प्रति भारत की प्रतिक्रिया इस बिंदु तक कैसे पहुंची, शुरुआत देश और दुनिया के सबसे अधिक भीड़ वाले शहरों में से एक मुंबई से होनी चाहिए. आनंदे मुंबई के दक्षिण-पूर्वी छोर पर स्थित शिवड़ी टीबी अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक हैं. यह विशाल परिसर तपेदिक के खिलाफ वैश्विक संघर्ष की विशाल रणभूमि में से एक है. इसमें कर्मचारियों के आवासीय परिसर हैं और यह महानगर के अंदर बसा एक चिकित्सा नगर है. जब मैं पिछली बार 2018 में तपेदिक पर अपनी किताब के लिए आनंदे का साक्षात्कार करने आई थी तब उन्होंने कहा था कि वह रोगियों की ‘सुनामी’ का सामना कर रहे हैं. एक व्यंग्यपूर्ण, लगभग कड़वा मजाक, बात आनंदे दोहराना पसंद करते है कि “अगर टीबी एक धर्म होता, तो शिवड़ी उसका मक्का होता”. हकीकत यह है कि मुंबई अब भारत के कोविड-19 के अधिकेंद्रों में से एक है और आनंदे इसे कतई संयोग नहीं मानते.

डॉ. ललित आनंदे शिवड़ी टीबी अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक हैं. उनका कहना है, "अगर टीबी एक धर्म होता, तो शिवड़ी उसका मक्का होता." . कारवां के लिए प्रार्थना सिंहडॉ. ललित आनंदे शिवड़ी टीबी अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक हैं. उनका कहना है, "अगर टीबी एक धर्म होता, तो शिवड़ी उसका मक्का होता." . कारवां के लिए प्रार्थना सिंह
डॉ. ललित आनंदे शिवड़ी टीबी अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक हैं. उनका कहना है, "अगर टीबी एक धर्म होता, तो शिवड़ी उसका मक्का होता." कारवां के लिए प्रार्थना सिंह
आनंदे एक मृदु भाषी डॉक्टर हैं जिसकी कामना हर मरीज करता है. यानी एक ऐसा ड़ॉक्टर जो सुई के दर्द से ध्यान भटकाने के लिए चुटकुला सुनाता है. वह छोट-छोटे वाक्यों में तेज गति से बात करते हैं और ऐसा व्यक्ति होने का भाव मिलता है जिसने बहुत कुछ देखा है. जब मैंने पहली बार उनका साक्षात्कार किया तो उन्होंने मुझे चेताया था कि वह “आक्रमक तरीके से बात करते हैं. लेकिन उनके ऐसा करने की वजह है.”

उन्होंने मुझे बताया, “हर सुबह जब मैं काम पर आता हूं, तो मुझे अपने सहयोगियों को “गुड मॉर्निंग” कहकर अभिवादन करने का सुख नहीं मिलता है. मुझे अपने कार्यालय पहुंचने के लिए छह लाशों से गुजरना पड़ता है. किसी-किसी दिन मैं लाशों को उठाने में मदद भी करता हूं.” जब मैंने उनसे पूछा कि ऐसे लोगों के बारे में वह क्या कहेंगे जो उनके वक्तव्य को हद से ज्यादा भय उत्पन्न करने वाला मान सकते हैं. उन्होंने तपेदिक रोगियों पर एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोध के स्तर का उल्लेख करते हुए कहा कि वास्तव में “हम उस अवस्था को पार कर चुके है जहां हमें चिंतित होना चाहिए कि बुरी खबर विनम्रतापूर्वक नहीं दी गई. यहां से हमारी आबादी बहुत तेजी से घटेगी”.

कोविड-19 के बारे में सुनने के बाद आनंदे की फौरी चिंता अपने तपेदिक रोगियों के लिए थी. उन्होंने कहा, “भारत तपेदिक रोगियों की सबसे बड़ी आबादी वाला देश है, मुंबई ऐसी जगह है जहां सबसे अधिक टीबी के मरीज रहते हैं. वह भूमि के उस संकरे विस्तार को लेकर खासतौर से परेशान थे जिसे वह “सबसे अधिक आबादी वाले देश के अधिकतम आबादी वाले नगर की सबसे ज्यादा घनी आबादी वाला भाग” कहते हैं. वह उस विस्तार की ओर संकेत कर रहे थे जो एशिया की सबसे बड़ी झोपड़पट्टी धारावी से शुरू होकर मानखुर्द, गोवंडी, घाटकोपर, कुर्ला और भांडुप तक पूर्वी मुंबई में अरब सागर के साथ-साथ फैली हुई घनी आबादी है. उस विस्तार के निवासियों के बारे में उन्होंने कहा, “वे पहले ही फेफड़ों के आघात से ग्रस्त हैं. वे प्रतिरोध क्षमता के संकट के साथ जी रहे हैं. कसी हुई आबादी में रहने वाले वे मेहनतकश लोग हैं जिन्हें इस शहर में काम की तलाश में आने बाद तपेदिक संक्रमण लग गया.

