Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/who-will-make-cinema-on-farmers-distress-and-agrarian-crisis-in-bollywood.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | बॉलीवुड में किसानों के ऊपर सिनेमा बनाने का जोखिम कौन लेगा? | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

बॉलीवुड में किसानों के ऊपर सिनेमा बनाने का जोखिम कौन लेगा?

-जनपथ,

भारत की 60-70 फीसदी जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है। कहते हैं कि भारत गांवों में बसता है, बावजूद इसके वर्तमान हिंदी फिल्मों में किसानों की कहानी नहीं के बराबर आती है। लंबे समय से इस देश के किसान किसी बिमल रॉय के इंतजार में हैं जो उनकी दो बीघा ज़मीन पर एक फिल्म बना दे।

आम तौर से समाज की आर्थिक संरचना में महत्वपूर्ण योगदान रखने वालों की कहानियां कला-विषयों में कही जाती हैं। आजादी के बाद 1950 के दशक में राष्ट्रीय आय में कृषि की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा थी। यही वह दौर था जब खेती-किसानी पर फिल्में ट्रेंड में हुआ करती थीं। 1953 में बिमल रॉय ने 2 बीघा ज़मीन बनाई तो 1957 में महबूब खान ने मदर इंडिया। निर्देशक और अभिनेता के रूप में राज कपूर की फिल्में समाजवाद की कहानी कहती थीं। 1967 में मनोज कुमार ने उपकार बनाई।

जाहिर है, देश की राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में सोवियत संघ का समाजवादी खेमा उस वक्‍त महत्वपूर्ण स्थान रखता था। तब भारतीय फिल्में, खासकर राज कपूर की फिल्में, हिंदी न जानने वाली रूसी जनता भी मजे से देखती थी। भारतीय किसान न्यूज़ मीडिया और हिंदी सिनेमा दोनों के “इमैजिनेशन” के केंद्र में हुआ करते थे।

1970-80 के दशक में इंदिरा सरकार में समाजवाद अपने पूरे उफान पर था। तभी परदे पर मजदूरों की कहानी लेकर ‘एंग्री यंग मैन’ के रूप में अमिताभ बच्चन ने दस्तक दी। किसानों की कहानियों के दिन ढल चुके थे।

नब्‍बे के दशक के शुरुआती वर्षों में सोवियत संघ के विघटन ने समाजवादी अर्थव्यवस्था से मोहभंग को पैदा किया। भारत ने भी LPG मॉडल (उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण) की बांह थाम ली और फिर सेवा क्षेत्र का विकास हुआ। IT सेक्टर के युवा अब NRI होने लगे। तब फिल्मों के अभिनेता बड़े बिजनेसमैन या NRI हुआ करते थे। किसानों की कहानी न्यूज़ में तभी आती जब चुनाव होने वाला हो या जब सरकार साल भर पर बजट पेश करती थी। फिल्मों के लिए अब किसानों की कहानी के ग्राहक कम हो गए थे।

2001 में आई लगान रेगिस्तान में ठंडे पानी के मटके की तरह थी। आशुतोष गोवरिकर की यह फिल्म सफल फिल्मों के हर पैमाने पर फिट बैठी, पर रॉम–कॉम के इस दौर में कोई किसानों पर पैसा लगाने का जोखिम नहीं लेता। पीपली लाइव और मांझी जैसी फिल्में बीच-बीच में आती रहीं, बावजूद इसके दर्शक और मीडिया के लिए किसान थाली तक अनाज लाने का साधन मात्र थे, फिल्मों के नायक नहीं।

फिल्में ग्राहक देखकर बनती हैं। फिल्मों के चरित्र आज मध्यम वर्ग से आते हैं क्योंकि बहुतायत दर्शक इसी वर्ग से आता है। हॉलीवुड तक की कहानियों में ग्रामीण और अर्ध-ग्रामीण बैकग्राउंड नहीं के बराबर रह गया है। वहां और हिंदी सिनेमा में आज भी कुछ नए निर्देशक और प्रोड्यूसर हैं जो इन विषयों पर फिल्म बना रहे हैं, परंतु उनकी पहुंच सीमित है। इसका एक कारण यह भी है कि स्वयं अभिनेता और स्क्रिप्ट लिखने वाला किसान वर्ग से नहीं आता।

कृषि एक जोखिम भरा व्यवसाय हो गया है। किसान स्वयं किसानी नहीं करना चाह रहा। उनके बच्चे ख़राब शिक्षा व्यवस्था तथा एक्सपोजर की कमी के कारण उसी पेशे को अपनाने को मजबूर है। पंकज त्रिपाठी जैसा किसानी के बीच से आने वाला कलाकार अकेला चाह कर भी किसानों पर फिल्म नहीं बना सकता।

पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.