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कोरोना वायरस: WHO ने ठीक हुए मरीज़ों को लेकर दुनिया को क्यों चेताया

-बीबीसी,

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कहा है कि सरकारों को कथित "इम्युनिटी पासपोर्ट" या "जोखिम-मुक्त सर्टिफिकेट" लॉकडाउन में ढील देने के लिए जारी नहीं करना चाहिए.

WHO ने कहा है कि इस बात का 'कोई सबूत नहीं' मिला है कि जिन लोगों में संक्रमण से ठीक होने के बाद एंटीबॉडी विकसित हो गया है, उन्हें दोबारा संक्रमण नहीं होगा और वो इससे सुरक्षित हैं.

संगठन ने चेताया है कि इस तरह के क़दम वायरस के संक्रमण को वाक़ई में बढ़ाने वाले होंगे. जिन लोगों को लगेगा कि वो इम्युन हो गए हैं, वो एहतियात बरतना बंद कर देंगे.

कुछ सरकारें ऐसे लोगों के काम पर लौटने की अनुमति देने पर विचार कर चुकी हैं.

कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से लगाए गए लॉकडाउन से पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को भारी नुक़सान पहुँचा है.

अब तक दुनिया भर में कोरोना के 28 लाख से ज़्यादा मामले सामने आ चुके हैं और क़रीब दो लाख से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की राय
WHO ने एक संक्षिप्त नोट में कहा है, "इस बात का 'कोई सबूत नहीं' मिला है कि जिन लोगों में संक्रमण से ठीक होने के बाद एंटीबॉडी विकसित हो गया है, उन्हें दोबारा संक्रमण नहीं होगा और वो इससे सुरक्षित हैं."

ज़्यादातर अध्ययन यह बताते हैं कि जो लोग कोरोना के संक्रमण से एक बार ठीक हो गए हैं, उनके ख़ून में एंटीबॉडी मौजूद है लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनमें एंटीबॉडी का स्तर कम है.

इससे एक निष्कर्ष यह भी निकला है कि शरीर की रोग प्रतिरक्षा-प्रणाली में मौजूद टी-सेल की भी संक्रमित सेल से लड़ने में अहम भूमिका हो सकती है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक शुक्रवार तक ऐसा कोई अध्ययन नहीं हुआ है जो इस बात की तस्दीक करती हो कि किसी वायरस की एंटीबॉडी की मौजूदगी इम्युन सिस्टम को आगे भी वायरस के संक्रमण से रोकने की क्षमता प्रदान करती है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है, "मौजूदा वक़्त में इम्युनिटी पासपोर्ट या फिर जोखिम मुक्त सर्टिफिकेट कितना सटीक होगा इसे पुष्ट करने के लिए एंटीबॉडी से तैयार प्रतिरक्षा प्रणाली के प्रभावी होने के पर्याप्त प्रमाण नहीं हैं."

संगठन ने कहा है कि एंटीबॉडी के प्रभावी होने को लेकर लैब टेस्ट की आवश्यकता है.

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