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कांट्रैक्ट फार्मिंग से किसान या कंपनी किसको फायदा होगा? नए कानून की पूरी शर्तें और गणित समझिए

-गांव कनेक्शन,

सरकारी शब्दों में कांट्रैक्ट फार्मिंग- संविदा पर खेती यानी किसान का खेत होगा, कंपनी-व्यापारी का पैसा होगा, वो बोलेगी कि आप ये उगाइए, हम इसे इस रेट पर खरीदेंगे, जिसके बदले आपको खाद, बीज से लेकर तकनीकी तक सब देंगे। अगर फसल का नुकसान होगा तो उसे कंपनी वहन करेगी। कोई विवाद होगा तो एसडीएम हल करेगा। मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता अध्यादेश, 2020 के प्रावधानों, पीएम और सरकार के मंत्रियों के दावों पर विपक्ष और किसान संगठनों को भरोसा नहीं हो रहा है, यही से विवाद खड़ा हो रहा है।

विवाद की जड़ में तीन चीजें हैं, कंपनी सही रेट देंगी ये कैसे तय होगा, किसान कंपनियों के चंगुल में न फंस जाएं और तीसरा अगर कंपनी और किसान में विवाद हुआ तो कोर्ट जाने की छूट क्यों नहीं है ... केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने इस बिल की खूबियां गिनाते हुए बताया कि अनुबंध खेती यानी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से कैसे देश के किसानों को फायदा होगा। "देश में 86 फीसदी छोटे किसान हैं। खेती का रकबा दिनों-दिन कम हो रहा है, तो किसान अपने खेत में कोई निवेश नहीं कर पाता। दूसरा आदमी (कारोबारी-कंपनी) किसान तक नहीं पहुंच पाता।

ऐसे में कई बार छोटे किसान के पास इतना कम उत्पादन होता है कि अगर वो मंडी ले जाए तो किराया भी नहीं निकलता है। ऐसे में अगर छोटे किसान मिलकर महंगी फसलों की खेती करेंगे और एकत्र होकर बेचेंगे तो उन्हें फायदा होगा," नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा। उन्होंने खेती पर कॉरपोरेट के हावी होने, किसानों की जमीन के हड़पने के मुद्दे पर कहा- "लोग कह रहे हैं कि अड़ानी अंबानी आ जाएगा, ये लोकतांत्रिक देश है ऐसे कोई कैसे किसी की जमीन पर कब्जा कर लेगा। गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा समेत कई राज्यों में कांट्रैक्ट फार्मिंग पर खेती होती है वहां क्या किसी किसी की जमीन किसी कंपनी ने कब्जा किया है तो हमें उसका आंकड़ा दीजिए ... दरअसल इस विधेयक के अंतर्गत जमीन की लिखापढ़ी हो ही नहीं सकती है। करार सिर्फ फसल का होगा, जमीन का नहीं।

किसान ही जमीन का मालिक रहेगा।" अनुबंध खेती यानी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से देश के किसानों को कैसे होगा फायदा? लेकिन किसान संगठनों का कहना है बिल से किसानों को नहीं व्यापारियों का फायदा होगा। विपक्ष के साथ एनडीए में अब तक सरकार के साथ ही शिरोमणि अकाली दल भी किसानों के समर्थन में अलग हो गया है। अकाली दल भी मंडी एक्ट और कांट्रैक्ट फार्मिंग का विरोध कर रहा है।

चलिए अब आपको बताते हैं, अनुबंध खेती के आधार पर बने मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता अध्यादेश, 2020 में क्या प्रावधान हैं, इस पर नजर डालते हैं।

♦ इस अध्यादेश में किसानों के लिए पैदावार से पहले स्पोंसर (कंपनी/कारोबारी) से कृषि उपज की बिक्री के लिए एक लिखित समझौता करने के लिए एक फ्रेमवर्क दिया गया है।

♦ इससे उत्पादक यानी किसान भविष्य में समझौते के अनुसार एक तय कीमत पर खरीदार को बेच सकता है। इससे उत्पादक को उपज की कीमत या मांग बढ़ने या घटने का जोखिम नहीं होता और खरीदार को इस बात का भय नहीं रहता कि उसे अच्छी गुणवत्ता की उपज न मिले। (इस पर विवाद आगे समझिए) सवाल - (किसान संगठनों के मुताबिक कंपनियां अपने मुताबिक रेट तय करेंगी, अगर एक साल सही रेट दे देंगी तो दूसरे साल, तीसरे साल में कोई न कोई बहाना बनाकर रेट कम देंगी, तब किसान क्या करेगा?)

♦ अनुबंध खेती में आने वाली कृषि उपज को राज्य के उन सभी कानूनों से छूट मिलेगी जो कृषि उपज की बिक्री और खरीद पर लागू होते हैं। इसके अलावा इन अनुबंधों को राज्य सरकार की रजिस्ट्रेशन ऑथोरिटी से मान्यता मिलेगी।

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