मार्च के शुरू से आनंदे और उनके सहयोगी उनका पहला कोविड-19 रोगी लाने के लिए हर दिन एम्बूलेंस का उत्सुकता से जाइंतजार कर रहे थे. शिवड़ी के कर्मचारियों ने संक्रमित होने के बारे में चिंता व्यक्त करना आरंभ कर दिया था. आनंदे याद करते हुए कहते हैं, “इसने एचआईवी के शुरुआती दिनों की मेरी याद ताजा कर दी”. यहां तक कि कोविड-19 के प्रसार को रोकने की कोशिश में मार्च में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा के बावजूद उनके स्टाफ को अस्पताल पहुंचने के लिए शहर के भीड़भाड़ वाले इलाकों से होकर गुजरना पड़ता था. “वास्तव में, काम पर आने के प्रयास में संक्रमित होने को लेकर उनकी चिंता जायज थी”.

आनंदे ने मान लिया था कि नोवेल या नवीन कोरोनावायरस संक्रमण के फैलने की व्यापक शुरुआत उनके तपेदिक रोगियों में संक्रमण होने से होगी. फिर, मानो इस वायरस की घात लगाकर अचानक हमले जैसी घटना में एक ही वार्ड में काम करने वाले उनके पांच कर्मचारी एक दिन जांच में पॉजिटिव पाए गए. यह 21 अप्रैल की बात थी.

आनंदे ने मुझे स्काइप पर बताया, “चूंकि यह टीबी अस्पताल था इसलिए खांसने और छींकने में शिष्टाचार बरतने जैसे नियमों का पालन पहले से ही किया जा रहा था, लेकिन छह फीट की दूरी, पीपीई किट आदि संक्रमण नियंत्रण नियम नए (न्यू नॉर्मल) थे. दो घंटे में हमने आइसोलेश वार्ड तैयार किया. चूंकि मेरे कर्मचारी अपने घर जाने और परिजन को संक्रमित करने का जोखिम नहीं उठाना चाहते थे इसलिए एक पुराने भवन को क्वारंटीन केंद्र में बदल दिया गया. रातों रात बिजली की आपूर्ति, अतिरिक्त कंबल और तकिया जुटाना, कर्मचारियों के रहने-खाने और उनके इलाज की व्यवस्था करनी थी. “हमें ब्रश और मंजन से शुरू करके अन्य सभी चीज़ें जुटानी थी. और यह सब मेरे अस्पताल में हो रहा था जो किसी भी तरह कोविड केंद्र नहीं था”.

अस्पताल अभी तक कोविड-19 केंद्र के बतौर नामित नहीं था लेकिन उसी समय से कंटेनमेंट ज़ोन बन गया था. आनंदे परचून का सामान खरीदने के अतिरिक्त चार महीने तक परिसर से बाहर नहीं गए. अस्पताल चौबीस घंटे चल रहा था. हर स्तर के सांस की तकलीफ वाले मरीज आना शुरू हो गए थे.

आनंदे ने कहा, “हमें दूसरे अस्पतालों से निर्दिष्ट रोगी मिलना शुरू हो गए जहां मरीज़ों को टीबी बताई गई थी और इलाज शुरू कर दिया गया था. जब वे यहां आए तो हमने महसूस किया कि यह टीबी बिल्कुल नहीं थी”. टीवी और कोविड-19 के लक्षण काफी हद तक एक ही जैसे होते हैं.

जूलाई के अंत तक शिवड़ी में 120 कोविड-19 के रोगियों का उपचार किया गया था जिसमें 56 अस्पताल के कर्मचारी थे. दो कर्मचारियों और 11 रोगियों की मौत हुई. आनंदे ने इसके परेशान कर देने वाले स्वरूप को महसूस करना शुरू कर दिया था. उनके रोगी उनकी सक्रियता की तुलना में ज्यादा तेज़ी से मर रहे थे. “पहले मेरे रोगी मुझे 48 घंटे का समय दे रहे थे, फिर यह घट कर 36 घंटा हो गया, उसके बाद 24 घंटे के अंदर मरने लगे. अब यह अवधि और छोटी हैः वे 12 घंटे में मर जाते हैं. हमने पहले इस जैसी कोई चीज नहीं देखी. हमें किसी को बचाने का समय नहीं मिलता था”.

इससे पहले 2018 में आनंदे ने तपेदिक कीटाणुओं के बारे में इस तरह बात की थी जैस लोग आमतौर से अपने मानव प्रतिवादियों के बारे में करते हैं. उन्होंने कहा, “यह तीव्रतम कीटाणुओं में सबसे फुर्तीला है. सभी सूक्ष्म जीवों का बादशाह, माहिर परिवर्तनकारी है. यह आपको तत्काल नहीं मारता. यह धीरे-धीरे मारता है, यातनापूर्ण तरीके से”.

तब उन्हें पता नहीं था कि दो साल में इस प्राचीन जीवाणु को नए वायरस के रूप में अचूक साथी मिल जाएगा जो दुनिया को घुटनों के बल ला देगा.

इतिहास के हर काल में सरकारों ने महामारियों का प्रयोग अपनी शक्ति को सुदृढ़ करने और असहमति को कुचलने के लिए किया है. जब से कोविड-19 की शुरुआत हुई है हंगरी, तुर्की, फिलीपीन्स, चीन, रूस और अन्य जगहों पर स्वास्थ्य आपातकाल का प्रयोग अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए किया गया है. भारत में भी सरकार ने अपने आपको असाधारण पुलिसिया शक्ति दे दी है और महामारी नियंत्रण के बजाए महामारी का जवाब मूल रूप से कानून व्यवस्था के मुद्दे के तौर पर देने का चयन किया है.

टाटा इंस्टीच्यूट ऑफ सोशल साइन्सेज में आपदा अध्ययन की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. पीहू परदेशी ने मुझे बताया, “जनवरी के महीने में ऐसा लगाता था कि यह विदेशी समस्या है. भारत के अंदर केरल में केवल तीन मामले थे”. अपने सहयोगियों के साथ चर्चा का स्मरण करते हुए कि कोविड-19 के पहले मामले केरल राज्य में ही क्यों रिपोर्ट किए गए थे, उन्होंने कहा, “हम तुरंत समझ गए कि ऐसा इसलिए है क्योंकि वे पहले से ही सतर्क तरीके से जांच कर रहे थे, उस राज्य में सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचा अच्छा था और उन्होंने हवाई अड्डों पर स्कैनर लगा दिए थे”.

परदेशी और आनंदे जैसे स्वास्थ्य विशेषज्ञ बहुत ज्यादा चिंतित हो गए, देश में सरकारी मनोदशा उल्लासी थी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमरीकी राष्ट्रपति डॉनाल्ड ट्रम्प के फरवरी में दो दिवसीय दौरे की मेजबानी में व्यस्त थे. ट्रम्प पहले मोदी के गृह राज्य गुजरात गए, फिर दिल्ली पहुंचने से पहले ताजमहल देखने गए. ट्रम्प के सम्मान में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में होने वाले उत्सव से ठीक कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर हिंसा फूट पड़ी थी. मुसलमानों को लक्ष्य बना कर मारा जा रहा था जबकि पुलिस चुपचाप देख रही थी. हिंसा नागरिकता (संशोधन) विधेयक के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतिशोध थी जो प्रस्तावित राष्ट्रव्यापी नागरिकों के पंजीयन के साथ भारतीय मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव के लिए जमीन तैयार करती है.

महामरी आने में अब भी समय था लेकिन आज हमें मालूम है कि फरवरी से मोदी सरकार के लिये फैसलों ने कोरोनावायरस की चिकित्सीय आपातकाल में आर्थिक और मानवीय संकट भी जोड़ दिया था. नागरिक अशांति और महामारी के मिले-जुले रूप ने भारत के सामाजिक ताने-बाने की कलई खोल दी है. 30 जनवरी को जब कोरोनावायरस की पहली बार भारत की सीमा में सेंधमारी का पता चला था, इस बात पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए था कि सामान्य रूप से महामारी के दो हमराही - भूख और कलंक या स्टिमा भी साथ होंगे.

पूरा रिपोर्ताज पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.